78 साल की उम्र और 15 सालों तक दिल्ली पर राज करने का रिकॉर्ड। यूं ही नहीं है कि देश में चुनावी गर्मी शुरू होते ही शीला दीक्षित सुर्खियों में हैं। अप्रैल-मई में पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों के अलावा आगे उत्तर प्रदेश पर सबकी नजरे हैं। पूरे भारत के साथ दिल्ली में भी उखड़ी हुई कांग्रेस आने वाले चुनावों में फिर से पैर जमाने के लिए अपनी इस बुजुर्ग नेता के अनुभवों का फायदा उठाने की कोशिश करेगी यह तो तय है। पिछले चुनावों में कुछ कारणों से जनता ने दीक्षित को नकार दिया लेकिन इन्होंने जितने समय तक जनता के दिलों पर राज किया वह भी इतिहास है। और वे नम्रता से कहती भी हैं…लोग गलतियां माफ कर देंगे। दिल्ली की राजनीति के केंद्रबिंदु में रहीं दीक्षित से दिल्ली के हालात पर जनसत्ता के कार्यकारी संपादक मुकेश भारद्वाज से बातचीत के संक्षिप्त अंश।
भ्रष्टाचार के आरोपों पर दिल्ली के लोगों ने कांग्रेस को बेदखल किया और केजरीवाल सरकार अभी तक यह मुद्दा सरगर्म रखे हुए है।
देखते हैं, यह सरकार भ्रष्टाचार का क्या करती है। सच तो यह है कि यह भी दूसरे किसी राजनीतिक दल की तरह ही है। ऐसा नहीं है तो बताएं कि ये पार्टी चलाने के लिए पैसा कहां से ला रहे हैं? क्या ये लोग पैसे खुद बना रहे हैं? सबको इस बात का इंतजार है कि यह सरकार भ्रष्टाचार का क्या करती है।
लेकिन आपकी सरकार पर भ्रष्टाचार के कई आरोप लगे थे।
भ्रष्टाचार में हमारा और उनका कोई मुकाबला ही नहीं। आम आदमी पार्टी की सरकार के एक साल के दौरान उनके 30 के करीब मंत्रियों, विधायकों पर कई तरह के आरोप हैं। जबकि हमारे 15 सालों के शासनकाल में किसी मंत्री के खिलाफ कोई मामला दर्ज नहीं हुआ।
लेकिन राष्टÑमंडल खेलों से लेकर बहुत तरह के भ्रष्टाचार के आरोपों से कांग्रेस सरकार घिरी हुई थी।
हमारे खिलाफ भ्रष्टाचार का इनका शोर बहुत था। सबसे बड़ा इल्जाम राष्टÑमंडल खेलों को लेकर था। उस पर कैग की रिपोर्ट आ चुकी है। इस रिपोर्ट में मेरा जिक्र भर है कि जब स्ट्रीट लाइटें लग रही थीं तो मैं खुद उनकी गुणवत्ता की जांच के लिए जाती थी। इसके अलावा कुछ भी नहीं। मौजूदा सरकार बताए कि उसमें मेरा क्या दोष था? असल में आम आदमी पार्टी ने एक माहौल बना दिया था सरकार के खिलाफ, जिसका हर्जाना हमें देना पड़ा।
दिल्ली के लोग इसी वजह से तो आपके खिलाफ हुए थे।
नहीं, ऐसा नहीं कि सिर्फ यही वजह थी। दरअसल आम आदमी दिल्ली ओर केंद्र की सरकार में भेद नहीं कर पाता। केंद्र की वजह से जो दिक्कतें आती हैं उसका असर भी दिल्ली में पड़ता है। शायद केरल या किसी और दूरदराज के प्रदेश में ऐसा न हो। उस समय केंद्र सरकार भी भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी थी। तब 2-जी घोटाले वगैरह का बड़ा शोर था। इसके अलावा मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सपने बेचने में कामयाब रहे। दिल्ली के लिए मुफ्त पानी, बिजली की बात थी। लोग उसके दबाव में आ गए। यह अलग बात है कि बिजली पानी की कीमतों को काबू में रखने के लिए हम भी कंपनियों को अनुदान देते थे। कर ये भी यही रहे हैं। लेकिन आम लोगों को उलझाने के लिए इसे मुफ्त का दर्जा दे दिया। ऐसे लोकलुभावन वादों का यह तरीका नया था। जबकि हम लोग यथार्थ के धरातल पर यहां चुनाव लड़ते रहे हैं।
दिल्ली में उखड़ गई कांग्रेस की वापसी का रास्ता क्या होगा?
कांग्रेस का पिछले सौ बरस का इतिहास है। मौजूदा स्थिति से बाहर आना महज कुछ समय की बात है।
तो क्या जनता यह मान ले कि कांग्रेस ने अपनी गलतियों से सबक सीख लिया है?
