सुप्रीम कोर्ट ने शीर्ष अदालत के स्पष्ट निर्देशों के बावजूद उत्तर प्रदेश में लोकायुक्त नियुक्त नहीं किए जाने के मामले में सोमवार को राज्य सरकार को आड़े हाथों लिया और उसे इन निर्देशों पर 16 दिसंबर तक अमल करने का आदेश दिया। न्यायालय ने कहा कि ऐसा लगता है कि नियुक्ति करने वाले प्राधिकारियों का अपना एजंडा है।

न्यायमूर्ति रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति एनवी रमण के पीठ ने सवाल किया-‘आप लोकायुक्त नियुक्त क्यों नहीं करते हैं? हमारे आदेश पर अमल क्यों नहीं किया गया? मुख्यमंत्री, राज्यपाल और मुख्य न्यायाधीश (हाईकोर्ट) इसे हल क्यों नहीं करते हैं?’ पीठ ने नाराजगी व्यक्त करने के साथ ही याचिका पर सुनवाई 16 दिसंबर के लिए सूचीबद्ध करते हुए कहा-‘हम शब्दों को कम करके नहीं बोलते, ऐसा लगता है कि आपमें से हरेकका अपना एजंडा है। आप बुधवार तक नियुक्ति कीजिए।’न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के महाधिवक्ता के इस कथन की तीखी आलोचना की कि शीघ्र आवश्यक कदम उठाए जाएंगे। पीठ ने कहा कि पिछली तारीख पर भी आपने यही कहा था।

शीर्ष अदालत महेंद्र कुमार जैन और वकील राधाकांत त्रिपाठी की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इन याचिकाओं में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के अनुरूप प्रदेश में जल्द से जल्द लोकायुक्त नियुक्त करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने चार दिसंबर को एक अन्य याचिका पर राज्य सरकार को नोटिस जारी कर पूछा था कि नए लोकायुक्त की नियुक्ति के बारे में उसके आदेश का पालन नहीं करने की वजह से उसके खिलाफ न्यायालय की अवमानना की कार्यवाही क्यों नहीं शुरू की जाए।

न्यायालय ने लोकायुक्त का कार्यकाल आठ साल निर्धारित करने के लिए उप्र्र लोकायुक्त कानून में किए गए संशोधन की वैधानिकता को पिछले साल 24 अप्रैल को बरकरार रखा था। न्यायालय ने ऐसा करने के साथ ही राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि छह महीने के भीतर ही लोकायुक्त न्यायमूर्ति (सेवानिवृत्त) एनके मेहरोत्रा के स्थान पर नए लोकायुक्त का चयन किया जाए।

इस साल जुलाई में न्यायालय ने एक अवमानना याचिका का संज्ञान लिया था जिसमें आरोप लगाया गया था कि उसके 24 अप्रैल के आदेश का राज्य सरकार ने पालन नहीं किया है। न्यायालय ने 30 दिन के भीतर इस संबंध में आवश्यक उठाने का निर्देश दिया था।

नई अवमानना याचिका सचिदानंद गुप्ता ने दायर की, जिसमें राज्य सरकार पर न्यायालय के आदेश की अवज्ञा का आरोप लगाया गया। गुप्ता की ओर से वकील कामिनी जायसवाल ने कहा था कि अब राज्य सरकार को अवमानना नोटिस जारी करना जरूरी हो गया है क्योंकि वह न्यायालय के आदेशों का खुल्लमखुल्ला उल्लंघन कर रही है।

न्यायमूर्ति मेहरोत्रा को 16 मार्च, 2006 को छह साल के लिए लोकायुक्त नियुक्त किया गया था। बाद में सरकार ने कानून में संशोधन करते हुए उनके कार्यकाल का दो साल के लिये विस्तार करने के साथ ही यह कार्यकाल आठ साल या उनका उत्तराधिकार चुने जाने तक कर दिया था।