सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि एक बार जनहित याचिका दायर होने और उस पर सुनवाई होने के बाद उसे वापस लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। इसके साथ ही अदालत ने केरल के ऐतिहासिक सबरीमाला मंदिर में लड़कियों और महिलाओं के प्रवेश की अनुमति के लिए जनहित याचिका दायर करने वाले वकील को मिल रही धमकियों के मद्देनजर सोमवार को उसकी याचिका पर फैसला करने का निश्चय किया है।
न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा और न्यायमूर्ति एनवी रमण की पीठ ने कहा कि लोगों को यह मालूम होना चाहिए कि एक बार जनहित याचिका दायर हो गई और उस पर विचार हो गया, आप उसे वापस नहीं ले सकते हैं। पीठ ने ये टिप्पणियां उस वक्त कीं जब सबरीमाला मामले पर जनहित याचिका दायर करने वाले इंडियन यंग लायर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष नौशाद अहमद खान ने इस मामले में शीघ्र सुनवाई का अनुरोध किया और कहा कि उन्हें हाल ही में टेलीफोन पर 500 बार धमकियां मिली हैं और उनसे जनहित याचिका वापस लेने के लिए कहा गया है।
पीठ ने कहा कि वह इस मामले में अदालत की मदद के लिए न्याय मित्र नियुक्त करने पर विचार कर सकती है। महिलाओं के अधिकार के सवाल पर संवैधानिक तरीके से निर्णय किया जाएगा और इस तरह से याचिका वापस नहीं ली जा सकती है। एसोसिएशन ने अपनी याचिका में सबरीमाला मंदिर में सभी महिलाओं और लड़कियों के प्रवेश की अनुमति चाही है जिसमें परंपरा के तहत लड़कियों के तरुण अवस्था में आने के बाद परिसर में प्रवेश की अनुमति नहीं है। हालांकि मंदिर उन महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देता है जो रजोनिवृत्ति की अवस्था में पहुंच गई हैं।
शीर्ष अदालत ने 11 जनवरी को केरल के इस मंदिर में उन मासिक धर्म की आयु वाली महिलाओं के समूह को प्रवेश की अनुमति नहीं देने की सदियों पुरानी परंपरा पर सवाल उठाते हुए कहा था कि संविधान के तहत ऐसा नहीं किया जा सकता है। पीठ ने कहा था- मंदिर, धर्म के आधार के अलावा महिलाओं का प्रवेश प्रतिबंधित नहीं कर सकता है। जब तक आपके पास संवैधानिक अधिकार नहीं हो, आप प्रवेश वर्जित नहीं कर सकते हैं। बहरहाल हम इस मामले पर आठ फरवरी को गौर करेंगे।
अदालत ने सरकार से जानना चाहा था कि क्या यह सही है कि पिछले 1500 साल से इस मंदिर परिसर में महिलाओें ने प्रवेश नहीं किया है। पीठ ने यह भी टिप्पणी की थी कि यह सार्वजनिक मंदिर है और इसमें सभी को प्रवेश का अधिकार होना चाहिए। अधिक से अधिक इसमें धार्मिक प्रतिबंध लगाया जा सकता है लेकिन आम प्रतिबंध नहीं हो सकता है। केरल सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील केके वेणुगोपाल ने कहा था कि जो महिलाएं, रजोनिवृत्ति की अवस्था में नहीं पहुंची हैं, वे एक पहाड़ी पर स्थित मंदिर की धार्मिक यात्रा, जो आमतौर पर 41 दिन की होती है, के दौरान शुद्धता बरकरार नहीं रख सकती हैं।