Jignasa Sinha
हाथरस जिले के गांव में जहां 19 वर्षीय युवती के साथ गैंगरेप की घटना हुई, वहां रहने वाले दलितों का कहना है कि उनके साथ गांव में भेदभावपूर्ण व्यवहार किया जाता है। हर बार जब वह दुकान पर जाते हैं तो दुकानदार उन्हें दूरी पर खड़े होने को कहते हैं। जाति को लेकर अपशब्द तो उनके लिए अब आम बात हो गई है। द इंडियन एक्सप्रेस के साथ बातचीत में गांव के दलितों ने बताया कि गांव में दलितों के बस 15 परिवार ही हैं।
उन्होंने बताया कि गांव की कुल आबादी 600 के करीब परिवारों की है। इनमें से आधे ठाकुर जाति के परिवार हैं। वहीं 100 परिवार ब्राह्मण समुदाय के हैं। गांव के दलितों ने बताया कि उनके शमशान भी अलग है और गांव के मंदिर में भी उन्हें प्रवेश नहीं दिया जाता है। गैंगरेप की घटना के बाद जहां पूरे देश में इसकी चर्चा है, इसके बावजूद गांव में रहने वाले दलित परिवारों का मानना है कि उन्हें नहीं लगता कि अभी भी हालात बदलेंगे। यहां तक कि उन्हें तो डर है कि जब यह मामला मीडिया में दिखना बंद हो जाएगा तो हो सकता है कि उन्हें इसका खामियाजा भी भुगतना पड़े।
दलितों के अनुसार, उनमें से कुछ के पास ही जमीन है और अधिकतर ऊंची जाति के लोगों के खेतों में मजदूरी ही करते हैं। पीड़िता की मां का कहना है कि बेटी की मौत के बाद भी उनके ठाकुर और ब्राह्मण पड़ोसी उनके घर उन्हें सांत्वना देने नहीं आए हैं। “हम उनके खेतों से चारा लाते हैं तो हमें लगा था कि शायद वो तो एक बार आएंगे ही।”
पीड़िता की ही एक अन्य रिश्तेदार महिला ने बताया कि “जिस तरह से उसका अंतिम संस्कार हुआ, उससे हम हैरान हैं। मेरी भी बेटियां हैं…पुलिस ऐसा कभी नहीं करती अगर महिला कोई ठाकुर होती।”
पीड़िता की इस रिश्तेदार ने याद करते हुए बताया कि जब वह शादी होकर इस गांव में आयी थी तो उनकी डोली को गांव के मुख्य रास्ते से ले जाने की इजाजत नहीं मिली थी। उनके परिजनों को लंबा रास्ता तय कर डोली ले जानी पड़ी थी। इस बात को लेकर मुझे रोना आया लेकिन मेरे परिवार के लोगों ने मुझसे कहा कि यह सामान्य बात है और हमें समझौता करना सीखना चाहिए।
इसी तरह मौत में भी भेदभाव होता है। एक अन्य महिला ने बताया कि जब उसकी मां की मृत्यु हुई थी तो हम शव को घर के बाहर रखना चाहते थे क्योंकि घर के अंदर जगह काफी कम थी लेकिन गांव के लोगों ने उन्हें इसकी भी इजाजत नहीं दी थी।
गांव के ही एक अन्य दलित व्यक्ति ने बताया कि “मेरे दो बेटे हैं जिनकी उम्र 10 साल और पांच साल है। वो हाथरस के एक सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं। वो अक्सर शिकायत करते हैं कि स्कूल में उनके साथी उनसे भेदभावपूर्ण व्यवहार करते हैं क्योंकि हम दलित और अछूत हैं। मैं चाहता हूं कि वह पढ़ें और इस गांव से बाहर निकलें। उन्हें भी वो ही काम करने के लिए ना मजबूर किया जाए जो उनके माता-पिता करते हैं। वो बेहतर के हकदार हैं लेकिन हम क्या कर सकते हैं? शिक्षक, पुलिस, प्रशासक सभी को ब्राह्मण या ठाकुर हैं।”
हालांकि गांव के प्रधान ने इन आरोपों से इंकार किया है और कहा है कि जाति को लेकर गांव में कोई तनाव नहीं है। उन्होंने ये भी कहा कि जो लोग ये आरोप लगा रहे हैं वो झूठ बोल रहे हैं। प्रधान ने कहा कि यहां शांति है।