हाल ही में उपराज्यपाल ने दिल्ली सरकार को करोड़ों रुपए की राशि सरकारी खजाने में लौटाने के आदेश दिए हैं। इन आदेशों के बाद से ही पार्टी की रणनीति थी कि दिल्ली प्रदेश स्तर पर इस मुद्दे को उठाकर आप सरकार को घेरा जाएगा। लेकिन पार्टी के एक राष्ट्रीय प्रवक्ता पार्टी का पक्ष सामने आने से पहले ही अपनी खुद की रणनीति सामने रखकर चले गए। इसकी नाराजगी पार्टी के शीर्ष नेताओं में साफ नजर आई और इसकी शिकायत भी वे शीर्ष नेतृत्व से करते नजर आए।
तुगलकी फरमान
दिल्ली में एक सरकारी आदेश की बीते दिनों छीछालेदर होती दिखी। राहगीरों ने इसे तुगलकी फरमान तक बता डाला। हालांकि सरकार ने उसे बड़ी ही नपी-तुली भाषा में जारी किया। हुआ यूं कि दिल्ली सरकार के मंत्री गोपाल राय ने बीते दिनों एक अपील जारी कर रात्रि सेवा पर तैनात कर्मचारियों एवं गार्डों को हीटर उपलब्ध कराने की बात कही थी। लेकिन इसके दूसरे पक्ष ने इसकी पोल खोल दी।
दूसरा पक्ष था, एंटी ओपन बर्निंग कैंपेन का शुरू किया किया जाना। इसके तहत दिल्ली सरकार ने खुले में आग जलाने से रोक का अभियान शुरू किया था। अब उन्हें कौन बताए कि ठंड में जब मौसम विभाग ने शीतलहर का अलर्ट जारी कर रखा हो, ऐसे में खुले में आग तापने पर प्रतिबंध और कार्रवाई करने का फैसले कितना उचित है।
निगम में और भी रास्ते
महापौर, उप महापौर और स्थाई समिति के सदस्यों के फैसले के बाद अब पार्षदों में यह चर्चा जोर शोर है कि निगम में और भी हैं रास्ते। मतलब पार्षदों के लिए पदों की कमी नहीं है। करीब पचास ऐसे पद हैं जहां मलाई काटी जा सकती है। समितियों पर समितियां फिर ऐसी ऐसी समितियां जिसका सिर्फ मुख्यालय में नेम प्लेट ही देखा जा सकता है। बदले में मिलता है उन्हें ढ़ेर सारा कर्मचारी और अन्य सुविधाएं। तो फिर कुछ विशेष चर्चित पदों के फैसले से मायूस होने की जरूरत नहीं है, अभी समितियों का पिटारा खुलना बांकी जो हैं। कहीं न कहीं लाटरी लग ही जाएगी।
अधर में जनसुविधा
उत्तर प्रदेश के नोएडा में लोगों को इन दिनों दो समानांतर स्थितियों का सामना करना पड़ रहा है। शहर में पुरानी स्ट्रीट लाइटों को बदलकर कम ऊर्जा और अधिक प्रकाश देने वाली एलईडी लाइटों में तब्दील करने का काम। वहीं, स्ट्रीट लाइटों का नहीं जलने का खामियाजा लोगों को भुगतना पड़ रहा है। ज्यादातर मार्गों पर रात में स्ट्रीट लाइटें बंद रह रही हैं।
इससे बेखबर अधिकारी स्थिति को उसी हाल पर छोड़कर अन्य कार्यों में व्यस्त हैं। कभी-कभार सामाजिक या उद्यमी संगठनों के मंच से आवाज उठाने पर अधिकारियों के स्तर पर लंबी बयानबाजी और जिम्मेदारी तय करने की प्रक्रिया कुछ दिन चलने के बाद फिर शांत हो जाती है।
-बेदिल