खगड़िया जिले के अलौली गांव में रेलवे लाइन का काम बहुत ही धीमी स्पीड से चल रहा है। 1996-97 में स्वीकृत होने के 28 साल बाद भी केवल 19 किलोमीटर ट्रैक ही चालू है और दरभंगा जिले के कुशेश्वरस्थान तक 23 किलोमीटर का ट्रैक अभी भी अधूरा है। इसका नतीजा बेहद ही विडंबनापूर्ण हैं। अलौली की रहने वाली सुशीला देवी की जमीन पर अब एक रेलवे स्टेशन है। वह ट्रेनों के अभाव में गायों और भैंसों का आश्रय स्थल बन गया है।
तत्कालीन केंद्रीय रेल मंत्री रामविलास पासवान द्वारा अपने जन्मस्थान सहरबन्नी के पास, कुशेश्वरस्थान होते हुए सकरी-हसनपुर लाइन के साथ, खगड़िया-कुशेश्वरस्थान बिहार की सबसे पुरानी रेल परियोजनाओं में से एक है। अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित अलौली सीट से ही पासवान के पांच दशक लंबे राजनीतिक जीवन की शुरुआत हुई थी।
खगड़िया-अलौली खंड चुनावों के दौरान ही चालू हुआ
यहां तक कि 19 किलोमीटर लंबा खगड़िया-अलौली खंड भी विधानसभा चुनावों के दौरान ही चालू हुआ, जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अप्रैल में इसका उद्घाटन किया था। आरटीआई के तहत द इंडियन एक्सप्रेस द्वारा प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, बिहार में 1996 से कुल 53 प्रोजेक्ट, नई लाइनों से लेकर आमान परिवर्तन और दोहरीकरण तक लंबित हैं। इनमें से कई परियोजनाएं बिहार के तीन केंद्रीय रेल मंत्रियों, रामविलास पासवान, नीतीश कुमार और लालू प्रसाद के कार्यकाल के दौरान शुरू की गई थीं।
सुशीला देवी ने कहा, “इस लाइन का असली फायदा तब होगा जब यह कुशेश्वरस्थान तक पूरी हो जाएगी, जो स्थानीय उपज बेचने के लिए एक अच्छा बाजार है। फिलहाल, अलौली स्टेशन से दो ट्रेनें चल रही हैं, लेकिन उनके समय असुविधाजनक हैं और वे बहुत धीमी हैं। हमें एक ट्रेन सुबह जल्दी और एक शाम को चलानी चाहिए, ताकि लोग नजदीकी शहर के केंद्र यानी खगड़िया, तक जा सकें।”
देवी ने कहा कि चूंकि पूरा क्षेत्र अक्सर करेह (बागमती) नदी से भर जाता है, इसलिए संपर्क अक्सर बाधित हो जाता है और इसे इन भागों से पलायन का एक कारण मानते हैं। अलौली में कभी पासवान का दबदबा था, लेकिन पिछले दो बार राजद ने जीत हासिल की है। इस चुनाव में राजद के मौजूदा विधायक रामवृक्ष सदा का मुकाबला जदयू के रामचंद्र सदा से है।
ये भी पढे़ं: Bihar Election Exit Poll LIVE: आज आएंगे एग्जिट पोल, कौन बनाएगा बिहार में सरकार
रिटायर्ड टीचर धर्मेंद्र प्रसाद सिंह ने कहा उन्हें आज भी याद है जब गांव तक रेल संपर्क की घोषणा हुई थी। सिंह कहते हैं, “हमें उम्मीद थी कि रामविलास जी हैं तो ट्रेन यहां तक जरूर आएगी।” वे मक्के की ज्यादा पैदावार वाले इस क्षेत्र में माल ढुलाई बढ़ाने की खोई हुई संभावना पर अफसोस जताते हैं। उन्होंने कहा, “अगर हम सड़क मार्ग से जल्दी पहुंच सकते हैं तो ट्रेन का क्या मतलब है?”
