अंकिता बोस
पश्चिम बंगाल निवासी हिरण्यमय डे (30) ने वर्ष 2017 में सेक्स-रिअसाइनमेंट सर्जरी (एसआरएस) कराया था। इसके जरिये उन्होंने अपना जेंडर बदल लिया था। उन्होंने अपना नाम हिरण्यमय डे से बदल कर सुचित्रा डे रख लिया था। हालांकि, इसके बाद उनके लिए नई तरह की समस्याएं सामने आने लगीं। सुचित्रा ने भूगोल और अंग्रेजी विषयों में मास्टर की डिग्री हासिल करने के बाद बीएड का कोर्स किया था। सर्जरी से पहले वह कोलकाता के ठाकुरपुर इलाके में स्थित एक स्कूल में पढ़ाती थीं। एसआरएस के बाद उन्होंने उसी स्कूल में फिर से पढ़ाना शुरू किया था। हालांकि, इस दौरान वह अन्य स्कूलों में इंटरव्यू दे रही थीं। उनका अनुभव बेहद डरावना और तिरास्कारपूर्ण है। सुचित्रा ने बताया कि टीचर की नौकरी के लिए इंटरव्यू देने के दौरान उन्हें अजीबोगरीब सवालों से रूबरू होना पड़ा। उनके अनुसार, साक्षात्कार लेने वालों को उनकी योग्यता या अध्यापन के क्षेत्र में उनके अनुभव से कुछ भी लेना-देना नहीं होता था। बकौल सुचित्रा, साक्षात्कार लेने वाले उनसे ब्रेस्ट, संतान पैदा करने की क्षमता आदि के बारे में सवाल में पूछते थे।
‘इंडियन एक्सप्रेस डॉट कॉम’ से बात करते हुए सुचित्रा ने कहा, ‘उनलोगों (इंटरव्यू लेने वालों) के लिए मेरी शैक्षणिक योग्यता या 10 साल का अनुभव कोई मायने नहीं करता था। वे बस यही देखते थे कि कैसे एक पुरुष महिला बन गया। इस देश में थर्ड जेंडर का होने का मतलब हास्यास्दपद तरीके से जीवन व्यतीत करना भर है।’ उन्होंने आगे कहा, ‘कोलकाता के एक नामी-गिरामी स्कूल में इंटरव्यू लेने वाले एक व्यक्ति ने मुझे पुरुषों का परिधान पहनने को कहा था, क्योंकि मेरे सभी मार्क्सशीट और सर्टिफिकेट में मेरे पुरुष होने की बात लिखी हुई थी। मुझे ऐसे प्रत्येक इंटरव्यू में अपमान का सामना करना पड़ता था। एक स्कूल के प्रिंसिपल ने मुझसे पूछा था कि क्या मैं बच्चे पैदा कर सकती हूं? उनका अगला सवाल था कि क्या मेरा ब्रेस्ट असली है? यदि मैं एक ट्रांसजेंडर महिला न होती तो क्या मुझसे ऐसे सवाल पूछे जाते?’
मानवाधिकार आयोग से की शिकायत: सुचित्रा डे विभिन्न स्कूलों के इंटरव्यू पैनल के सदस्यों के सवालों से तंग आकर पश्चिम बंगाल मानवाधिकार आयोग से 11 जून को इसकी शिकायत की है। अपनी शिकायत में उन्होंने लिखा, ‘मैं इस अपमान को अब और ज्यादा सहन नहीं कर सकती। मुझसे कोलकाता के प्रतिष्ठित स्कूलों द्वारा जिस तरह के सवाल पूछे गए हैं, वह हमारे समुदाय के प्रति लोगों की सोच को प्रदर्शित करता है। यदि मेरे जैसे शिक्षित और अनुभवी लोगों को ऐसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है तो कल्पना कीजिए उनलोगों के साथ क्या होता होगा, जिन्हें स्कूल जाने का अवसर नहीं मिला होगा।’बता दें कि वर्ष 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक आदेश में ट्रांसजेंडर को थर्ड जेंडर माना था। शीर्ष अदालत ने साथ ही इस समुदाय के लोगों को शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश देने और नौकरी देने का भी आदेश दिया था। शीर्ष अदालत के आदेश के बाद थर्ड जेंडर के लोग नौकरियों के लिए आवेदन करने के हकदार हो गए थे।