रामपुर और आजमगढ़ उपचुनाव में बीजेपी की जीत के पीछे कोई और नहीं बल्कि अमित शाह की रणनीति कारगर रही। शाह ने जो योजना बनाई उसे सुनील बंसल (महासचिव संगठन) ने धरातल पर उतारा। योगी और उनकी टीम ने आक्रामक प्रचार किया, जिससे बीजेपी को उन दो सीटों पर जीत मिल सकी जहां समाजवादी पार्टी बहुत मजबूती से जमी हुई थी।
यूपी की आजमगढ़ लोकसभा सीट पर और रामपुर सीट पर हुए उपचुनाव में बीजेपी उम्मीदवार जीत चुके हैं। दोनों सीटें सपा का गढ़ मानी जाती थीं, लेकिन बीजेपी ने यहां पर इस बार कब्जा जमा लिया है। रामपुर से बीजेपी उम्मीदवार घनश्याम लोधी चुनाव जीते हैं तो वहीं आजमगढ़ से निरहुआ ने जीत हासिल की है।
बीजेपी की जीत के पीछे कई और फैक्टर रहे। जैसे आजमगढ़ में बीएएसपी उम्मीदवार गुड्डू जमाली के होने से भगवा दल को फायदा मिला। जमाली ने मुस्लिम वोटों में सेंध लगाई। इसके बाद निरहुआ की राह आसान होती चली गई। त्रिकोणीय संघर्ष में वो धर्मेंद्र यादव को 8 हजार से ज्यादा वोटों से पटखनी देने में कामयाब रहे। ये बीजेपी की बड़ी जीत मानी जा रही है, क्योंकि आजमगढ़ से बीजेपी 2014 और 2019 में भी नहीं जीत पाई थी। एक बार मोदी लहर थी तो दूसरी बार पुलवामा।
रामपुर में देखा जाए तो खुद आजमखान ने बीजेपी की मदद की। उन्होंने आसिम रजा जैसे कमजोर उम्मीदवार के सहारे अपनी लड़ाई लड़ी। वो अपने परिवार के लिए टिकट मांग रहे थे। लेकिन आखिरी समय में अखिलेश ने उनकी पसंद के उम्मीदवार को ही मैदान में उतार दिया। बीजेपी जानती थी कि मुस्लिम वोटरों के साथ खुद आजम खान भी अखिलेश ने खुश नहीं हैं। दूसरी तरफ आजम का मलाल था कि जेल में होने के दौरान अखिलेश ने उनकी वैसे मदद नहीं की जैसे करनी चाहिए थी। उन पर बहुत से केस भी दर्ज हैं। जानकार मानते हैं कि रामपुर गिफ्ट में देकर उन्होंने अपना फायदा किया।
माना जा रहा है कि उप चुनावों की जीत से बीजेपी को मिशन 2024 में काफी सहायता मिलेगी। हालांकि सुनील बंसल अब यूपी से बाहर निकलना चाहते हैं लेकिन टीम योगी ऐसा नहीं चाहती। उसे भरोसा है कि सुनील की मौजूदगी 2024 में कारगर रहने वाली है। दूसरी तरफ सपा सत्ता में आने का मंसूबा असेंबली चुनाव के पहले तक बांध रही थी। उसके लिए ये हार सपनों को तोड़ने सरीखी है। अब उसे सत्ता तक पहुंचने के लिए और ज्यादा संघर्ष और मेहनत की दरकार होगी।