श्री सोमनाथ ट्रस्ट पर परंपरागत तौर पर राजनेताओं का दबदबा रहा है। इसी हफ्ते बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह इसके ट्रस्टी बनाए गए। जानते हैं इस ट्रस्ट के बारे में
क्या है सोमनाथ ट्रस्ट और कैसे काम करता है
श्री सोमनाथ ट्रस्ट (SST) एक धार्मिक चैरिटबल ट्रस्ट है। यह गुजरात पब्लिक ट्रस्ट एक्ट 1950 के तहत रजिस्टर्ड है। इस ट्रस्ट के पास ही सोमनाथ मंदिर, 64 अन्य मंदिर, इसके गेस्टहाउस और इसके मालिकाना हक में आने वाली 2000 एकड़ जमीन का ध्यान और रखरखाव रखने का अधिकार है। SST उन दूसरी कमेटियों से अलग है जो द्वारकाधीश जैसे अन्य मंदिरों का काम देखती हैं। SST का दावा है कि उसके पास मंदिर में प्रवेश पर नियंत्रण रखने का अधिकार है। पिछले साल ही इस कमेटी ने नोटिस जारी करके लोगों से कहा था कि गैर हिंदू इस मंदिर में प्रवेश करने से पहले यहां के जनरल मैनेजर से इजाजत लें।
संगठन और इसके सदस्य
ट्रस्ट का कामकाज इसके ट्रस्टी देखते हैं। ट्रस्टी के बोर्ड में एक चेयरमैन और सचिव समेत आठ सदस्य होते हैं। बोर्ड के सदस्य हर साल चेयरमैन चुनने के लिए वोटिंग करते हैं। सचिव का कार्यक्राल तय नहीं होता। बोर्ड के ट्रस्टी की सदस्यता की कोई समयसीमा नहीं होती। वीरावल के रहने वाले संस्कृत के रिटायर्ड प्रोफेसर जीवन परमार 1975 से ही ट्रस्टी हैं। परंपरा तो यही है कि गुजरात और केंद्र सरकारें चार-चार ट्रस्टियों को नॉमिनेट करती हैं। हालांकि, रिक्त जगह की पूर्ति बोर्ड की तरफ से शॉर्टलिस्ट किए गए प्रत्याशियों द्वारा भी की जाती है। इस वक्त सात ट्रस्टी हैं- गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल जो चेयरमैन भी हैं। पीएम नरेंद्र मोदी, वरिष्ठ बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी, गुजरात के पूर्व चीफ सेक्रेटरी प्रवीण लहरी, कोलकाता के अंबुजा नेओटिया ग्रुप के चेयरमैन हर्षवर्धन नेओटिया और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह। 12 जनवरी को दिल्ली स्थित पीएम के आधिकारिक निवास पर SST की मीटिंग में अमित शाह को इसका ट्रस्टी नियुक्त किया गया।
हाल ही में दुबई के कारोबारी और डोडसल ग्रुप के चेयरमैन राजन किलाचंद ने इस्तीफा दे दिया। केशुभाई, मोदी, लहरी और परमार को गुजरात सरकार की ओर से नॉमिनेट किया गया था। वहीं, आडवाणी, नेओटिया और किलाचंद को केंद्र ने नॉमिनेट किया। आखिरी सरकारी नामांकन के तौर पर भावनगर से कांग्रेस के एमपी रहे प्रसन्नवदन मेहता ट्रस्टी बने, लेकिन कुछ साल पहले उनकी मौत के बाद खाली हुए पद पर ही अमित शाह काबिज हुए हैं।
ट्रस्ट में राजनेताओं का दबदबा
श्री सोमनाथ ट्रस्ट पर उच्च पद पर बैठे लोगों का दबदबा रहा है। सरदार वल्लभ भाई पटेल ने कभी इस मंदिर के पुनर्निर्माण की कसम खाई थी। देश के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने मंदिर का उद्घाटन किया था। शुरुआत में इस बोर्ड पर कांग्रेसी नेताओं का दबदबा था। हालांकि, मेहता उस जमात के आखिरी नेता थे। अब बीजेपी नेताओं का कब्जा है। मोदी इस ट्रस्ट के सदस्य 2010 में बने थे। उस वक्त वे गुजरात के सीएम थे। मोरारजी देसाई भी पीएम रहने के दौरान इस मंदिर के ट्रस्टी थे। उन्होंने भी ट्रस्ट की बैठकें अपने आधिकारिक निवास पर की थी। बिना राजनीतिक जुड़ाव वाले ट्रस्टी अक्सर वे लोग बने, जो मंदिर को दान देते हैं। हालांकि, भले ही राजनेताओं का इस ट्रस्ट पर दबदबा रहा हो, लेकिन ट्रस्ट ने कभी राजनीतिक दल के तौर पर काम नहीं किया। आडवाणी ने जब 1990 में सोमनाथ से रथ यात्रा निकाली तो वे ट्रस्टी नहीं थे।
मंदिर को मिलने वाला पैसा, कैसे होता है खर्च
सोमनाथ और दूसरे मंदिरों में हर साल औसतन आठ लाख श्रद्धालु आते हैं। एसएसटी का पिछले साल वार्षिक बजट 132 करोड़ रुपए थे। चढ़ावे और दान के तौर पर मिलने वाली पूरी रकम पर ट्रस्ट का नियंत्रण होता है। ट्रस्ट के अंतर्गत 200 कर्मचारी हैं, जिन्हें वेतन मिलता है। ट्रस्ट की ओर से 10 करोड़ रुपए खर्च करके एक राम मंदिर बनवाया जा रहा है। इसके अलावा, प्रभास पतन में भी भगवान कृष्ण का एक मंदिर बन रहा है। माना जाता है कि प्रभास पतन वही जगह है, जहां भगवान कृष्ण एक बहेलिए के हाथों मारे गए थे। ट्रस्ट ने एक संस्कृत यूनिवर्सिटी बनवाने के लिए 55 लाख रुपए और एक महल दान में दिया है। प्रदेश सरकार के कुपोषण से निपटने की कोशिशों में शामिल होते हुए ट्रस्ट ने गिर सोमनाथ जिले में आंगनबाड़ी बच्चों के बीच 50 लाख रुपए कीमत की सुखड़ी मिठाई बांटी। ये मिठाई गेहूं, घी आदि से बनती है।
कितना महत्वपूर्ण है यह सोमनाथ मंदिर
सोमनाथ मंदिर का गुजरात के इतिहास और राजनीति से गहरा नाता रहा है। 1026 में महमूद गजनबी के हमले के बाद इस मंदिर को कई बार लूटा गया। अरब सागर के सौराष्ट्र तट पर स्थित इस मंदिर में देश में स्थित भगवान शिव के 12 में से एक ज्योर्तिलिंग स्थापित है। यह मंदिर आस्था, संपन्नता और हिंदू स्वाभिमान का प्रतीक भी माना जाता है। इस मंदिर की अकूत संपत्ति की वजह से ही विदेशी हमलावरों ने इस पर छह बार हमला किया। नवंबर 1947 में देश के उप प्रधानमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल ने इस मंदिर को दोबारा से बनवाने की कसम खाई। हालांकि, उनका यह रुख नेहरू के सेक्युलेरिज्म के ब्रांड के उलट था। सरदार पटेल इसके बाद भगवा ताकतों के प्रतीक बन गए। उनकी मौत के बाद राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने मंदिर का उद्घाटन किया। राजेंद्र प्रसाद, जो कथित तौर पर ‘हिंदू मसलों’ को लेकर नेहरू से कई बार भिड़े।