नेशनल प्लैटफॉर्म इन डिफेंस ऑफ एजुकेशन के बैनर तले दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षकों की अगुआई में गुरुवार को संसद मार्ग पर शिक्षा के बाजारीकरण के खिलाफ रामलीला मैदान से संसद तक मार्च किया। डूटा, फेडकूटा, एआइएसएफ, आइसा, दिशा आदि संगठनों के से जुड़े बुद्धिजीवियों ने व्यापारीकरण की मौजूदा नीतियों को वापस लेने, शिक्षा में आबंटन को बढ़ाने, विश्व व्यापार संगठन के तहत दी गई पेशकश को वापस लेने और सेवा क्षेत्रों में मुक्त व्यापार को बढ़ावा देने वाले विश्व व्यापार संगठन के तमाम समझौतों से शिक्षा को बाहर रखने की मांग की।
इस मौके पर सांसद मणिशंकर अय्यर ने कहा कि देश के नागरिकों के शिक्षा के अधिकार और खासकर उच्च शिक्षा पर खतरा मंडरा रहा है। विश्व व्यापार संगठन की मंत्री स्तर की बैठक अगले महीने नैरोबी में 15 से 18 दिसंबर के बीच होने जा रही है। भारत सरकार ने विश्व व्यापार संगठन के ढांचे में उच्च शिक्षा को अंतरराष्ट्रीय व्यापार के लिए खोलने की पेशकश कर दी है। अगर इस पेशकश को वापस नहीं लिया जाता है तो शिक्षा को जन सेवा के तौर पर बचाने के संसद के अधिकारों का भी अतिक्रमण हो जाएगा।
फेडकूटा के महासचिव अशोक बर्मन और अध्यक्ष नंदिता नारायण ने कहा कि विश्व व्यापार संगठन के अलावा सरकार कई और समझौतों को लेकर भी उत्सुक है, जिनमें ट्रेड इन सर्विसेज एग्रिमेंट भी शामिल है। इन समझौतों के लिए बातचीत बेहद खुफिया तरीके से हो रही है और अटकल तो यह भी लगाया जा रहा है कि इसके कुछ नियम सख्त हैं। उन्होंने कहा कि आज शिक्षा की मांग बेहद तेजी से बढ़ी है। यह देश के हर परिवार का सरोकार बन गई है। गरीबी तथा बदहाली से निकलकर अधिक आत्म सम्मान की जिंदगी के लिए शिक्षा बेहद जरूरी बन गई है। ऐसे में अगर उच्च शिक्षा को गैट के तहत व्यापार के लिए खोला जाता है तो इससे देश के करोड़ों नागरिकों की उम्मीदें और सपने टूट जाएंगे। इसका सबसे अधिक असर उन पर पड़ेगा, जो देश में सबसे अधिक वंचित हैं क्योंकि इससे जरूरतमंद छात्रों को दी जाने वाली मदद वापस ले ली जाएगी, आरक्षण नीति को वापस ले लिया जाएगा और लड़कियों, दलितों-शोषितों और विकलांगों की जरूरतों को नजरअंदाज किया जाएगा।
प्रदर्शनकारियों ने कहा कि गैट्स नियमों का मुख्य लक्ष्य ह्यलेवल प्लेयिंग फील्डह्ण तैयार करना है जिससे शक्ति शाली विदेशी कंपनियां अलग-अलग देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर कब्जा कर सकें। उच्च शिक्षा को विदेशी क्षेत्र के लिए खोलने का वायदा करते ही, जनसुविधा के तौर पर शिक्षा को बचाने के सरकार की जिम्मेदारी पर गैट्स के नियम हावी हो जाएंगे। तब न तो संसद इस बाबत कानून बना पाएगी और न ही नागरिक नीतिगत बदलावों की मांग कर पाएंगे। गैट्स नियमों के तहत स्ववित्त संस्थानों को भी निजी संस्थानों के साथ सरकारी सब्सिडी के लिए मुकाबला करना होगा।
एक बार गैट्स के तहत वायदा कर लेने के बाद किसी भी देश के लिए वापस मुड़ना बेहद मुश्किल हो जाएगा। आज शिक्षा पूरी दुनिया में सबसे अधिक व्यापार और मुनाफे के क्षेत्रों में से एक है। गैट्स के नियम ही ऐसे हैं कि हर चरण के साथ बाजार के लिए रास्ता और खुलता जाएगा, इसके तहत आने वाले सेवा क्षेत्रों की संख्या बढ़ती जाएगी और व्यापार की रुकावटें कम होती जाएंगी। भारत में शिक्षा का व्यवसायीकरण सरकारी अनुदान से चलने वाले संस्थानों को बर्बाद कर के आगे बढ़ा है। पहले सरकारी स्कूलों को बर्बाद किया गया और अब उन्हें भी बंद भी किया जाने लगा है।