पाकिस्तान के साथ भारत ने जब से सिंधु जल समझौते को रद्द किया है, कई बड़े ऐलान हो चुके हैं। ऐसा ही एक ऐलान सावलकोट परियोजना को लेकर भी है। इस परियोजना के संपन्न होने के बाद 1,856 मेगावाट बिजली उत्पादन की क्षमता हो जाएगी। सरकार ने इसके लिए काफी पहले टेंडर भी जारी कर दिए थे। अब इस बीच पर्यावरण मंत्रालय का एक्सपर्ट पैनल इस हफ्ते मिलने जा रहा है।

कहां फंसी है सावलकोट परियोजना?

इस मीटिंग का सबसे बड़ा एजेंडा यह रहने वाला है कि इस प्रोजेक्ट के लिए क्या पहले कुछ जरूरी स्टडी को किया जाए या नहीं। मीटिंग में तय होगा कि क्या बिना CIA और CCS अध्ययन के प्रोजेक्ट को मंजूरी दी जाए। ये अध्ययन बड़े जलविद्युत प्रोजेक्ट के लंबे समय के पर्यावरण और समाज पर असर समझने के लिए जरूरी माने जाते हैं। अगर छूट मिलती है तो सावलकोट परियोजना को जल्दी हरी झंडी मिल सकती है।

एक्सपर्ट्स इसे इतना जरूरी क्यों बता रहे?

वैसे इस साल 10 जुलाई इस मामले में एक बड़ा अपडेट आया था। पर्यावरण मंत्रालय की ही फॉरेस्ट एडवाइजरी कमेटी ने अपने स्तर पर CIA और CCS अध्ययन से प्रोजेक्ट को मुक्ति प्रदान की थी। इससे पहले 11 जून को मिनिस्ट्री ऑफ पावर में सचिव ने भी एक चिट्ठी में इस परियोजना की अहमियत को काफी विस्तार से बताया था। तर्क दिया गया था कि अगर अभी इस प्रोजेक्ट के लिए और दूसरे अप्रूवल्स का इंतजार किया गया तो देर हो सकती है। इसके बाद जून 13 MHA सचिव ने भी अपनी चिट्ठी में कहा कि यह परियोजना हमारे लिए रणनीतिक रूप से बहुत जरूरी है, यहां भी डैम का बनना चेनाब के पानी का प्रभावी तरीके से इस्तेमाल करने के लिए महत्वपूर्ण है।

अप्रूवल के खेल में नहीं फंसेगी सावलकोट परियोजना?

अब FAC ने भी अपने स्तर पर इस प्रोजेक्ट को यह कहकर मंजूरी दी थी कि CIA और CCS के अध्ययन तो ज्यादातर रिवर बेसिन में फॉरेस्ट क्लीयरेंस के लिए होते हैं। लेकिन सावलकोट परियोजना पर तो काम 1984 में शुरू हुआ था, ऐसे में अप्रूवल्स भविष्य की परियोजनाओं पर तो लागू होंगे, लेकिन सावलकोट प्रोजेक्ट पर नहीं। वैसे भी 2013 में ये सारी गाइडलाइन्स आई थीं, इस वजह से भी इनकी वजह से सावलकोट प्रोजेक्ट को नहीं रोका जा सकता।

वैसे कुछ एक्सपर्ट्स का मानना है कि चेनाब नदी पर पहले ही तीन प्रोजेक्ट्स पर काम चल रहा है- किश्तवार में 390 मेगावाट का दुलहास्ट प्रोजेक्ट, रामबन में 890 मेगावाट का बागलिहार प्रोजेक्ट, और रियासी में 690 मेगावाट का सालाल प्रोजेक्ट।

कई और प्रोजेक्ट पर काम जारी

इसके अलावा किरथाई-I (Kirthai-1) और किरथाई-II (Kirthai-2) नाम की दो परियोजनाएं हैं, जो मिलकर 1,320 मेगावाट बिजली का उत्पादन करेंगी। इसके अलावा पाकल दुल परियोजना 1,000 मेगावाट की होगी। इनके अलावा तीन और परियोजनाएं हैं, जिनसे कुल 2,224 मेगावाट बिजली बनाई जाएगी। इन सभी योजनाओं के पूरा होने पर जम्मू-कश्मीर में कुल 10,000 मेगावाट बिजली उत्पादन की क्षमता विकसित हो जाएगी।

ये भी पढ़ें- सिंधु का पानी कश्मीर से दिल्ली तक बहेगा