फेसबुक पर करीब 2 साल पहले बीफ को लेकर पोस्ट करने के लिए झारखंड में एक लेक्चरर को शनिवार (25 मई) शाम गिरफ्तार कर लिया गया। हालांकि, झारखंड पुलिस का दावा है कि सोशल मीडिया पर पोस्ट करने के बाद आरोपी लापता हो गया था। यह मामला सामने आने के तुरंत बाद ही उसके खिलाफ केस दर्ज कर लिया गया था।
एफबी पर लिखी थी यह बात: जानकारी के मुताबिक, जीत राय हंसदा जमशेदपुर के सरकारी स्कूल और महिला कॉलेज में लेक्चरर हैं। उन्होंने मई 2017 के दौरान फेसबुक पर पोस्ट की थ्ज्ञी। उन्होंने लिखा था, ‘‘जानवरों की कुर्बानी और बीफ खाना आदिवासी त्योहार जोहर डांगरी मैदान का हिस्सा है। यह आदिवासियों का सांस्कृतिक अधिकार है।’’ कोर्ट के रिकॉर्ड के मुताबिक, टीचर ने गोवंश के वध के खिलाफ कानून की आलोचना की थी। साथ ही, पूछा था कि आदिवासियों को ‘हिंदुओं की तरह’ क्यों रहना चाहिए?
National Hindi News, 27 May 2019 LIVE Updates: पढ़ें आज की बड़ी खबरें
इन धाराओं में दर्ज हुआ था केस: जमशेदपुर पुलिस ने आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 153ए, 295ए और 505 के तहत केस दर्ज किया था। पुलिस का दावा था कि हंसदा की पोस्ट लोगों के बीच नफरत की भावना भड़का सकती है। यह शिकायत साक्षी पुलिस थाने के इंचार्ज अनिल कुमार सिंह ने दर्ज कराई थी।
2 साल से लापता था आरोपी: हंसदा की गिरफ्तारी को लेकर सिंहभूम पूर्व के सीनियर एसपी अनूप बिरथ्रे ने बताया कि चार्जशीट फाइल होने के बाद से वह लापता था। वहीं, हंसदा के वकील शादाब अंसारी ने पुलिस के दावे की पुष्टि की है। हालांकि, उन्होंने यह भी बताया है कि अप्रैल में हंसदा की अग्रिम जमानत याचिका खारिज हो गई थी। उस वक्त कहा गया था कि अगर वह लापता है तो उसे अग्रिम जमानत नहीं मिल सकती है।
अप्रैल 2018 में भी हुई थी सुनवाई: हंसदा के तत्कालीन वकील ने अप्रैल 2018 की सुनवाई के दौरान कहा था कि किसी भी चीज की आलोचना करना कानूनन अपराध नहीं हो सकता है। हंसदा ने सिर्फ अपनी खाने की आदतों और अपने समुदाय की संस्कृति के बारे में बात की थी। उसके पास अपने सांस्कृतिक अधिकारों की रक्षा करने का अधिकार है।
कोर्ट ने कहा- ये आरोप गंभीर: जमशेदपुर के अडिशनल सेशन जज-XIII ने कहा था कि हंसदा के बयान से पहले जांच अधिकारी, हंसदा के कॉलेज प्रशासन और प्रिंसिपल ने कहा था कि इस तरह के पोस्ट से लोगों में नफरत की भावना बढ़ती है। अदालत ने कहा कि हंसदा के खिलाफ लगाए गए आरोप गंभीर हैं। इस प्रकार की टिप्पणियों को किसी भी समुदाय के सांस्कृतिक अधिकारों के संरक्षण का हिस्सा नहीं माना जा सकता है। इसके बाद कोर्ट ने अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी थी। हालांकि, हंसदा के परिजनों ने इस मामले में कोई टिप्पणी नहीं की है।
