भाजपा से बगावत करके कांग्रेस में ठौर तलाशने वाले शत्रुघ्न सिन्हा का भाजपा में राजनीतिक सफर हिंदी सिनेमा की कहानी की तरह ही उतार-चढ़ाव से भरा रहा। शत्रुघ्न सिन्हा की कहानी हिंदी सिनेमा के पहले सुपर स्टार राजेश खन्ना को दुहराती चल रही है। कभी भाजपा नेताओं के दबाव में सिन्हा ने अपने सालों पुराने मित्र राजेश खन्ना से 1992 के उप चुनाव में नई दिल्ली सीट पर मुकाबला किया और पराजित हुए। सिन्हा ने कई साल भाजपा का देश भर में प्रचार किया और अनेक फिल्मी कलाकारों को भी भाजपा से जोड़ा। राजेश खन्ना को तो जिस कांग्रेस ने सिर माथे पर बैठाया और सालों देश भर घुमाकर चुनाव प्रचार करवाया, उनसे बिना बगावत किए महीनों चक्कर लगाने के बाद भी राज्यसभा की सीट नहीं दी। हालांकि मरने के बाद उन्हें पद्मभूषण जरूर दिया। उसी तरह भाजपा के शत्रुघ्न भी कई कारणों से भाजपा से दूर होते चले गए।

दिल्ली विधानसभा के लंबे समय तक सचिव रहे सुदर्शन कुमार शर्मा ने अपनी किताब ‘दिल्ली-विधायिका, सरकार और मतदाता’ के अध्याय ‘जीते जी अपमान-मरणोपरांत सम्मान’ में लिखा है कि कैसे लगातार 10 सुपरहिट फिल्म देने का अनोखा रेकॉर्ड बनाने वाले राजेश खन्ना को एक राज्य सभा सीट के लिए दर-दर ठोकर खानी पड़ी। राजेश खन्ना को कांग्रेस में शामिल करवाकर पार्टी ने 1991 में नई दिल्ली सीट से भाजपा के शीर्ष नेता लालकृष्ण आडवाणी के खिलाफ चुनाव लड़वाया। उस चुनाव में आडवाणी मुश्किल से करीब डेढ़ हजार वोट से चुनाव जीत पाए। संयोग से वह उस चुनाव में गांधी नगर से भी उम्मीदवार थे। वहां उनकी अच्छी जीत हुई। बाद में वे गांधी नगर से ही चुनाव लड़ते रहे। आडवाणी के नई दिल्ली सीट से इस्तीफा देने के बाद 1992 में उस सीट पर हुए उप चुनाव में कांग्रेस से फिर राजेश खन्ना उम्मीदवार बने। भाजपा ने दूसरे फिल्म अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा को उम्मीदवार बनाया। यह चुनाव राजेश खन्ना जीते। खन्ना 1996 का चुनाव भी लड़े, लेकिन पूर्व केंद्रीय मंत्री जगमोहन से पराजित हो गए। उसके बाद खन्ना चुनाव नहीं लड़े और उनकी फिल्में कम सफल होने लगी। एसके शर्मा बताते हैं कि साल 2000 के शुरू में किसी का फोन आया कि राजेश खन्ना उनसे मिलना चाहते हैं। खन्ना, शर्मा के भी प्रिय कलाकार थे। खन्ना ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से लेकर अनेक नेताओं, मुख्यमंत्रियों के सराहना वाले पत्र उन्हें दिखाकर पूछा कि आगे क्या करना चाहिए।

लोक सभा से राज्य सभा में अंतर क्या है। शर्मा ने विस्तार से उन्हें बताया कि वे केवल पार्टी से अपना नाम ले आएं, बाकी काम अपने आप हो जाएगा। दिल्ली के विधानसभा में जिस पार्टी को बहुमत है, तीनों राज्य सभा सदस्य उसी पार्टी के बनते हैं, इसलिए तीनों कांग्रेस के ही बनेंगे, पहले तीनों ही भाजपा के थे। खन्ना ने ऐसा व्यवहार किया जैसे यह कोई बड़ी बात ही नहीं है। कुछ दिन बाद अचानक राजेश खन्ना का फोन एसके शर्मा के पास आया कि क्या उन्हें नामों के बारे में पता चला। शर्मा के मना करने पर, वे उनसे ही पता करने का आग्रह करने लगे। चुनाव लड़ने के लिए राजेश खन्ना ने दक्षिणी दिल्ली के सर्वप्रिय विहार में घर खरीदा था, जहां एसके शर्मा से उनकी मुलाकात हुई थी। 1998 में भी खन्ना ने चुनाव प्रचार किया था। उनसे अलग सदी के महानायक अमिताभ बच्चन का इतिहास रहा, जिन्होंने कांग्रेस के टिकट पर राजनीति के दिग्गज हेमवती नंदन बहुगुणा को 1985 के चुनाव में प्रयागराज (उस समय इलाहाबाद) सीट से पराजित किया। बाद में राजनीति से उनका मोहभंग तो हुआ ही, गांधी परिवार से उनके ऐसे मतभेद हुए जो आज तक सामान्य नहीं हो पाया। दक्षिण भारत से उलट उत्तर भारत और खास करके हिंदी पट्टी में कलाकारों की उपयोगिता एक सीमित समय तक ही होती है, यह कई बार साबित भी हो चुका है। दक्षिण भारत में तो सत्ता के शीर्ष पर रहने वाले नेताओं में फिल्मी लोगों की लंबी सूची है।

निर्दलीय लड़ना चाहते थे शत्रुघ्न सिन्हा
सिन्हा को तो केंद्र में सरकार बनने पर प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने केंद्रीय मंत्री बनाया। वे सालों फिल्मी दुनिया में भाजपा के चेहरे रहे। विनोद खन्ना, धर्मेंद्र, हेमा मालिनी आदि उस तरह से सक्रिय नहीं थे, जिस तरह से शत्रुघ्न सिन्हा सक्रिय थे। नरेंद्र मोदी की सरकार बनते ही उनकी भाजपा के शीर्ष में बैठे लोगों से ही ठन गई। बताते हैं कि वे बाद में यह चाहते रहे कि उन्हें उनकी परंपरागत पटना साहिब सीट से निर्दलीय लड़ने दिया जाए और गैर भाजपा दल उनका समर्थन करें, लेकिन वैसा न होने पर वे कांग्रेस के उम्मीदवार बनने वाले हैं।

राज्यसभा जाने का मन था खन्ना का
एसके शर्मा बताते हैं कि कई बार राजेश खन्ना का फोन राज्यसभा के नामित नामों की जानकारी लेने के लिए उनके पास आते रहे। बार-बार फोन आने पर उन्होंने सीधे कांग्रेस अध्यक्ष से बात करने की सलाह दी जिससे राजेश खन्ना बिफर गए कि ‘कोई उनसे बात नहीं कर रहा है’। दूसरे दिन पार्टी में डॉ कर्ण सिंह, एआर किदवई और अंबिका सोनी का नाम सार्वजनिक हो गया। साल 2000 आते-आते पार्टी के लिए उनकी उपयोगिता खत्म हो गई थी। इसके बाद सुपर स्टार दिल्ली में कभी सार्वजनिक रूप से नहीं दिखा।