यह पूछे जाने पर कि क्या अधूरी रेलवे परियोजना का नतीजों पर कोई असर पड़ेगा तो अलौली के रहने वाले लालू रजक ने कहा, “सपना सच हो रहा है। तो क्या आपको हमसे वोट मिलेंगे? पूछने की जरूरत ही नहीं है।” हालांकि, वह भी चाहते हैं कि काम की स्पीड तेज हो। अलौली से लगभग 30 किलोमीटर दूर, कुशेश्वरस्थान के बाजार में, सड़क किनारे की दुकानों में एक विशेषता समान है। वे सभी लकड़ी के काउंटरों पर बड़े करीने से सजाए गए प्लास्टिक की बोतलों में पेट्रोल बेचते हैं। यह बाढ़-ग्रस्त और आर्थिक रूप से पिछड़े क्षेत्र में पेट्रोल पंपों की कमी को दिखाता है।
बाजार में मोबाइल रिपेयर की दुकान चलाने वाले सुजीत पासवान बताते हैं कि सबसे नजदीकी बड़ा केंद्र दरभंगा है। यह भी करी 70 किलोमीटर दूर है। कुशेश्वरस्थान को दरभंगा से जोड़ने वाली एक और रेलवे लाइन भी अधूरी है। इसे 2005-06 में तत्कालीन केंद्रीय रेल मंत्री लालू प्रसाद के कार्यकाल में 337 करोड़ रुपये की लागत से मंजूरी मिली थी।
कुशेश्वरस्थान सीट 2008 में परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई
सुजीत ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “हमारे लिए सबसे नजदीकी स्टेशन हरनगर है, जो 8 किलोमीटर दूर है। लेकिन यह बहुत छोटा स्टेशन है। हम ज्यादातर बसों पर निर्भर रहते हैं, जो कई बार महंगी और समय लेने वाली होती हैं।” अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व कुशेश्वरस्थान सीट 2008 में परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई। 2020 के विधानसभा चुनाव में और फिर 2021 में हुए उपचुनाव में जेडीयू ने यह सीट जीती। इस बार, जेडीयू ने पूर्व कांग्रेस नेता अतीरेक कुमार को मैदान में उतारा है।
सुगौली में एक रेलवे लाइन पूरी होने का इंतजार कर रही
कुशेश्वरस्थान से लगभग 250 किलोमीटर दूर, पूर्वी चंपारण जिले के सुगौली में एक और रेलवे लाइन दो दशकों से भी ज्यादा समय से पूरी होने का इंतजार कर रही है। 151 किलोमीटर लंबी इस लाइन को 2003-04 में 2,702 करोड़ रुपये की लागत से मंजूरी दी गई थी, जब नीतीश कुमार केंद्रीय रेल मंत्री थे। पिछले 22 सालों में, यह लाइन केवल मुजफ्फरपुर जिले के देवरिया तक ही पहुंच पाई है और सुगौली तक का हिस्सा अभी भी निर्माणाधीन है।
ये भी पढ़ें: Bihar Election: एग्जिट पोल और ओपिनियन पोल में क्या होता है अंतर? जानें कैसे किया जाता है सर्वे
सुगौली स्टेशन पर अपनी दुकान पर किताबें बेचने से हटकर खाने-पीने की दुकान चलाने वाले भरत प्रसाद ने इस क्षेत्र के बदलते रेलवे परिदृश्य को देखा है। प्रसाद ने कहा, “यह लाइन पहले मीटर गेज हुआ करती थी, जिसे पासवान के कार्यकाल में ब्रॉड गेज में बदल दिया गया। यहां से कोई बड़ी ट्रेन नहीं निकलती, लेकिन प्रमुख रूटों पर इसके स्टॉप जरूर हैं।” प्रसाद आगे कहते हैं कि यह रेलवे लाइन कोई चुनावी मुद्दा नहीं है।
सुगौली में राजद उम्मीदवार का नामांकन रद्द होने के बाद चुनाव एकतरफा हो गया है। 2020 के चुनाव में आरजेडी के शशि भूषण सिंह जीते थे। इस बार तेजप्रताप यादव की जनशक्ति जनता दल के उम्मीदवार श्याम किशोर चौधरी और लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) के उम्मीदवार राजेश कुमार के बीच मुकाबला है।
राजनीति मुद्दों के आधार पर लड़ी जानी चाहिए- सत्यनारायण शर्मा
सुगौली स्टेशन के सामने वेटिंग एरिया में बैठे 65 साल के सत्यनारायण शर्मा ने कहा, “राजनीति मुद्दों के आधार पर लड़ी जानी चाहिए। वे लालू बनाम नीतीश की लड़ाई लड़ रहे हैं। यह लाइन (सुगौली तक) कई दूरदराज के गांवों को जोड़ेगी और इससे पटना आने-जाने के पैसे बचेंगे।” हालांकि, ऑटो चालक राहुल शर्मा ज्यादा आशान्वित हैं। शर्मा ने कहा, “लालू जी ने बिहार की सड़कों को गड्ढों में डाल दिया था। कम से कम नीतीश ने जमीन पर कुछ काम तो दिखाया है।”
लालू द्वारा स्वीकृत प्रमुख परियोजनाओं में अररिया-सुपौल, नवादा-लक्ष्मीपुर, आरा-भभुआ रोड और मुजफ्फरपुर-दरभंगा लाइनें शामिल हैं। बिहार के लगभग 80% हिस्से को कवर करने वाले रेल नेटवर्क की देखरेख करने वाले ईस्ट सेंट्रल रेलवे द्वारा दिए गए आरटीआई जवाब से पता चलता है कि कई परियोजनाओं को सालों से स्थगित रखा गया है, रोक दिया गया है। एक रिटायर्ड रेलवे अधिकारी का कहना है कि बिहार में रेलवे नेटवर्क के विस्तार पर ध्यान देने की जरूरत है। उन्होंने कहा, “फिलहाल, हम या तो इंटरस्टेट यात्रा के लिए एक्सप्रेस ट्रेनें शुरू करते हैं या मेट्रो परियोजनाओं की घोषणा करते हैं। लेकिन बिहार के एक जिले को दूसरे जिले से जोड़ने की बात कौन करेगा।”