मेरा मानना है कि पार्टी नेतृत्व इस समय सही दिशा में है। लोगों ने अब इसे समझना शुरू किया है। गलतियां सबसे होती हैं। अगर लोग अच्छे काम भूल सकते हैं तो गलतियों को भी जल्दी ही भूल जाएंगे। अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। वैसे भी केंद्र और दिल्ली की सरकारों को अभी ज्यादा समय नहीं हुआ है। लोग उतने भी उतावले नहीं हैं। उन्हें इंतजार करना आता है। दोनों ही जगह सरकारों का भेद खुल रहा है। जल्द ही यह जादू टूट जाएगा
केजरीवाल और केंद्र की टकराहट खत्म होने का नाम नहीं ले रही। आपने भी भाजपा की अगुआई वाली केंद्र सरकार के अंदर काम किया था।
केजरीवाल की सारी राजनीति ही टकराव पर टिकी है। फिर चाहे वे उपराज्यपाल हों या पुलिस आयुक्त। वे यह भी भूल जाते हैं कि पुलिस आयुक्त का उनसे कोई मुकाबला नहीं। वे मुख्यमंत्री हैं। यही स्थिति उनकी अपने राजनीतिक विरोधियों के साथ है। मेरी चुनौती है कि वे हमारे शासन के कामों की जितनी मर्जी जांच करवा लें। हमें कोई एतराज नहीं। लेकिन उन्हें तो टकराव कायम रखना है, जैसे भी रखें। हमारे शासनकाल में कोई भ्रष्टाचार हुआ है तो वे बताएं किसके खिलाफ क्या है? हमने भी केंद्र की भाजपा सरकार के साथ काम किया। लेकिन ऐसा टकराव कभी नहीं हुआ।
रोटी, कपड़ा और मकान के बरक्स दिल्ली के सामने प्रदूषण की चुनौती भी खड़ी हो गई है। विपक्ष भी इस समस्या को नजरअंदाज नहीं कर सकता है। आप इसे कैसे देखती हैं?
यह सच है कि दिल्ली की सबसे बड़ी समस्या प्रदूषण है और इसके लिए जो सम-विषम फार्मूला सरकार ने निकाला वह नाकाम है। अब तो सर्वेक्षणों में भी यह आ चुका है कि उससे प्रदूषण के स्तर पर खास असर नहीं पड़ा है। दिल्ली में प्रदूषण का बड़ा कारण बाहर से आने वाले वाहन हैं। पहले उससे जुड़े नियमों को सख्ती से लागू किया जाए। इस पर नियंत्रण इतना आसान नहीं है।
केजरीवाल सरकार की नौकरशाही से भी तकरार बरकरार है। अपने प्रशासनिक अनुभवों के आधार पर आप इसे कैसे देखती हैं?
दिल्ली में नौकरशाही, शिक्षक, डॉक्टर सबका मनोबल गिरा हुआ है। यह ऐसी सरकार है जिसने खुद ही लोगों को व्यवस्था के खिलाफ खड़ा कर दिया है। आलम यह है कि न तो ये अफसरों पर विश्वास करते हैं और न ही वे इन पर विश्वास करते हैं। इसका सीधा असर सरकार के कामकाज पर पड़ रहा है।
दावा तो है कि यह आम लोगों की सरकार है?
यह भी एक वहम है कि यह आम आदमी की सरकार है। क्या केजरीवाल ने एक बार भी महंगाई के बारे में कुछ कहा? उसे रोकने के लिए कभी कुछ किया? हमारे शासनकाल में 70 ट्रक शहर में आलू, प्याज और दालों की सप्लाई करते थे। महंगाई ने लोगों की कमर तोड़ रखी है।भ्रष्टाचार और सिद्धांतों को लेकर केजरीवाल सरकार अपनी पीठ ठोकती रही है। बल्कि मेरी कमीज सबसे उजली वाली राजनीति के इस दौर में सबसे पाक-साफ होने का दावा यही करते हैं।
यह एक सिद्धांतविहीन सरकार है। जो इनके सिद्धांत हैं, वे भी गजब हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ हैं लेकिन 30 विधायक आरोपों से घिरे हैं। क्या करना चाहते हैं, किसी को पता नहीं। लोगों को आलू-प्याज मुहैया नहीं लेकिन यह सरकार 520 करोड़ रुपए अपनी मशहूरी पर खर्च करेगी। यह राशि कांग्रेस शासनकाल में 25 से 30 करोड़ के बीच रहती थी। यह नाम की आम आदमी की पार्टी है। असल में इसके पास जनता के लिए कुछ भी नहीं है। खुद पे करोड़ों खर्च करेंगे लेकिन सफाई कर्मचारियों को उनकी तनख्वाह नहीं देंगे।
केजरीवाल सरकार के एक साल पर आपकी टिप्पणी?
कुछ नहीं किया एक साल में। कुछ किया तो बस ‘री-पैकेजिंग’। कांग्रेस शासनकाल की योजनाओं को ही घुमा-फिरा कर नए तरीके से सजा कर पेश कर दिया और झूठी वाहवाही लूटी। बस कुछ किया तो योजनाओं के नए नाम दे दिए।