बहुजन समाजवादी पार्टी का प्रमुख चेहरा रहे सतीश मिश्रा काफी समय से पार्टी की प्रमुख बैठकों और चुनाव प्रचार से गायब रहे हैं। चाहे आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव हो या विधानसभा चुनाव के बाद हुईं बीएसपी की तीन अहम बैठकें, सभी जगह सतीश मिश्रा अनुपस्थित रहे। पार्टी में जिनकी गिनती नंबर 2 पर होती थी, उनका इस तरह पार्टी के महत्वपूर्ण मौकों से नदारद रहना सभी को खटक रहा था। पार्टी भले उनकी तबीयत का बहाना देती रही हो, लेकिन इस बात का शक सभी को था कि पार्टी सुप्रीमो किसी बड़े बदलाव की तलाश में है।

इन्हीं सब अटकलों के बीच अब पता चला है कि पार्टी सुप्रीमो ब्राह्मण चेहरे को साइडलाइन कर किसी दलित चेहरे की तलाश में है, ताकि दलित समुदाय को यह सुनिश्चित कर सके कि पार्टी अपने आधार मूल्यों को भूली नहीं है। पार्टी ने फैसला किया है कि सतीश मिश्रा अब सिर्फ पार्टी के लीगल सेल की जिम्मेदारी संभालेंगे।

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में सिर्फ एक सीट पर सिमट कर रह गई बीएसपी की यूपी में फिर से धाक कायम के लिए पार्टी सुप्रीमो इन दिनों दलित चेहरे की तलाश में हैं। द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने बताया कि सतीश मिश्रा अब पार्टी के कानूनी मामले देखेंगे और राजनीतिक मामलों से उन्हें दूर रखा गया है। बीएसपी नेता ने यह भी बताया कि विधानसभा चुनाव में पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन को लेकर भी बहनजी मिश्रा से खासी नाराज हैं।

दरअसल, विधानसभा चुनावों में बीएसपी की बागडोर सतीश मिश्रा ने संभाली हुई थी। उन्होंने पूरे राज्य में घूम-घूम कर 55 जनसभाएं की, जिनमें उनका उद्देश्य ब्राह्मणों और दलितों के बीच भाईचारा बढ़ाना था, ताकि चुनाव में इसका फायदा पार्टी को मिले। हालांकि, इसका कोई खास लाभ पार्टी को नहीं मिला और बीएसपी पूरे राज्य में सिर्फ एक ही सीट जीत पाई। ग्राउंड लेवल पर जो फीडबैक मिला उससे पार्टी सुप्रीमो ने ये नए बदलाव किए हैं। दलित समुदाय इस बात से खुश नहीं था कि पार्टी की जिम्मेदारी एक ब्राह्मण के पास है और ना ही उनके द्वारा किए जा रहे कामों से दलित समुदाय संतुष्ट था।

विधानसभा चुनाव में बीएसपी के निराशाजनक प्रदर्शन की समीक्षा करने के लिए मायावती ने तीन बैठकें की, जिनमें से सिर्फ एक ही मीटिंग में मिश्रा नजर आए। इतना ही नहीं आजमगढ़ लोकसभा उपचुनाव के स्टार प्रचारकों की लिस्ट में भी सतीश मिश्रा का नाम शामिल नहीं था।