समाजवादी पार्टी के नेता और विधायक आजम खान को मई महीने में सुप्रीम कोर्ट ने जमानत दी थी। आजम खान की जमानत से जुड़ी शर्तों के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट को फटकार लगाई है। साथ ही कोर्ट को नसीहत भी दी है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रामपुर के जिला अधिकारी को जौहर विश्वविद्यालय की जमीन को कब्जे में रखने के लिए निर्देश दिए थे और कोर्ट के इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने निरस्त कर दिया।

न्यायमूर्ति खानविलकर और न्यायमूर्ति पारदीवाला की पीठ ने कहा कि वह इस प्रवृत्ति को लेकर परेशान हैं, जहां ऐसे मामलों का संदर्भ दिया जाता है जो जमानत के लिए प्रार्थना पर विचार करने से संबंधित नहीं होते। पीठ ने कहा कि अदालतों को अर्जी और उसके सामने रखे मामले तक ही सीमित रहना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा जिलाधिकारी को जमीन कब्जे में लेने का निर्देश देने वाली जमानत की शर्त को निरस्त करते हुए आजम खान की जमानत से संबंधित अन्य शर्तों को बरकरार रखा। आजम खान जौहर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति हैं। इसके साथ ही जौहर विश्वविद्यालय परिसर के सील हिस्से को दोबारा खोलने का आदेश दिया। जस्टिस खानविलकर ने आश्चर्य जताते हुए कहा कि जमानत याचिका पर इस तरह की शर्तें कैसे लगाई जा सकती हैं।

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस खानविलकर ने मामले को हाईकोर्ट वापस भेजने और किसी अन्य जज द्वारा इस मामले पर सुनवाई करने के लिए विचार करने की बात कही। कोर्ट के इस कथन पर यूपी सरकार की ओर से पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने कहा कि ऐसा करना उचित नहीं होगा। इससे जज की विश्वसनीयता पर सवाल उठेगा। जस्टिस खानविलकर ने एसवी राजू की टिप्पणी पर कहा कि अगर ऐसा होता है तो होने दीजिए। यह नया ट्रेंड बन गया है, जो ठीक नहीं है।

इससे पहले 27 मई को रामपुर की जौहर यूनिवर्सिटी के हिस्सों को गिराने की कार्रवाई पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी थी। आजम खान के खिलाफ दर्ज की गई प्राथमिकी में आरोप लगाया गया था कि आजम खान ने अन्य लोगों के साथ मिलीभगत से 13.842 हेक्टेयर भूखंड पर कब्जा कर लिया था।