अंशु मलिका/प्रियंका कोटमराजू
इलाहाबाद यूपी ग्रामीण बैंक की बछरण शाखा बुंदेलखंड क्षेत्र के चित्रकूट जिले के हेडआॅफिस कर्वी से 26 किलोमीटर दूर, राजापुर ब्लॉक की तरफ जाने वाले स्टेट हाईवे पर है। इस शाखा में कई दिनों से नकद नहीं था। नौ दिसंबर को भी बैंक में नकदी न होने की वजह से स्थानीय लोगों ने शाखा में हंगामा किया और फिर स्टेट हाईवे जाम किया, जिसके बाद शाखा में 6 लाख रुपए आए। पहाड़ी ब्लॉक के इलाहाबाद यूपी ग्रामीण बैंक की बछरण शाखा अकेला बैंक नहीं है, जहां हंगामा हो रहा है। पिछले हफ्ते इसी ब्लॉक के इलाहाबाद यूपी ग्रामीण बैंक के नदितोड़ा में भी यही हुआ। कर्वी ब्लॉक के इलाहाबाद यूपी ग्रामीण बैंक भरतकूप शाखा में तो बाहर से बंद करने वाली ग्रील तक भीड़ ने तोड़ डाली। इलाहाबाद यूपी ग्रामीण बैंक, भारतीय रिजर्व बैंक के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों में से एक है। पूरे उत्तर प्रदेश के 11 जिलों में इलाहाबाद यूपी ग्रामीण बैंक है। मुख्य रूप से बुंदेलखंड के चित्रकूट जिले में इलाहाबाद यूपी ग्रामीण बैंक में दूसरे सबसे ज्यादा खाताधारक हैं। बछरण गांव के पंकज मिश्रा कहते हैं, ‘सब काम छोड़ रोज-रोज बैंक जाइए और हर रोज एक ही बात कि पैसा नहीं है। लोग दूर से आते हैं। पैसे नहीं निकलने पर उन्हें गुस्सा आ गया तो वे हंगामा करने लगे, रोड जाम कर दिया’।
इलाहाबाद यूपी ग्रामीण बैंक, बछरण शाखा के मैनजर राम नरेश अवस्थी का कहना है, ‘जब लोग अपना पैसा खुद की जरूरतों के लिए नहीं निकाल पा रहे हैं, तो गुस्साएंगे ही। लेकिन यह गुस्सा हम पर फूट रहा है। वे कहते हैं, पिछले हफ्ते, 6 दिसंबर को उनकी शाखा को 4 लाख रुपए दिए गए थे, जो उसी दिन खत्म हो गए। अगले दिन जब लोग आए तो हमने कह दिया की नकदी नहीं है। यही बात मैंने उनलोगों को 7, 8 और 9 दिसंबर को भी कही। यह 19 गांवों पर एक ग्रामीण बैंक है। यहां लोग दूर-दूर से आते है। लोगों को लगता है, मैनेजर पैसा नहीं दे रहा है। जबकि हमारे बैंक को मुख्य बैंक ही पैसे नहीं दे रहा है तो हम क्या करें, जिसके बाद 9 दिसंबर को लोगों ने हंगामा किया। बाद में हमें 6 लाख रुपए मुख्य बैंक ने दिए, जिसे हमने रात के 8 बजे तक बांटा, जिसमें हमने 237 निकासी भरी। यही नोटबंदी के पहले बिना मुख्य शाखा के चक्कर लगाए हमारी शाखा को 10 से 15 लाख रुपए प्रतिदिन मिल रहे थे। लेकिन अभी प्रतिदिन मुख्य शाखा से मैं खाली हाथ लौट आता हूं।
इलाहाबाद यूपी ग्रामीण बैंक, भरतकूप के मैनेजर पंकज मिश्रा बताते हैं कि उन्होंने अपनी शाखा में विकलांग और बुजुर्गों के लिए अलग से व्यवस्था की है। शाखा के बाहर एक चाय की दुकान पर ही उनलोगों को रोकते हंै, फिर सबसे पहले वहां जा कर उनलोगों को पैसा देते हैं, बाद में किसी और को। सूत्रों के मुताबिक, 9 दिसंबर को भी इलाहाबाद यूपी ग्रामीण बैंक भरतकूप में लोगों की भीड़ बहुत ज्यादा थी। लोग नियंत्रण से बाहर थे, जिसके कारण धक्कामुक्की हो गई जिसमें एक औरत दब गई। हालांकि बाद में उसे निकाल लिया गया। इस बीच, बैंक के कर्मचारी और पुलिस के बीच संबंध गहरे हो गए हैं। बैंक की एक कॉल पर पुलिस हाजिर हो जाती है। एक ही शाखा को हफ्ते में कई कई दिन पुलिस बुलानी पड़ रही है।
