लेकिन उन्हें जिस प्रकार की तैनाती मिलनी चाहिए, वह नहीं मिल सकी है। बेदिल की पिछले दिनों इनसे मुलाकात हो गई। मुलाकात लंबे समय के बाद हुई, लिहाजा एसीपी के बैज को देखकर बेदिल को भी जिज्ञासा हुई। जब उनसे कहा कि मिठाई तो बनती है, तो अधिकारी बोले कि मिठाई तो अभी खा लीजिए, लेकिन यह तो पूछिए कि कहां तैनाती हुई है। फिर उन्होंने बताया कि ऐसी जगह पोस्टिंग है जहां न तो कुछ खास काम दिखाने के लिए है, न ही आगे कोई रास्ता दिख रहा। बेदिल ने जब चुटकी ली कि अपने मन मुताबिक पद लीजिए तो जवाब मिला कि बिना मुख्यालय में पहुंचे आला पद मिलता कहां है?
अंदरखाने डर
पिछले आठ साल से राजधानी की सत्ता पर काबिज पार्टी को इस बार निगम के चुनाव में भी दिल्ली की आम जनता ने दिल खोल कर वोट दिया। पार्टी ने जादुई आंकड़े को बड़े ही आसानी से पार कर लिया। जीत दर्ज करने के साथ ही पार्टी के अंदरखाने डर का माहौल बना हुआ है। डर की वजह विपक्ष का एक बयान है, जिसको लेकर पार्टी का आला नेतृत्व चिंतित है और आए दिन नवनिर्वाचित पार्षदों कर उनकी खोज-खबर ले रहा है।
डर इस बात का है कि कहीं पूरी मेहनत पर विपक्ष पानी ना फेर दे। आमतौर पर निगम में कमजोर रहने वाला विपक्ष भी इस बार संख्या बल के मुताबिक काफी मजबूत स्थिति में है। ऐसे में जब तक महापौर चुनाव नहीं हो जाता, तब तक पार्टी के अंदरखाने दलबदल का डर बना रहेगा। इसको लेकर पार्टी का हर वरिष्ठ नेता इस बात को लेकर चर्चा कर रहा है कि कहीं चुनाव से पहले ही विपक्ष खेल ना कर दे।
मजबूरी में भर्ती
ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण में संविदा पर नौकरी पाने वाले ज्यादातर उच्चाधिकारियों और वहां लंबे समय से महत्त्वपूर्ण पदों पर जमे कर्मचारियों के रिश्तेदारों की भर्ती किया जाना सुर्खियों में रहा। मामला अब दबने लगा है। इसे अधिकारी बनाम सामाजिक कार्यकर्ताओं के बीच की लड़ाई मानकर शासन स्तर से भी इसके बाबत कोई कड़ा या नया निर्देश जारी नहीं होने से पुरानी व्यवस्था फिर से लौट आई है।
मंजूर पदों की तुलना में कई गुना अधिक लोगों की संविदा के तहत भर्ती होने के मामले की जांच अभी तक सिफर रही है। इस बीच बेदिल को पता चला है कि पहले की संविदा के तहत हुई भर्ती की जांच के बजाय नए लोगों को संविदा पर रखा जा रहा है। तर्क दिया जा रहा है कि काम के अनुरूप अभी भी लोगों की संख्या कम है। भले ही मंजूरी कम संख्या की है, लेकिन काम को प्रभावित होने से बचाने के लिए नए लोगों को रखना मजबूरी है। चाहे नई भर्तियों पर रखे जाने वाले भी बड़े नेताओं या अधिकारियों के नजदीकी हों।
रिपोर्ट कार्ड जरूरी
निगम चुनाव के बाद दिल्ली के सांसदों के कामकाज को लेकर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। इस बार दिल्ली की सातों लोकसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद हैं। सांसदों की सीटों का आंकलन निगम वार्ड के आधार पर हो रहा है तो सांसदों के कामकाज की समीक्षा करने की बात की जा रही है।
इस बार के चुनाव में दिल्ली के चार सांसद ऐसे रहे हैं, जिनके क्षेत्र में भाजपा की सीट का आंकड़ा बीस से नीचे रहा है। उनमें सबसे अधिक इलाके भाजपा के गढ़ कहे जाने वाले रहे हैं। यहां बनिया, पंजाबी, मध्यम वर्गीय परिवार और ग्रामीण क्षेत्र के लोग रहते हैं। सिर्फ तीन सांसद ही अपने इलाके में निगम की संीटों के मामले में लाज बचा पाए।
बेअसर रही अपील
नगर निगम चुनाव के नतीजों ने साफ कर दिया है कि सिख समाज किसी की अपील या आदेश से बंधा हुआ नहीं है। साथ ही दिल्ली के सिखों ने यह भी स्पष्ट कर दिया कि गुरुद्वारा कमेटी की राजनीति अलग बात है और आम चुनावों की राजनीति अलग। कमेटी प्रधान के फतवा के वे ऋणी नहीं हैं। बता दें कि चुनाव के पहले दिल्ली गुरुद्वारा सिख प्रबंधक कमेटी के प्रधान मंच पर आए और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष व भाजपा सांसदों की मौजूदगी में सिख समाज से भाजपा को वोट देने की अपील की।
उन्होंने दावा किया कि सिख भाजपा को डेढ़ सौ सीटों पर जीताएंगे, लेकिन उनकी अपील बेअसर हो गई। भाजपा सिख बहुल क्षेत्रों में ज्यादातर सीटें हार गई। अब सिख गलियारों में दो तरह की चर्चाएं हैं, एक तो यह तय हो गया कि कमेटी प्रधान सिखों के प्रधान नहीं हो सकते और दूसरा अगर वे नहीं तो सिखों का असली प्रधान आखिर कौन!
पद के लिए भागदौड़
चुनाव परिणाम आने के बाद निगम में महत्वपूर्ण पदों के लिए आप के आला नेताओं के यहां दौड़भाग शुरू हो गया है। पार्टी के प्रमुख अरविंद केजरीवाल, मनीष सिसोदिया और अन्य मंत्रियों के साथ निगम प्रभारी दुर्गेश पाठक के यहां भी नेताओं के दरबार लग रहे हैं। एक मुस्लिम पार्षद ने तो यह जाहिर कर दिया है कि उन्हें एकीकृत निगम में आला पद मिलना तय है।
कारण, उनके पिता कई पार्टियों में रह कर विधानसभा जीते और इस समय आप के विधायक हैं। पार्षद भी पिता के साथ कांग्रेस छोड़ आप में आ गए और निगम में भी कई पदों पर रह चुके हैं। बेदिल ने जब इसकी तहकीकात की तो पता चला कि इस पार्षद ने उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया से मिल कर यह आगाह करा दिया है कि उन्हें निगम में कोई बड़ा पद मिलना तय है। तर्क यह है कि उनका अनुभव और इलाके में वर्चस्व पद पाने के लिए काफी है।
-बेदिल