प्रधानमंत्री मोदी द्वारा लखनऊ में विजयदशमी रैली के दौरान रावण जैसी सभी समाजिक बुराइयों और आतंकवाद को खत्म करने की मांग के एक दिन बाद उत्तर प्रदेश के एक मंत्री ने उनकी तुलना रावण से कर दी है। उत्तर प्रदेश में श्रम सलाहकार और दर्जाप्राप्त राज्यमंत्री मोहम्मद अब्बास से जब पीएम मोदी की लखनऊ रैली पर कमेंट करने के लिए कहा गया तो उन्होंने कहा कि, ” जिनकी खुद की राजनीति रावण के राज बुराई का प्रतिबिंब है। वो कैसे उत्तर प्रदेश में आकर रावण को खत्म करने की बात कर सकते हैं।”
अब्बास ने पीएम मोदी का नाम लिया बिना कहा कि, ” रावण के पास सोने की लंका थी लेकिन आम नागरिक सुखी नहीं था। आज भी अंबानी और अड़ानी को लाभ पहुंचाया जा रहा है जबकि गरीब अदमी जीने के लिए संघर्ष कर रहा है। असली राम राज्य वो है जिसमें गरीब का भला हो।” जब उनसे सीधे पूछा गया कि क्या वो मोदी की तुलमा रावण से कर रहे हैं तो उन्होंने कहा, ” अगर हमारे मुख्यमंत्री को रावण बताया जाएगा तो आप क्या उम्मीद करते हैं को मोदी को राम बताएं या ….
ये वैसे पहला वाक्य नहीं है मंगलवार रात दिल्ली के जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी में कुछ छात्रों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर अपना गुस्सा निकाला। छात्रों ने पीएम मोदी और योग गुरु बाबा रामदेव के पुतलों को रावण की जगह जलाया। टाइम्स ऑफ इंडिया से बातचीत में एनसयूआई (नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया) के सदस्य मसूद ने कहा, ”हां, जेएनयू की एनएसयूआई यूनिट ने ऐसा किया है। हमारा प्रदर्शन वर्तमान सरकार से हमारा असंतोष प्रदर्शित करता है। विचार ये है कि सरकार से बुराई को बाहर किया जाए और एक ऐसा सिस्टम लाया जाए जो प्रो-स्टूडेंट और प्रो-पीपल हो।”
कांग्रेस समर्थित एनएसयूआई के कुछ सदस्यों ने बुराई के प्रतीक रावण की तरह पीएम मोदी को दर्शाते हुए पुतला फूंका। स्टूडेंट्स ने कार्ड पर स्लोगन लिखे- ”बुराई पर सत्य की जीत होकर रहेगी।” इस साल अध्यक्ष पद के लिए जेएनयूएसयू चुनाव में हिस्सा लेने वाले सन्नी धीमान के मुताबिक, यह प्रदर्शन सरकार की सामूहिक विफलता का प्रतीक था। उन्होंने कहा, ”पुतला सभी मोर्चों पर सरकार की विफलता को दर्शाने के लिए जलाया गया। यह प्रदर्शन गौ रक्षा के नाम पर मुस्लिमों और दलितों पर अत्याचारों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे यूथ फोरम फॉर डिस्कशंस एंड वेलफेयर एक्टिविटीज (YFDA) को नोटिस जारी करने के जेएनयू प्रशासन के फैसले के खिलाफ था। हमें लगता है कि यूनिवर्सिटी ने ऐसा सरकार के दबाव में किया और वह YFDA को निशाना बना रहे हैं क्योंकि इस समूह में ज्यादातर मुस्लिम छात्र हैं।”