ज्ञानवापी मामले में सुप्रीम कोर्ट से मुस्लिम पक्ष को बड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, जिसमें उसने वाराणसी जिला कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा था। वाराणसी कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद के अंदर मौजूद व्यास तहखाने में पूजा की अनुमति दी थी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 17 जनवरी और 31 जनवरी (तहखाना के अंदर पूजा की अनुमति) के आदेशों के बाद मुस्लिम समुदाय द्वारा ज्ञानवापी मस्जिद में बिना किसी बाधा के ‘नमाज’ पढ़ी जाती है और हिंदू पुजारी द्वारा ‘पूजा’ की जाती है। ‘तहखाना’ क्षेत्र में यथास्थिति बनाए रखना उचित है ताकि दोनों समुदाय उपरोक्त शर्तों के अनुसार पूजा करने में सक्षम हो सकें।
इस मामले में फरवरी में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुनवाई करते हुए मुस्लिम पक्ष की याचिका खारिज कर दी थी। इसमें हिंदू पक्ष को पूजा करने के अधिकार देने वाले जिला कोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी। इलाहाबाद हाई कोर्ट के इस फैसले से मुस्लिम पक्ष को झटका लगा था और उसके बाद उसने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था।
हिंदू पक्ष का दावा है कि उससे पहले तहखाने में शृंगार गौरी की पूजा होती थी, मगर 1991 में जब पूजास्थल अधिनियम बना, तो राज्य सरकार ने उसे बंद करा दिया। दरअसल हिंदू पक्ष ने दावा किया था कि ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण मंदिर तोड़ कर हुआ है, इसलिए उस पर उसे स्वामित्व दिलाया जाए। यह मामला लंबा खिंचता गया।
व्यास तहखाना भगवान नंदी के ठीक सामने स्थित है। यह व्यास परिवार का तहखाना है। मस्जिद के ग्राउंड फ्लोर में साल 1993 तक यहां पूजा होती थी लेकिन नवंबर 1993 में सरकार द्वारा यहां पूजा बंद करा दी गई और पुजारियों को हटा दिया गया।
18 अगस्त 2021 को पांच महिलाओं ने सिविल जज (सीनियर डिविजन) के सामने एक वाद दायर किया था। महिलाओं ने ज्ञानवापी मस्जिद के बगल में बने श्रृंगार गौरी मंदिर में रोजाना पूजन-दर्शन की मांग की थी। महिलाओं की मांग पर जज रवि कुमार दिवाकर ने मस्जिद परिसर का ASI सर्वे कराने का आदेश दिया था। वहीं, ASI ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि ज्ञानवापी मस्जिद वहां पहले से मौजूद एक पुराने मंदिर के अवशेषों पर बनाई गई थी।