राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष अजित सिंह विधानसभा चुनाव में अपनी खोई ताकत को जुटाने की कोशिश में हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जाट और मुसलमान गठजोड़ उनका पुराना जनाधार रहा है। लेकिन तीन साल पहले हुए सांप्रदायिक दंगों के कारण यह गठजोड़ टूट गया था। हिंदुत्व के असर में जाट भाजपा के साथ चले गए थे, तो मुसलमान सपा के साथ। इससे अजित सिंह का बंटाधार हो गया था और वे खुद भी अपने बागपत के गढ़ को बचाने में नाकाम साबित हुए थे। अजित सिंह अपने पुराने वोट बैंक को साथ लाने के लिए किसान अधिकार रैलियों का सहारा ले रहे हैं। बड़ौत में चार अक्तूबर को हुई उनकी रैली में खासी भीड़ जुटी थी। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी इसमें पहुंचे थे। इसके बाद किठौर (मेरठ) की रैली ने भी उनका हौसला बढ़ाया। अब 22 दिसंबर को रालोद की तरफ से मुजफ्फरनगर के चरथावल में किसान अधिकार रैली के जरिए अजित अपनी ताकत दिखाएंगे। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के मुखिया शरद पवार भी इस रैली को संबोधित करेंगे। फिलहाल अजित सिंह ने जनता दल (एकी), जद (एस) व बीएसफोर जैसे दलों के साथ एक मोर्चा बनाया है। इन दलों का सूबे में खास सियासी असर भले न हो पर मतदाताओं के बीच अच्छा संदेश देने में मदद जरूर मिलती है।

अजित सिंह अपनी कवायद को जाट-मुसलमान गठजोड़ की कोशिश नहीं मानते। उनका दावा है कि उनकी पार्टी किसानों के हित में काम करती रही है। सत्तर फीसद से ज्यादा लोग खेती पर निर्भर हैं। लिहाजा वे किसानों की पीड़ा मोदी सरकार को बताना चाहते हैं। किसानों का कर्ज माफ कराना उनका एजंड़ा है। उसी के लिए दिल्ली के जंतर-मंतर पर पांच दिसंबर को रैली की थी। 26 दिसंबर को लखनऊ में किसान पंचायत करेंगे।राष्ट्रीय लोकदल के महासचिव त्रिलोक त्यागी ने बताया कि चरथावल की किसान अधिकार रैली में एक लाख किसानों को जुटाने का लक्ष्य है। रालोद की फिलहाल दो मांगें हैं। एक, गेहूं के आयात पर केंद्र सरकार लारा सीमा शुल्क खत्म करने का फैसला तत्काल वापस हो। दूसरी, किसानों के कर्ज माफ किए जाएं। मोदी सरकार ने चुनिंदा बड़े उद्योगपतियों का तो सवा लाख करोड़ रूपए का कर्ज माफ कर दिया पर किसानों की पीड़ा उसे दिखाई नहीं दे रही।

किसान संकट में है। प्राकृतिक आपदा, बैंकों और सरकारी संस्थाओं का उस पर कर्ज वसूली के लिए दबाव और फसल का वाजिब दाम नहीं मिलना उसकी चिंता बढ़ा रहे हैं। किसान परेशान होकर खुदकुशी कर रहे हैं। अकेले महाराष्ट्र में एक साल में एक हजार से ज्यादा किसान खुदकुशी कर चुके हैं। जबकि केंद्र और महाराष्ट्र दोनों जगह भाजपा की सरकारें हैं। बकौल त्यागी किसानों के पास पैसा नहीं होने से छोटे व्यापारी भी बेहाल हैं। गांवों-कस्बों की दशा दयनीय हो चुकी है। मोदी ने किसानों को फसल का लाभकारी दाम देने का चुनाव में वायदा किया था। पर वे सत्ता में आने के बाद किसानों के मुद्दों पर बात करने तक से कतरा रहे हैं। वोट लेने के लिए सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का भाजपा का छुपा एजंड़ा अब जग जाहिर हो चुका है। विधान सभा चुनाव में सूबे के मतदाता भाजपा और मोदी को मजा चखा देंगे।