सार्वजनिक कार्यक्रम में देरी से आने की वजह पूछने पर तमिलनाडु में सत्ताधारी डीएमके के एक मंत्री को इतना गुस्सा आया कि उन्होंने एक पत्रकार को धमकी दे दी। खास बात यह है कि यह पूरी घटना सोशल मीडिया पर भी वायरल हो गई है और उसमें धमकी देते हुए मंत्री को साफ सुना जा सकता है।

दरअसल तमिलनाडु के शिवगंगा जिले में द्रविड़ मुनेत्र कड़गम के ग्रामीण विकास मंत्री केआर पेरियाकरुप्पन का एक पत्रकार को धमकी देने वाला एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। ग्रामीण विकास मंत्री को सुबह 10 बजे एक कार्यक्रम में शामिल होना था। हालांकि, मंत्री दोपहर बाद करीब 12.30 बजे कार्यक्रम में पहुंचे। इससे वहां उनके इंतजार में काफी देर से खड़ी जनता वापस जाने लगी।

जब मंत्री पहुंचे तो एक पत्रकार ने उनसे दो घंटे देरी की वजह पूछ ली। इस पर मंत्री अपना आपा खो बैठे और पत्रकार को धमकाने लगे। उन्होंने कहा, “किसने तीन घंटे तक इंतजार किया? ऐसा इंटरव्यू किसने दिया? अंदर कौन इंतजार कर रहा था?”

इससे पहले तमिलनाडु के एक अन्य मंत्री ने भी अपने बयान से विवाद खड़ा कर दिया था। हालांकि उन्होंने बाद में माफी मांग ली थी। उनका बयान हिंदी भाषा को लेकर था। राज्य के शिक्षा मंत्री के पोनमुडी ने कहा था, “हमें बताया गया था कि हिंदी सीखने से नौकरी मिलेगी, मिली क्या?” उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि कोयंबटूर में हिंदी भाषी पानी पूरी बेचते हैं।

भारथियार विश्वविद्यालय में एक दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए शिक्षा मंत्री के पोनमुडी ने कहा कि जब दक्षिणी राज्य में लोग तमिल और अंग्रेजी सीख रहे हैं तो दूसरी भाषाओं की क्या जरूरत है? उन्होंने कहा कि तमिलनाडु में दो भाषाएं हैं- एक अंग्रेजी जो अंतरराष्ट्रीय भाषा है और दूसरी तमिल, जो स्थानीय भाषा है। दीक्षांत समारोह के दौरान तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि भी मंच पर मौजूद थे।

बाद में उन्होंने इसको लेकर सफाई दी और कहा कि तमिलनाडु में दो भाषा नीति है जिसके तहत तमिल और अंग्रेजी भाषा सिखाई जाती है। एक स्थानीय समाचार चैनल थांटी टीवी के साथ एक साक्षात्कार में, पोनमुडी ने कहा कि डीएमके सरकार को तीन भाषाएं सीखने वाले छात्रों के साथ कोई समस्या नहीं है। उन्होंने कहा, “सिर्फ इतनी सी बात है कि राज्य में केवल दो (भाषाएं) अनिवार्य हैं … अगर आंध्र के छात्र हैं जो तेलुगु सीखना चाहते हैं, अगर मलयाली छात्र मलयालम पढ़ना चाहते हैं … अगर ऐसे छात्र हैं, तो हम स्कूलों में इन भाषाओं को पढ़ाने की व्यवस्था करेंगे। यही चीज कन्नड़ या हिंदी के लिए भी लागू होती है। हमने बस इतना ही कहा कि हमारी शिक्षा प्रणाली में हिंदी एक अनिवार्य भाषा के रूप में शामिल नहीं हो सकती है।”