एशिया के सबसे बड़े रेड लाइट एरिया सोनागाछी में रहने वाली यौनकर्मी अब एक आयरिश महिला से प्रेरणा ले रही हैं जिसने अपने बेटे के लिए एक बेहतर भविष्य की खातिर इस दोजख की आग से निकलने के लिए हिम्मत जुटाई थी। राचेल मोरान उस वक्त 15 साल की थीं जब नॉर्थ डबलिन शहर में उन्हें जबरदस्ती एक कोठे पर छोड़ दिया गया था लेकिन सात वर्ष बाद अपने चार साल के बेटे को एक बेहतर कल देने के लिए उन्होंने इस पेशे को छोड़ दिया। मोरान उस दौरान नशे की लत का शिकार हो गईं थीं लेकिन अब वह एक पत्रकार, लेखक और मानव-तस्करी रोधी कार्यकर्ता हैं। हाल के समय में इस शहर का दौरा करने के दौरान उन्होंने मुंशीगंज और सोनागाछी की यौनकर्मियों से बातचीत की।

मोरान (40) ने कहा,‘इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि मैं अमेरिका में किसी अश्वेत महिला, कनाडा की मूल निवासिनी या यूरोपीय देशों की किसी श्वेत महिला से बात कर रही हूं। सभी की समान कहानी है कि वे इस पेशे में इसलिए आईं क्योंकि उनके पास कोई अन्य विकल्प नहीं था। यह सार्वभौमिक है, यहां तक कि भारत में भी।’

अपने आप वीमेन वर्ल्डवाइड गैर सरकारी संगठन की संस्थापिका रुचिरा गुप्ता उनके साथ थीं और उन्होंने कहा कि इस पेशे को छोड़ने के मोरान के साहस से यहां की महिलाओं को काफी पे्ररणा मिली है। वह इस बारे में और जानने को उत्सुक थीं। मोरान ने बताया कि इस पेशे को छोड़ने में अपने बेटे के प्रति ममता ने उन्हें बहुत अधिक प्रेरित किया।

रुचिरा ने बताया,‘इस नर्क से बच निकलने वाली अधिकतर यौनकर्मी उनकी बात से सहमत हैं। वे भी अपने बच्चों के लिए समान चिंता और प्यार रखती हैं।’ मोरान ने अपनी आत्मकथा ‘पेड फॉर, माय जर्नी थ्रू प्रोस्टीट्यूशन’ लिखी है। उनका कहना है कि वह जानती हैं कि यदि इस पेशे को नहीं छोड़ती, तो वह अपने बेटे को खो देतीं क्योंकि वह स्कूल जाने वाले एक बच्चे के साथ अपनी दिनचर्या का सामंजस्य नहीं बिठा पातीं।

उन्होंने कहा,‘मैं बहुत अधिक मात्रा में कोकीन लिया करती थी। मेरे लिए यह जीवन-मरण का प्रश्न था। कोई सहायता भी नहीं थी मेरे पास, लेकिन मैंने इस पेशे से बाहर आने का निर्णय किया। पत्रकारिता की पढ़ाई की और फिर नौकरी की।’ भारतीय कोठों में भी कई यौनकर्मी नशे और शराब की लत का शिकार हैं। रुचिरा ने कहा कि यह इस पेशे के दर्द और भावनात्मक पीड़ा से बचने का सबसे आसान तरीका है।