उत्तर प्रदेश में योगी सरकार ने पुलिस महानिदेशक यानी डीजीपी की नियुक्ति को लेकर कैबिनेट में एक प्रस्ताव पास किया है। इसके तहत अब डीजीपी के चयन के लिए यूपीएससी यानी संघ लोक सेवा आयोग को नाम भेजने की जरूरत नहीं होगी। राज्य खुद ही नाम तय कर सकेगा। नए नियम के अनुसार डीजीपी का कार्यकाल भी 2 साल को हो जाएगा। सरकार के इस फैसले को लेकर विपक्ष ने आपत्ति जताई है।
अब क्या है नई व्यवस्था
योगी सरकार ने डीजीपी के चयन के लिए हाईकोर्ट के रिटायर जज की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई थी। इसमें मुख्य सचिव, यूपीएससी की ओर से नामित एक व्यक्ति, उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष या उनकी ओर से नामित व्यक्ति, अपर मुख्य सचिव या प्रमुख सचिव गृह और एक रिटायर डीजीपी कमेटी में होंगे। पंजाब के बाद यूपी दूसरा ऐसा राज्य है जहां डीजीपी की नियुक्ति को लेकर अलग व्यवस्था बनाई गई है। यूपी में डीजीपी का कार्यकाल अब दो साल का हो गया है। यूपी में आखिरी स्थायी डीजीपी मुकुल गोयल थे। इन्हें 11 मई 2022 को पद से हटा दिया गया। इसके बाद से कार्यवाहक डीजीपी ही नियुक्त किए गए हैं।
अखिलेश यादव ने कसा तंज
योगी सरकार के इस फैसले के बाद समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव ने एक्स पर पोस्ट किया कि ‘सुना है किसी बड़े पुलिस अधिकारी को स्थायी पद देने और और उसका कार्यकाल 2 साल बढ़ाने की व्यवस्था बनायी जा रही है… सवाल ये है कि व्यवस्था बनाने वाले ख़ुद 2 साल रहेंगे या नहीं। कहीं ये दिल्ली के हाथ से लगाम अपने हाथ में लेने की कोशिश तो नहीं है। दिल्ली बनाम लखनऊ 2.0’
यूपी में पहले DGP की नियुक्ति को लेकर क्या थी व्यवस्था?
यूपी में पहले व्यवस्था थी कि सरकार पुलिस सेवा में 30 साल पूरे कर चुके उन अधिकारियों का नाम ही यूपीएससी को भेजती थी जिनका कार्यकाल कम से कम 6 महीने बचा हो। इसके बाद यूपीएसपी तीन नामों का चयन कर सरकार को भेजती थी। इन्हीं में से किसी एक को डीजीपी नियुक्त किया जाता था।