इलाहाबाद यूपी ग्रामीण बैंक मुख्य शाखा, कर्वी के मैनेजर धर्मेंद्र सचान बताते हैं कि क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक के पास करंसी चेस्ट कम होने से यह दिकत आ रही है। अभी हमें सिर्फ इलाहाबाद बैंक की करंसी चेस्ट से पैसे मिल रहे हैं। जबकि नोटबंदी के पहले हमें एसबीआइ और पीएनबी भी अपनी चेस्ट से पैसे देते थे। पहले जहां इलाहाबाद यूपी ग्रामीण बैंक मुख्य शाखा, कर्वी को 3 से 4 करोड़ रुपए प्रतिदिन मिल रहे थे, वहीं आजकल यह पैसा घट कर 50 लाख, 1 करोड़ और ज्यादा से ज्यादा 2 करोड़ हो गया है। इस जिले में कुल 41 शाखाएं हैं। इसलिए हम रोजाना हर बैंक को नकदी नहीं दे पाते हैं। हर रोज लगभग 10 शाखाओं को ही पैसा मिल पाता है, बाकी 31 शाखा को कुछ नहीं दे पाते हैं। जहां ज्यादा लोग हैं, ज्यादा हंगामा हो रहा है उन्हें हम पहले कैश भेज रहे हैं। अगर हम ऐसा नहीं करें तो शाखा प्रबंधक के साथ कुछ भी हो सकता है…कुछ भी मतलब कुछ भी’।
इलाहाबाद यूपी ग्रामीण बैंक के ही एक मैनेजर ने बताया कि नौकरी में रहते हुए यह उनका 35वां साल है। लेकिन यह समय उनके लिए बहुत मुश्किल है। वे कहते हैं, ‘हर सुबह घर से जब निकलता हूं, यहीं सोचता हूं आज कहीं किसी से पिट न जाऊं। कई दिन हो गए सोए हुए’। उनकी पत्नी कहती हैं, ‘मेरा घर तो बैंक हो गया है, हर वक्त एक ही बात – ‘कैश नहीं है’। मेरे पति की परेशानी कोई नहीं समझता है, लोगों को लगता है मैनजर पैसा नहीं दे रहा है’। बछरण शाखा के मैनजर अवस्थी कहते हैं, ‘बता नहीं सकता इससे हमारा निजी जीवन कितना बाधित है। घर का गैस चूल्हा खराब है, लेकिन उसे ठीक करने का समय नहीं है। आज रविवार है, लेकिन हम तीनों बैंक कर्मचारी शाखा में बैठ कर प्रधानमंत्री फसल बीमा का काम कर रहे हैं। इसे भी 31 दिसंबर तक जमा करना है। कर्मचारी कम हैं काम बहुत ज्यादा’। छुट्टी वाले दिन में काम करने पर क्या इसका पैसा उन्हें दिया जाएगा, यह पूछने पर मैनजर अवस्थी कहते हैं, ‘कुछ नहीं मिलता है सिवाए बीवी के गुस्सा के’। इलाहाबाद यूपी ग्रामीण बैंक मुख्य शाखा, कर्वी के मैनेजर धर्मेंद्र सचान बताते हैं कि हमारे बैंक के चेयरमैन ने आरबीआइ से एक करंसी चेस्ट देने का आग्रह भी किया है। इसी बैंक के मैनेजर ने बताया कि हमारा बैंक लोगों को 2000 रुपए दे रहा है, वहीं एसबीआइ ज्यादा रुपए दे रहा है। लोगों को लग रहा है कि वही बैंक अच्छा है जो ज्यादा पैसा दे रहा है। लोग धमकी देते हैं कि हमें मेरा पैसा दे दीजिए, हम अपना खाता यहां से हटा लेंगे। इससे यह अंदेशा भी होता है कि आने वाले समय में नोटबंदी की वजह से शायद इन बैंकों को अपने ग्राहक छूटते नजर आएं। कहीं न कहीं लोगों का भरोसा बैंक से टूट रहा है। इसका असर वित्तीय समावेशन के आंकड़ों पर भी पर भी पड़ सकता है।
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