अंशुमान शुक्ल
उत्तर प्रदेश अब तक अच्छे दिनों का इंतजार कर रहा है। बुंदेलखंड का गला अब तक सूखा है। पूर्वी उत्तर प्रदेश मस्तिष्क ज्वर, बाढ़, बेरोजगारी और अपराध की गोद में नई पीढ़ी को जवान करने की विवशता से जकड़ा है। रुहेलखंड की तकदीर वहां के जंगलों में कहीं खो सी गई है। इन जंगलों से रास्ता भूलने वाले बाघ ही इस इलाके को देश की नजर में यदा-कदा लाते हैं। जबकि समस्त संसाधनों से वह लैस है। मध्य उत्तर प्रदेश में राजधानी लखनऊ की सीमा के गांवों से गरीबी का न हट पाना इस बात का संकेत है कि मुख्यमंत्री कार्यालय से चंद किलोमीटर का फासला तय करने के बाद विकास या तो रास्ता भटक गया है या लोगों की नजरें बचाकर उसने अपने घर जाना मुनासिब समझा है। रही बात पश्चिमी उत्तर प्रदेश की तो वहां धर्मांतरण और लव जेहाद सरीखे मुद्दे सांप्रदायिक फसादों की याद बरबस बनाए रखने को मजबूर करते हैं। नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बने पूरे एक साल हो गए लेकिन उत्तर प्रदेश जहां पहले खड़ा था उससे अधिक दुर्गति उसकी इस वक्त है।
उत्तर प्रदेश की जनता केंद्र की मोदी की सरकार से सिर्फ एक सवाल पूछ रही है कि आखिर बीते एक साल में उन्होंने उत्तर प्रदेश के लिए ऐसा क्या कर दिया जिसे वे अपनी उपलब्धि के तौर पर प्रदेश की जनता को बता सकें। अथवा विधानसभा चुनाव के पूर्व उसकी मिसाल पेश कर सकें। उत्तर प्रदेश के विकास का सपना दिखाने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनके मंत्रिमंडल के कई मंत्री उत्तर प्रदेश से ताल्लुख भले रखते हों लेकिन प्रदेश के विकास के लिए कुछ कर पाने की इच्छाशक्ति का उनमें अभाव दिखता है। उत्तर प्रदेश का कोई जिला ऐसा नहीं बचा जहां मार्च में अतिवृष्टि ने किसानों को जान देने पर विवश न कर दिया हो। राज्य की अखिलेश सरकार ने ढाई हजार करोड़ रुपए किसानों को राहत राशि के तौर पर वितरित किए। किसको कितनी राशि मिली वह अलग बात है।
लेकिन जिस उत्तर प्रदेश ने अच्छे दिनों के वादे पर 73 सांसदों को जिता कर प्रदेश की 93 फीसद सियासी जमीन नरेंद्र मोदी को पकड़ा दी हो उनकी सरकार ने 14वें वित्त आयोग की संस्तुति का 253 करोड़ रुपया उत्तर प्रदेश को दिया। किसानों को लेकर केंद्रीय मंत्रियों के बयान लोगों पर छाप छोड़ने से अधिक विवादों में फंसते गए और हर बयान को मुख्यमंत्री ने झूठा करार देकर खारिज कर दिया। केंद्र सरकार इतने बड़े आरोप पर खामोशी अख्तियार किए रही। गजब की विडंबना का शिकार है उत्तर प्रदेश। उत्तर प्रदेश के भाजपाई प्रदेश की अखिलेश यादव सरकार को यह कह कर घेरने की कोशिश में हैं कि वह काम नहीं कर रही है। लेकिन नरेंद्र मोदी की सरकार ने बीते एक साल में उत्तर प्रदेश के लिहाज से किया क्या? इसका आंकड़ागत जवाब उनके पास नहीं है। वे राजनाथ सिंह के किसानों की कर्ज माफी न होने और अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण पर दिए बयानों से बचने की हर संभव कोशिश में हैं।
उत्तर प्रदेश के विकास को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की गंभीरता का अंदाजा लगाने के लिए एक नहीं बल्कि पचास से अधिक वाकये हैं। इन पचासों वाकयों का गवाह और कोई नहीं बल्कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव हैं जिन्होंने प्रदेश के विकास के लिए प्रधानमंत्री को पचास से अधिक पत्र लिखे लेकिन उनमें से किसी भी पत्र का जवाब देना प्रधानमंत्री ने जरूरी नहीं समझा। राजनीति के जानकार प्रधानमंत्री के जवाब न देने पर सवाल उठाते हैं। वे कहते हैं कि आखिर नरेंद्र मोदी की यह कैसी मसरूफियत है? वे उस उत्तर प्रदेश के विकास को नजरअंदाज कर रहे हैं, जहां सोलहवीं लोकसभा के चुनाव के दौरान उन्होंने सभाओं में सपने दिखाने की झड़ी सी लगा दी थी।
उत्तर प्रदेश को अब तक क्या मिला? और क्या नहीं मिला? इसका हिसाब-किताब लगाना मोदी और अखिलेश यादव का काम है। लेकिन इतना तय है कि बिना उत्तर प्रदेश को साथ लिए प्रधानमंत्री का भारत निर्माण का सपना पूरा हो पाना लगभग असंभव है। इस असंभव को संभव करने की दिशा में यदि केंद्र सरकार समय रहते कदम बढ़ा देती है तो ठीक। अन्यथा असंभव एक ऐसा शब्द है जिसकी तासीर को उत्तर प्रदेश के भाजपाई विधानसभा चुनाव की दृष्टि से खूब समझते हैं। उन्हें इस बात का इल्म भी है कि उत्तर प्रदेश में पौने दो बरस बाद विधानसभा के चुनाव होने हैं। इस चुनाव में फतह वादों से नहीं होगी। इसे हासिल करने के लिए काम का हिसाब किताब देना होगा। जिसके हिसाब में जितनी सटीकता होगी। उसकी दावेदारी उतनी ही मजबूत होगी।