लखीमपुर मामले में योगी सरकार पर शुरू से ही आरोपियों की ढाल बनने के आरोप लगते आ रहे हैं। लेकिन सरकार मानती है कि उसने इस मामले में कानून के तहत काम किया है। सरकार का कहना था कि हर एक गवाह को हथियारबंद पुलिस के जवान मुहैया कराया गया है।
सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने बताया कि मामले में कुल 98 गवाह हैं, जिनमें से 79 लखीमपुरखीरी जिले से हैं जबकि 17 बाहर के जिलों से हैं। पीड़ित परिवार को भी गनर उपलब्ध कराने के साथ सीसीटीवी के जरिए भी सरकार लगातार निगरानी कर रही है। पीड़ित परिवार के घर के पास बैरियर भी लगाए गए हैं, जिससे कोई बेवजह या जानबूझकर उन तक पहुंच न बना सके।
सरकार के मुताबिक राज्य ने न केवल अदालत में आशीष को बेल देने के फैसले का पुरजोर विरोध किया बल्कि उसकी जमानत को चुनौती देने के विकल्प पर भी विचार कर रही है। सरकार का दावा है कि जमानत को चुनौती देने के मामले में संबंधित अथॉरिटी विचार कर रही है। सुप्रीम कोर्ट में सरकार का कहना है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में दाखिल किए गए काउंटर एफिडेविट को देखा जा सकता है। इसमें उसने जमानत देने के फैसले पर विरोध जताया है।
ध्यान रहे कि 15 मार्च को सुप्रीमकोर्ट ने पीड़ित परिवार की स्पेशल लीव पटीशन पर सरकार को नोटिस जारी किया था। पीड़ित पक्ष की तरफ से एडवोकेट प्रशांत भूषण ने आशीष को दी गई बेल का विरोध करने के साथ परिवार के एक सदस्य पर हमले का भी जिक्र किया था। भूषण का कहना था कि यूपी चुनाव का रिजल्ट आने के बाद परिवार के सदस्य को निशाना बनाया गया। पटीशन चीफ जस्टिस की बेंच के समक्ष दाखिल हुई थी।
सरकार ने अपने जवाब में कहा कि परिवार के सदस्य पर चुनाव बाद किसी साजिश के तहत हमला नहीं हुआ बल्कि होली में रंग डालने को लेकर हुए विवाद में ये झड़प हुई थी। इसका आशीष मिश्रा के मामले से कोई लेनादेना नहीं है। सरकार का कहना था कि पीड़ित परिवार बेवजह मामले को तूल देने की कोशिश में है। जबकि जांच में ऐसा कोई तथ्य सामने नहीं आया जिसमें चुनाव के बाद साजिशन परिवार के सदस्य पर हमला हुआ हो।