सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद भूमि विवाद मामले की सुनवाई जनवरी तक के लिए टाल दी है। जनवरी में जजों का नया खंडपीठ इस पूरे मामले की सुनवाई करेगा और नए सिरे से तारीखों का एलान किया जाएगा। सोमवार को सुनवाई टल जाने के बाद राजनीतिक बयानबाजी तेज हो गई। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और विश्व हिंदू परिषद ने यह मांग करते हुए केंद्र सरकार पर दबाव बनाया कि वह कानून बनाकर मंदिर निर्माण का रास्ता निकाले। दूसरी ओर, सरकार की तरफ से केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि हम अदालत का सम्मान करते हैं और चाहते हैं कि समाधान बातचीत से निकले। भाजपा नेता और बजरंग दल के पूर्व संयोजक विनय कटियार ने कहा कि कांग्रेस के दबाव में सरकार धीमे चल रही है। विपक्षी कांग्रेस और वाममोर्चा ने कहा कि लोकसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा और संघ परिवार इस मुद्दे पर ध्रुवीकरण की कोशिश में हैं।

प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति केएम जोसेफ के पीठ ने मामले को जनवरी के प्रथम सप्ताह में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है। उस दिन नई पीठ इसकी सुनवाई का कार्यक्रम निर्धारित करेगा। इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर अपील पर सुनवाई की प्रक्रिया के बारे में वही पीठ जनवरी में निर्णय लेगा। जजों ने कहा, ‘हम अयोध्या विवाद मामले को सुनवाई के लिए जनवरी में उचित पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करेंगे। इस मामले में उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से सालिसीटर जनरल तुषार मेहता और राम लला की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता सीएस वैद्यनाथन ने लंबे समय से इस मामले के लंबित होने का जिक्र करते हुए जल्द सुनवाई का आग्रह किया।

दोनों की दलीलों पर जजों ने कहा, ‘हमारी अपनी प्राथमिकताएं हैं। इस मामले की सुनवाई जनवरी, फरवरी या मार्च में करने के बारे में उचित पीठ ही निर्णय करेगा।’ इससे पहले, 27 सितंबर को तीन सदस्यीय पीठ ने एक के मुकाबले दो के बहुमत से अपने 1994 के फैसले में की गई इस टिप्पणी को पांच सदस्यीय संविधान पीठ के पास भेजने से इनकार कर दिया था कि क्या मस्जिद इस्लाम का अभिन्न हिस्सा है। अयोध्या भूमि विवाद में हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर तमाम अपीलों पर सुनवाई शुरू होने के दौरान ही एक पक्षकार की ओर से यह मुद्दा उठाया गया था। तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाले खंडपीठ ने कहा था दीवानी वाद का फैसला साक्ष्यों के आधार पर होगा। पीठ ने यह भी कहा था कि 1994 के फैसले की टिप्पणी मौजूदा प्रकरण में प्रासंगिक नहीं है। इसके साथ ही पीठ ने इन अपीलों को अंतिम सुनवाई के लिए सोमवार का दिन मुकर्रर किया था। इलाहाबाद हाई कोर्ट चार दीवानी वाद में 30 सितंबर, 2010 को अपने फैसले में कहा था कि 2.77 एकड़ विवादित भूमि तीनों पक्षकारों-सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला में बराबर बराबर बांट दी जाए। हाई कोर्ट के इस निर्णय के खिलाफ 14 अपीलें दायर की गई हैं।

सुप्रीम कोर्ट के ताजे फैसले के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस), विश्व हिंदू परिषद (विहिप) और कुछ भाजपा नेताओं ने सरकार पर यह कहते हुए दबाव बनाया कि कानून बनाकर वहां मंदिर निर्माण का रास्ता निकाला जाए और जमीन श्रीराम जन्मभूमि न्यास को सौंप दी जाए। वहीं कांग्रेस ने इस विषय पर संयम रखने और सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करने पर जोर दिया है। दूसरी ओर, एआइएमआइएम प्रमुख व इस मामले में एक पक्षकार के वकील असदुद्दीन ओवैसी ने इस मामले में केंद्र सरकार को अध्यादेश लाने की चुनौती दे दी। उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने कहा कि यह सुप्रीम कोर्ट का निर्णय है और वे इस पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहते। हालांकि इसके टलने से अच्छा संदेश नहीं गया है। इस मसले पर हर रोज सुनवाई की प्रक्रिया शुरू हो जाती तो अच्छा होता। भाजपा नेता संजीव बालियान ने कहा कि अदालत की प्राथमिकता सूची पर उन्हें आश्चर्य होता है। उनका मत है कि राम मंदिर का निर्माण होना चाहिए और सरकार सभी संभावनाओं पर विचार करे।

हमें अदालत पर पूरा भरोसा है और हम अदालत का पूरा सम्मान करते हैं। राम मंदिर मुद्दे को हम (भाजपा) कभी भी चुनाव से नहीं जोड़ते, इसका समाधान बातचीत से हो जाए तो अच्छा है। कानून मंत्री के रूप में मुझे और कुछ नहीं बोलना चाहिए। इस बारे में मेरी सीमाएं हैं।
– रविशंकर प्रसाद, केंद्रीय कानून मंत्री व भाजपा नेता

संघ का मत है कि जन्मभूमि पर भव्य मंदिर शीघ्र बनना चाहिए और जन्मस्थान पर मंदिर निर्माण के लिए भूमि मिलनी चाहिए। इस दृष्टि से सुप्रीम कोर्ट शीघ्र निर्णय करे, और अगर कुछ कठिनाई हो तो सरकार कानून बनाकर मंदिर निर्माण के मार्ग की सभी बाधाओं को दूर कर श्रीराम जन्मभूमि न्यास को भूमि सौंपे। -अरुण कुमार, अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ

विश्व हिंदू परिषद राम मंदिर के निर्माण के लिए अदालत के फैसले का अनंतकाल तक इंतजार नहीं कर सकती। राम मंदिर के निर्माण के विषय पर मोदी सरकार संसद के शीतकालीन सत्र में कानून बनाए। – आलोक कुमार, कार्यकारी अध्यक्ष, विश्व हिंदू परिषद

हर पांच साल में चुनाव से पहले भाजपा राम मंदिर के मुद्दे पर ध्रुवीकरण करने की कोशिश करती है। यह मुद्दा अब अदालत के सामने है। सबको सुप्रीम कोर्ट के फैसले का इंतजार करना चाहिए। इसमें किसी को कूदना नहीं चाहिए। -पी चिदंबरम, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता

राम मंदिर मुद्दे को लेकर हिंदुओं का धैर्य जवाब दे रहा है। श्रीराम हिंदुओं की आस्था की आधारशिला हैं। – गिरिराज सिंह, केंद्रीय सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्री

यह श्रद्धा का विषय है और अदालत इस पर निर्णय नहीं कर सकती। सरकार को अध्यादेश लाना चाहिए।  -संजय राउत, नेता, शिवसेना