Ayodhya Ram Mandir-Babri Masjid Case: अयोध्या के एक संत ने कहा है कि वो मस्जिद निर्माण के लिए जमीन मुहैया कराने के लिए तैयार हैं, अगर यह मस्जिद पूर्व राष्ट्रपति और प्रख्यात वैज्ञानिक एपीजे अब्दुल कलाम के नाम पर बनाई जाती है। संत ने कहा कि वो कलाम को देशभक्त मानते हैं। वहीं उन्होंने मुगल बादशाह बाबर का जिक्र करते हुए कहा कि वह विदेशी था और ‘आतंकवादी’ था। बाबर के नाम बनी ‘बाबरी मस्जिद’ साल 1992 में कार सेवकों ने ढहा दी थी। बता दें कि उत्तर प्रदेश में स्थित अयोध्या भगवान राम की जन्मभूमि के रूप में लाखों हिंदुओं की आस्था का शहर माना जाता है। साल 2010 में, इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंदिर-मस्जिद विवाद मामले में फैसला दिया कि बाबरी मस्जिद निर्माण के पूर्व में रहे जमीन के हिस्से को तीन भागों में विभाजित किया जाना चाहिए। हालांकि बाद में इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई।
अब शुक्रवार (8 मार्च, 2019) को सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक रूप से संवेदनशील राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामला मध्यस्थता के लिए भेज दिया। कोर्ट ने शीर्ष अदालत के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एफ एम आई कलीफुल्ला को मध्यस्थता के लिए गठित तीन सदस्यीय समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया है। प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि पैनल के अन्य सदस्यों में आध्यात्मिक गुरू श्री श्री रविशंकर और वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीराम पंचू भी शामिल हैं।
जानना चाहिए विवादित मामले की सुनवाई के बाद अयोध्या के संत ने एक टीवी चैनल से कहा कि वो डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम मस्जिद के लिए जमीन देंगे। इसके अलावा उन्होंने सुप्रीम कोर्ट द्वारा मामले को मध्यस्थता के लिए भेजे जाने का भी स्वागत किया। मध्यस्थता कार्यवाही उत्तर प्रदेश के फैजाबाद में होगी और यह प्रक्रिया एक सप्ताह के भीतर शुरू हो जाएगी।
संविधान पीठ के अन्य सदस्यों में न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चन्द्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस अब्दुल नजीर शामिल हैं। पीठ ने कहा कि मध्यस्थता करने वाली यह समिति चार सप्ताह के भीतर अपनी कार्यवाही की प्रगति रिपोर्ट दायर करेगी। पीठ ने कहा कि यह प्रक्रिया आठ सप्ताह के भीतर पूरी हो जानी चाहिए। न्यायालय ने कहा कि मध्यस्थता कार्यवाही की सफलता सुनिश्चित करने के लिए ‘अत्यंत गोपनीयता’ बरती जानी चाहिए और प्रिंट तथा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया इस कार्यवाही की रिपोर्टिंग नहीं करेगा।
उल्लेखनीय है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के 2010 के फैसले के खिलाफ शीर्ष अदालत में 14 याचिकाएं दायर हुई हैं। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि अयोध्या में 2.77 एकड़ की विवादित भूमि तीनों पक्षकारों- सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला के बीच बराबर बांट दी जाए। (भाषा इनपुट सहित)