पिछले सप्ताह राष्ट्रीय जनता दल एमएलसी और विधायकों ने विपक्ष के नेता तेजस्वी प्रसाद यादव को पार्टी के महत्वपूर्ण नीतिगत निर्णय लेने के लिए अधिकृत किया। पार्टी नेताओं के इस निर्णय का ये मतलब होगा कि अब तेजस्वीय यादव अन्य बातों को अलावा पार्टी के लोकसभा और विधानसभा चुनाव के उम्मीदवारों या राज्यसभा और विधानपरिषद के उम्मीदवारों के बारे में निर्णय ले सकते हैं इसके अलावा वो पार्टी के नेताओं को पद भी आवंटित कर सकते हैं।
हालांकि 32 वर्षीय तेजस्वी यादव पहले से ही पार्टी में अपने सहयोगियों द्वारा इस तरह की अथॉरिटी के बिना ये सभी निर्णय ले रहे थे, लेकिन इस पार्टी ने यह कदम इसलिए उठाया क्योंकि उन्हें अपने पिता और पार्टी की ओर से आधिकारिक तौर पर नेता घोषित करना था क्योंकि आरजेडी के राष्ट्रीय अध्यक्ष लालू प्रसाद बीमारी की वजह से लगातार उनका मार्ग दर्शन जारी नहीं कर सकते थे।
तेजस्वी को आरजेडी नेताओं का समर्थन
इस कदम के पीछे आरजेडी के वरिष्ठ नेताओं का समर्थन है। हालांकि एक व्यक्ति ऐसा भी है जो इस फैसले को लेकर अभी भी नाराज है वो हैं तेजस्वी के बड़े भाई बिहार के पूर्व स्वास्थ्य मंत्री तेज प्रताप यादव। 34 वर्षीय तेज प्रताप यादव ने अभी हाल में ही पार्टी के राज्यसभा नामांकन के लिए असफल प्रयास किया है। हालांकि उच्च सदन भेजे जाने के लिए लालू और राबड़ी की बड़े बेटी मीसा भारती पर पार्टी द्वारा उन्हें प्राथमिकता देने का कोई सवाल ही नहीं उठता है। उन्हें पार्टी के दूसरे राज्यसभा उम्मीदवार के रूप में भी नहीं चुना जा सकता था क्योंकि दो भाई-बहनों का नामांकन इसके लिए राजनीतिक रूप से विध्वंसक फैसला होता। वहीं इसके अलावा तेज प्रताप को कभी एक सीरीयस लीडर नहीं माना गया है, जो हाउस ऑफ एल्डर्स के लिए नामांकन की गारंटी देता हो।
अपनी ही पार्टी से सौदेबाजी पर उतरे तेज प्रताप
ये पहली बार नहीं है जब तेज प्रताप ने आरजेडी के साथ-साथ अपने परिवार के साथ भी सौदेबाजी पर उतर गए हों। इसके पहले तेज प्रताप ने धर्मनिर्पेक्ष सेवक संघ (DSS), लालू-राबड़ी मोर्चा और छात्र जनशक्ति परिषद जैसे गैर-राजनीतिक मंचों का गठन किया था। तेज प्रताप ने मुख्य रूप से आरएसएस का उपहास करने के लिए डीएसएस का गठन किया था। इसके मुट्ठीभर समर्थकों में जिनमें कुछ युवा शामिल थे बस सोशल मीडिया से आगे नहीं बढ़ पाए। साल 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले तेज प्रताप ने लालू-राबड़ी मोर्चा का गठन किया। यह एक ऐसा मंच था जिसने आरजेडी के खिलाफ तीन निर्दलीय उम्मीदवारों को खड़ा किया था। हालांकि, इसका कोई फर्क पार्टी या परिवार पर नहीं पड़ा।
तेज प्रताप गंभीर राजनेता नहीं
आरजेडी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “पार्टी अब तेज प्रताप के विद्रोह के साथ सामंजस्य बिठा चुकी है। कौन जानता है कि आने वाले समय में वो अपनी राजनीतिक पार्टी बना सकते हैं लेकिन सबसे बड़ी बात ये है कि उन्हें कोई भी एक गंभीर नेता मानने को तैयार ही नहीं है। उन्हें लोग एक ऐसे बड़े भाई के रूप में देखते हैं जो राजनीतिक हिस्से की मांग को लेकर बेताब है। तेज प्रताप मुख्य रूप से अपने कुछ समर्थकों के लिए लोकसभा और विधानसभा टिकट देने के अधिकार की मांग कर रहे हैं लेकिन पार्टी उनकी ये मांग नहीं पूरी कर सकती है। तेजस्वी अब निर्विवादित रूप से आरजेडी के नेता हैं ये बात तेज प्रताप को स्वीकार करनी होगी।”
लालू ने 2015 में किया था चुनाव प्रचार
चारा घोटाला मामलों में दोषी ठहराए जाने के बाद से जेल से बाहर आने वाले लालू प्रसाद यादव बीमार हैं और पिछले 5 सालों से दलगत राजनीति में सक्रिय नहीं हैं। लालू प्रसाद यादव ने साल 2015 में आखिरी बार विधानसभा चुनाव में प्रचार किया था। हालांकि पार्टी राज्य और केंद्र स्तर पर विभिन्न सदनों के चुनावों के लिए उम्मीदवारों के चयन जैसे महत्वपूर्ण मामलों पर उनकी सलाह और मार्गदर्शन लेती है। अब लालू दिनो ब दिन पार्टी के निर्णयों की बागडोर तेजस्वी को सौंपने में लगे हैं और आने वाले दिनों में वो पार्टी के फैसलों में हस्तक्षेप नहीं करेंगे। आने वाले दिनों में पार्टी के लगभग सभी फैसले लेने का अधिकार अब तेजस्वी को सौंप दिया जाएगा।
लालू ने तेजस्वी को उत्तराधिकारी क्यों चुना?
तेजस्वी यादव को पार्टी का नेता बनाए जाने के पीछे पार्टी के मुखिया लालू प्रसाद यादव का पूरा सहयोग है। वो ये बात भलीभांति जानते हैं कि तेजस्वी ही अब उनकी पार्टी को आगे ले जाने का दम रखते हैं। तेजस्वी की हास्यपद हरकतों ने उनकी और पार्टी दोनों की कई बार किरकिरी करवाई है। ऐसा भी नहीं कि उन्हें मौका नहीं मिला है, उन्हें राजनीति में एंट्री के साथ ही बिहार के स्वास्थ्य मंत्री का पद मिला था जबकि तेजस्वी डिप्टी सीएम बने थे। दोनों की सियासत एक साथ ही शुरू हुई थी लेकिन एक पार्टी के शीर्ष पर जा पहुंचा तो दूसरा पार्टी के हाशिए पर।