ओम प्रकाश राजभर यूपी की राजनीति के एक कद्दावर नाम हैं। 2022 चुनाव में वो अखिलेश यादव के साथ थे। लेकिन अब वो बिहारी स्टाइल में अति पिछड़ों और अति दलितों का मोर्चा बनाने जा रहे हैं। उनका कहना था कि इन दोनों तबकों को कोई नहीं पूछता। वो इन लोगों की आवाज उठाकर रहेंगे। इसके लिए संगठन को चार भागों में बांटकर राजनीति करेंगे।

राजभर का कहना है कि कश्‍यप, बींद, मांझाी, केवट, मझवार, प्रजापति, पाल, नाई, गूड़, लोहार, गोंड, कमकर, कहार, दुसाध, पासवान, राजभर जैसी 17 जातियां शामिल हैं। उनका कहना है कि इन लोगों की तादाद 18 फीसदी है। उनका ये कदम बसपा से ज्यादा बीजेपी के लिए खतरा है। फिलहाल ये सभी लोग बीजेपी के साथ रहे हैं। राजभर ने प्रेम पाल कश्यप को प्रदेश अध्यक्ष बनाकर संकेत भी दे दिए हैं। उनकी कोशिश है कि पूर्वांचल के दायरे से निकलकर पूरे यूपी में छा जाएं।

राजभर ने 1981 में बसपा के संस्थापक कांशीराम के साथ राजनीति शुरू की थी। लेकिन 2001 में बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायावती से विवाद के बाद उन्होंने बपसा से इस्तीफा दे दिया। दरअसल, राजभर भदोही का नाम बदल कर संतकबीर नगर रखने से नाराज थे। इसके बाद उन्होंने सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी नाम से अपनी नई पार्टी बना ली। 2016 चुनाव में वो बीजेपी के साथ रहे तो 2022 में सपा के साथ आ गए।

खास बात है कि उत्तर प्रदेश की सियासत में पिछड़ा वर्ग की अहम भूमिका रही है। माना जाता है कि करीब 50 फीसदी ये वोट बैंक जिस भी पार्टी के खाते में गया, सत्ता उसी की हुई। उत्तर प्रदेश में सभी दलों की नजर ओबीसी समुदाय के वोट बैंक पर है, जिन्हें साधने के लिए सत्तापक्ष से लेकर विपक्ष तक ने कमान यूपी में पिछड़े समुदाय के हाथों में दे रखी है।

बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देव सिंह कुर्मी जाति से आते हैं जबकि इसी जाति के नरेश उत्तम को सपा ने प्रदेश अध्यक्ष बना रखा है। वहीं, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू अति पिछड़ी जाति के कानू समाज से आते हैं और ऐसे ही बसपा के प्रदेश अध्यक्ष भीम राजभर भी इसी तबके से हैं।