सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने संविधान के 103 वें संशोधन अधिनियम 2019 की वैधता को बरकरार रखते हुए आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (EWS) के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण पर अपनी मुहर लगा दी है। वहीं, दूसरी ओर तमिल नाडु में मुख्यमंत्री एम के स्टालिन की अध्यक्षता में विधायक दलों की एक बैठक में इसे खारिज करने का फैसला लिया गया।
आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण देने वाले 103वें संविधान संशोधन को खारिज करने का संकल्प लिया गया। पार्टियों ने कहा कि संशोधन गरीबों के बीच जातिगत भेदभाव पैदा करेगा और राज्य सरकार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ एक समीक्षा याचिका दायर करने के लिए कहा। राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी AIADMK और BJP ने मीटिंग का बहिष्कार किया।
राज्य में नहीं लागू करेंगे EWS कोटा: बैठक के बाद राज्य के उच्च शिक्षा मंत्री के पोनमुडी ने कहा कि राज्य सरकार 10 फीसदी आरक्षण को लागू नहीं करेगी। उन्होंने कहा, “जहां तक तमिलनाडु की बात है, हम राज्य में आरक्षण की मौजूदा व्यवस्था 69 प्रतिशत कोटा को फॉलो करते रहेंगे। हम EWS कोटा को लागू नहीं करेंगे। सुप्रीम कोर्ट ने यह नहीं कहा कि ईडब्ल्यूएस सभी राज्यों में लगाया जाना चाहिए। हमें लगता है कि राज्यों को आरक्षण के बारे में अपने नियम बनाने में सक्षम होना चाहिए।”
गरीबों की मदद करने वाली योजनाओं को बंद नहीं करेंगे: मीटिंग में बोलते हुए तमिलनाडु के सीएम स्टालिन ने कहा कि ईडब्ल्यूएस कोटा के विचार को 1950 के दशक में संसद के साथ-साथ तत्कालीन प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू और कानून मंत्री बीआर अंबेडकर ने पहले ही खारिज कर दिया था। उन्होंने कहा, “यह नहीं सोचना चाहिए कि हम सवर्ण जातियों के गरीबों के रास्ते में आ रहे हैं। हम गरीबों की मदद करने वाली किसी भी योजना को बंद नहीं करेंगे। लेकिन हम सामाजिक न्याय के सही मूल्यों को भी खराब नहीं होने देंगे।”
भारतीय संविधान के विपरीत: बैठक में पारित एक प्रस्ताव में कहा गया है कि सवर्ण जातियों में गरीबों के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था भारतीय संविधान में निहित सामाजिक न्याय के दर्शन के विपरीत है। प्रस्ताव के मुताबिक, “यह सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों के विपरीत है और यह जाति के नाम पर गरीबों को विभाजित करता है और उनसे भेदभाव भी करता है।”