मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में व्यवस्था दी कि सदन के अंदर सत्ताधारी गठबंधन में शामिल राजनीतिक दल का कोई भी सदस्य व्हिप मानने को बाध्य होता है। अगर वह इसका पालन नहीं करता है तो उसकी सदस्यता जा सकती है।
विधायिका के अंदर सदस्य अपनी पार्टी के साथ वोट देने के लिए बाध्य
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि “एक बार सरकार बन जाने के बाद किसी भी सदस्य के पास यह अधिकार नहीं होता कि वह गठबंधन धर्म का पालन नहीं करेगा। किसी भी राजनीतिक दल के किसी भी हिस्से को यह अधिकार नहीं है। इसको नहीं मानने से अयोग्यता का खतरा रहेगा। आप व्हिप से बंधे हैं। जब तक विलय न हो जाए, आप विधायिका के अंदर अपनी पार्टी के साथ वोट देने के लिए बाध्य हैं।”
पांच जजों की संवैधानिक पीठ की अध्यक्षता कर रहे मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ पिछले साल महाराष्ट्र में शिवसेना में विभाजन के बाद आए राजनीतिक संकट की सुनवाई कर रहे थे। सुनवाई के दौरान एकनाथ शिंदे गुट की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता एनके कौल की बात सुनने के बाद कोर्ट ने कहा, “कोई भी विधायक या उनका समूह गवर्नर से यह कहने का अधिकार नहीं रखता है कि वह गठबंधन के साथ नहीं जाना चाहता है। इसका आसान सा जवाब है। जब तक आप सदन के सदस्य हैं आप वहां के अनुशासन से बंधे हुए हैं। आप अपनी ही पार्टी के साथ मतदान करना होगा। यदि आप नहीं जाना चाहते हैं तो आप अपने नेता के पास जाइए और राजनीतिक दल के बाहर फैसला लीजिए।”
एक ही दिन दो व्हिप नियुक्त किये गये थे
कोर्ट को बताया गया कि एक ही दिन में दो राजनीतिक व्हिप नियुक्त किये गये थे। हम पार्टी के जनादेश का पालन कर रहे हैं। महत्वपूर्ण सवाल यह है कि दोनों व्हिप में असली किसे माना जाए। जिस गुट को आधिकारिक तौर पर मान्यता दी गई है, पहले उनके पास बहुमत था। इस दौरान तर्क दिया गया कि विधायकों में असंतोष था और बगावत को देखते हुए फ्लोर टेस्ट का आदेश देना गवर्नर के लिए सही था।