सबरीमाला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं को प्रवेश देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर शिवसेना ने नाराजगी जताई है। शिवसेना की केरल इकाई ने एक अक्टूबर को पूरे राज्य में हड़ताल का फैसला किया है। वैसे बता दें कि इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया था। कोर्ट ने आदेश दिया था कि सभी उम्र की महिलाएं सबरीमाला मंदिर में प्रवेश कर सकती हैं।
सबरीमाला में महिलाओं के प्रवेश के मामले में चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने फैसला पढ़ते हुए कहा था कि महिलाएं समाज में बराबर की हिस्सेदार हैं। धर्म के मामले में भी महिलाएं बराबर की हिस्सेदार हैं। समाज को अपनी सोच बदलनी ही चाहिए। पुरानी मान्यताएं आड़े नहीं आनी चाहिए।
Kerala: Shiv Sena has called for a statewide 12 hours strike on October 1 against Supreme Court’s verdict to allow women of all ages to enter Sabarimala Temple. pic.twitter.com/cmDeEtyYSG
— ANI (@ANI) September 29, 2018
इस मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच जजों की बेंच ने की थी। इस मामले में सुनवाई अगस्त में ही पूरी हो गई थी। लेकिन तब कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। इस मामले में चार जजों ने अलग-अलग फैसला पढ़ा था। ये फैसला 4-1 केे बहुमत से आया था। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के अलावा बेंच में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस नरीमन और जस्टिस इंदु मल्होत्रा शामिल थे।
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में उस प्रावधान को चुनौती दी गई थी, जिसके तहत मंदिर में 10 से 50 वर्ष आयु की महिलाओं के प्रवेश पर अब तक रोक थी। इस रोक के पीछे तर्क ये दिया गया था कि महिलाएं मासिक धर्म के समय अपवित्र मानी जाती हैं ऐसी स्थिति में उन्हें मंदिर में प्रवेश नहीं दिया जा सकता है।
कोर्ट ने कहा कि अगर महिलाओं का प्रवेश इस आधार पर रोका जाता है कि वे मासिक धर्म के समय अपवित्र हैं तो यह भी दलितों के साथ छुआछूत की तरह है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस रोहिंटन नरीमन ने पूछा था कि इसका तार्किक आधार क्या है? जस्टिस नरीमन ने कहा कि आपके तर्क का तब क्या होगा अगर लडक़ी का 9 साल की उम्र में ही मासिक धर्म शुरू हो जाए या जो ऊपरी सीमा है उसके बाद किसी को मासिक धर्म हो जाए। इस दौरान सिंघवी ने कहा कि यह परंपरा है और उसी के तहत एक उम्र का मानक तय हुआ है।
वैसे बता दें कि इससे पहले केरल हाईकोर्ट ने अपने फैसले में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी को सही ठहराया था। हाईकोर्ट ने कहा था कि मंदिर में प्रवेश से पहले 41 दिन के ब्रह्मचर्य का पालन करना होता है और मासिक धर्म के कारण महिलाएं इसका पालन नहीं कर पाती हैं।