भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के अध्यक्ष अमित शाह 30 अगस्त को चेन्नई में विपक्षी दल डीएमके के मंच पर मौजूद होंगे। दरअसल, डीएमके ने अपने दिवंगत नेता एम करुणानिधि की याद में 30 अगस्त को स्मृति सभा का आयोजन किया है। पार्टी ने इसके लिए सभी दलों को औपचारिक न्योता भेजा था। इस लिहाज से बीजेपी को भी न्योता भेजा गया था। डीएमके का निमंत्रण पाकर बीजेपी अध्यक्ष ने खुद वहां जाने का फैसला किया है। वैसे डीएमको को उम्मीद थी कि शाह नहीं आएंगे और उनकी जगह रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण या कोई और दक्षिण भारतीय मंत्री आ सकते हैं लेकिन शाह ने खुद आने की सूचना देकर डीएमके को चौंका दिया है। डीएमके ने करुणानिधि के 93वें जन्मदिन पर पिछले साल आयोजित समारोह में बीजेपी को न्योता नहीं दिया था। बता दें कि इस मंच पर बीजेपी विरोधी तमाम पार्टियों का जमावड़ा होना है। माना जा रहा है कि दर्जन भर राजनीतिक दलों के लोग वहां उस स्मृति सभा में शिरकत करेंगे।

कांग्रेस की तरफ से राज्यसभा में नेता विपक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री गुलाम नबी आजाद समारोह में शरीक होंगे क्योंकि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी फिलहाल देश से बाहर हैं। पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने पार्टी की तरफ से सांसद डेरेक ओ ब्रायन को भेजने का फैसला किया है क्योंकि इस दौरान वो अमेरिकी दौरे पर होंगी। ‘द हिन्दू’ से बातचीत में डीएमके नेता और राज्यसभा सांसद टीकेएस एलांगोवन ने बताया है कि पार्टी ने ऐसे सभी नेताओं को निमंत्रण भेजा है करुणानिधि से राजनैतिक तौर पर घनिष्ठ संबंध रखते थे। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक जेडीएस अध्यक्ष और पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा, एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार, जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कॉन्फ्रेन्स के अध्यक्ष फाकुर अब्दुल्ला, आंध्र प्रदेश के सीएम एन चंद्रबाबू नायडू, बिहार के सीएम नीतीश कुमार, दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल, सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी और सीपीआई नेता डी राजा भी इस स्मृति समारोह में शामिल होंगे।

बता दें कि लंबी बीमारी के बाद इस महीने की 7 तारीख को 94 साल के करुणानिधि का देहांत हो गया था। करुणानिधि ने तमिलनाडु में पहली गैर कांग्रेस सरकार बनाने में बड़ी भूमिका निभाई थी। वो पांच बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे थे। करुणानिधि ने 14 साल की उम्र में ही राजनीति में प्रवेश कर लिया था और 94 साल की उम्र तक यानी करीब 80 साल तक उन्होंने जनसेवा की। तमिलनाडु में 1967 में पहली गैर कांग्रेसी सरकार में वो लोक निर्माण मंत्री बने थे। सी एन अन्नादुरई की मौत के बाद उन्होंने राज्य की बागडोर संभाली थी। वे 1969 में तमिलनाडु के सीएम बने थे। 1975 में इमरजेंसी का विरोध करने वाले वो अकेले मुख्यमंत्री थे।