यूपी में ज‍िस जमीन का कोई रिकॉर्ड ही नहीं है, उसे यमुना अथॉर‍िटी ने खरीद ल‍िया था। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) ने जब इस गलती को पकड़ा तो खुलासा हुआ। प्राधिकरण ने भूमि के रिकॉर्ड का सत्यापन नहीं कराया था। इसकी वजह से दो करोड़ 71 लाख रुपये का नुकसान उठाना पड़ा। रिपोर्ट में यह भी खुलासा किया गया है कि प्राधिकरण ने रिकार्ड में अनुपलब्ध भूखंड की खरीद पर ‘स्टाम्प’ शुल्क के रूप में 10 लाख रुपये खर्च किए थे।

हाल में उत्तर प्रदेश विधानसभा में पेश की गई रिपोर्ट में कहा गया है कि उप्र पावर ट्रासंमिशन कॉरपोरेशन लिमिटेड ने (जून 2012 को) प्राधिकरण से 765 केवी की क्षमता वाले सब-स्टेशन के निर्माण के लिए यमुना एक्सप्रेसवे के नजदीक गौतम बुद्ध नगर के जहांगीरपुर गांव में 75 एकड़ जमीन आवंटित करने का अनुरोध किया था।

सब-स्टेशन के लिए जमीन खरीदने की प्रक्रिया प्राधिकरण के अधिकारियों ने शुरू की और इस सिलसिले में एक प्रस्ताव को उसी महीने तत्कालीन मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) ने मंजूरी प्रदान की। प्राधिकरण ने (दिसंबर 2012 से दिसंबर 2015 तक) 150 खसरा में विस्तारित 54.365 हेक्टेयर जमीन के लिए बैनामा किया।

सीएजी की रिपोर्ट में साफ बताया गया है, ”ऑडिट में पाया गया कि राजस्व रिकार्ड के 150 खसरा में 17 खसरा 6.3990 हेक्टेयर था। हालांकि, प्राधिकरण ने भूमि रिकार्ड में वास्तविक रूप से उपलब्ध क्षेत्र को नजरअंदाज किया, या जिला पदाधिकारी द्वारा सौंपी गई सत्यापन रिपोर्ट की अनदेखी की। और इस 17 खसरा से जुड़े बैनामा के जरिये 7.98935 हेक्टेयर जमीन खरीदी।”

प्राधिकरण ने भूमि के लिए 10 लाख रुपये स्टाम्प शुल्क पर भी खर्च किये

रिपोर्ट में कहा गया है, ”नतीजतन, 1.59035 हेक्टेयर जमीन के लिए भुगतान किया गया, जो संबद्ध खसरा या सत्यापन रिपोर्ट में असल में उपब्लध नहीं थी।” रिपोर्ट के अनुसार, ”प्राधिकरण ने 7.98935 हेक्टेयर जमीन की खरीद के लिए मुआवजे के तौर पर 13.60 करोड़ रुपये का भुगतान किया। इसके परिणामस्वरूप, प्राधिकरण को 2.71 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।” इसमें कहा गया है, ”प्राधिकरण ने रिकार्ड में अनुपलब्ध भूमि के लिए 10 लाख रुपये स्टाम्प शुल्क पर भी खर्च किया।”

सीएजी ने इस बात का उल्लेख किया है कि प्राधिकरण ने (जुलाई 2021 को) स्वीकार किया कि 17 बैनामा और राजस्व रिकार्ड में जिक्र किये गये क्षेत्र में 1.5935 हेक्टेयर का अंतर है।” सीएजी ने कहा, ”प्राधिकरण अनुपलब्ध भूमि को खरीदने के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार है।” इसने कहा कि विषय की जानकारी सरकार को मार्च 2021 को दी गई, लेकिन जवाब (नवंबर 2021 तक) नहीं मिल सका था।