काफी समय से कांग्रेस यूपी में वोटों के सूखे का सामना कर रही है। 2009 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने यूपी की 80 लोकसभा सीटों में से 21 पर जीत दर्ज की थी, जिनमें से 13 पूर्वी उत्तर प्रदेश में थीं। उस वक्त पार्टी के वोट बैंक में सवर्णों का हाथ काफी ज्यादा था। वहीं, 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान प्रदेश में सिर्फ 2 सीट पर सिमटी कांग्रेस का सवर्ण वोट बैंक भी सरक गया। यह स्थिति 2017 के विधानसभा चुनाव में भी नजर आई। ऐसे में पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी ने अपनी बहन प्रियंका को पूर्वी उत्तर प्रदेश की कमान सौंपी है। राजनीतिक विश्लेषकों ने इसे कांग्रेस का ट्रम्प कार्ड करार दिया है। उनका मानना है कि पार्टी ने पूर्वी यूपी में अपनी धाक दोबारा जमाने और सवर्ण वोटर्स को खींचने के लिए यह कदम उठाया है।

पूर्वांचल से सवर्णों को साधने की कोशिश- बताया जाता है कि कभी कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक रहा सवर्ण मतदाता अब काफी हद तक बीजेपी की ओर शिफ्ट हो चुका है। एक आंकड़े के मुताबिक उत्तर प्रदेश में कुल वोटर्स का 25 से 28 फीसदी हिस्सा सवर्णों का है। जिनमें पूर्वी उत्तर प्रदेश के कुशीनगर, गोरखपुर, संत कबीरनगर, भदोही, वाराणसी, सुल्तानपुर जैसे जिलों में ब्राह्मण मतदाताओं का खासा असर है। कांग्रेस पार्टी को उम्मीद है कि प्रियंका के आने से बीजेपी से नाराज चल रहे सवर्ण और खासकर ब्राह्मण वोटर कांग्रेस के साथ फिर से जुड़ सकते हैं।

2009 में पूर्वांचल से मिलीं 13 सीट- बता दें कि 2009 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस ने उत्तर प्रदेश में कुल 21 सीटें जीती थी। लेकिन गौर करने वाली बात है इनमें से 13 सीटें अकेले पूर्वी यूपी से आईं थी। इन 13 सीटों में परंपरागत रायबरेली और अमेठी के अलावा महराजगंज, कुशीनगर, सुल्तानपुर, प्रतापगढ़, फैजाबाद, श्रावस्ती, उन्नाव, बाराबंकी, बहराइच, धौरहरा, डुमरियागंज हैं। इस क्षेत्र से जीतने वाले कई उम्मीदवार तत्कालीन यूपीए सरकार में केंद्रीय मंत्री भी बनाए गए थे। जिनमें आरपीएन सिंह, बेनी प्रसाद वर्मा,और जितिन प्रसाद शामिल हैं। बाराबंकी की आरक्षित सीट से जीत दर्ज करने वाले पीएल पुनिया को राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग का अध्यक्ष बनाया गया था। गौरतलब है कि 2014 के लोकसभा चुनावों में भी कांग्रेस ने जिन सीटों में 1 लाख से अधिक वोट पाए थे उनमें 9 सीटें पूर्वी यूपी की थी।

पूर्वी यूपी में दिग्गजों से होगा मुकाबला- बता दें कि प्रियंका गांधी को उस पूर्वी यूपी का प्रभारी बनाकर मैदान में उतारा गया है जिसने देश को कई प्रधानमंत्री दिए हैं। मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद वाराणसी से सांसद है। प्रियंका की राजनीति में एंट्री से पूर्वांचल का सियासी पारा चढ़ने के पूरे आसार है। लेकिन उन्हें इस क्षेत्र में कई दिग्गजों का भी सामना करना होगा। इस क्षेत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (वाराणसी) के अलावा गृह मंत्री राजनाथ सिंह (लखनऊ), उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या (फूलपुर) और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दबदबे वाली गोरखपुर जैसी सीटें आती हैं।

कठिन दौर में हो रही प्रियंका की एंट्री- 2009 की तर्ज पर अगर कांग्रेस के प्रदर्शन को देखे तो 2014 में मोदी लहर के दौरान पार्टी को करारी हार का सामना करना पड़ा। कांग्रेस अपनी परंपरागत सीट रायबरेली और अमेठी ही जीत सकी थी। पार्टी को राज्य में महज 7.53% वोट मिले थे और वो सिर्फ 2 सीटों पर सिमट कर रह गई थी। जिसके बाद से ही पार्टी के अंदर से प्रियंका को राजनीति में लाने की आवाजें जोर पकड़ने लगी थीं। इसके अलावा 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस महज 7 सीटें ही जीत सकी। उसे 6.25% वोट ही मिल सका। गौरतलब है कि प्रियंका का यूपी में पदार्पण ऐसे समय हो रहा है जब राज्य में भाजपा ने अपना अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन किया है।

बता दें कि 2104 के चुनाव में कांग्रेस का वोटशेयर 19% था, जो 2014 में घटकर 9% ही रह गया। जिसके मद्देनजर प्रियंका गांधी को सियासी मैदान में उतारकर कांग्रेस पार्टी अपने खत्म होते जनाधार को बढ़ाने की कोशिश कर रही है।