समझौता ब्लास्ट से मिले जख्म अब भी पीड़ितों के लिए हरे हैं। NIA कोर्ट की तरफ से चारों आरोपियों को रिहा किए जाने से उत्तर प्रदेश के बिजनौर निवासी मोहम्मद जाकिर को गहरा धक्का लगा है। 46 साल के जाकिर ने कहा कि इस फैसले से वे खुद को अपमानित महसूस कर रहे हैं। 12 साल पहले हुए इस धमाके में उन्होंने अपने मां-बाप को खो दिया था। मां की लाश उन्हें आज तक नहीं मिली। उस धमाके में उनके खुद के हाथ और पैर जल गए थे। उस धमाके की गूंज आज भी उनके जेहन में ताजा है।
जाकिर कहते हैं, ‘मैंने कोर्ट के समक्ष बतौर गवाह अपना बयान भी दर्ज कराया था। मैं फैसले से संतुष्ट नहीं हूं। मैं अपने परिजनों से चर्चा कर इस फैसले के खिलाफ एक अपील करूंगा। मैंने अपने मां-बाप को खोया है और आरोपियों को ऐसे ही आजाद नहीं घूमने दूंगा।’ उल्लेखनीय है कि 18 फरवरी 2007 को हुए इस धमाके में जाकिर के साथ उनके पिता मोहम्मद सादिक (68) और मां अशरफ-उन-शाह (62) दिल्ली से लाहौर अपने परिचितों से मिलने जा रहे थे। पानीपत के पास जब यह धमाका हुआ तो उसके बाद जाकिर की आंख दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में खुली, जहां उन्हें 40 दिनों तक रखा गया।
जाकिर उस दर्दनाक दिन को याद करते हुए कहते हैं, ‘मेरे बड़े भाई इफ्तिखार अहमद भागकर पानीपत पहुंचे लेकिन मां-बाप उन्हें नहीं मिले। न ही उनके बारे में कोई जानकारी मिली। वो वापस आए और वीजा-पासपोर्ट की कॉपी लेकर फिर पुलिस के पास पहुंचे। एक शव की खून से डीएनए टेस्ट के जरिए उनकी मां के रुप में पहचान हुई, लेकिन पिता का शव तो आज तक नहीं मिल पाया।’
जाकिर ने कहा, ‘मैंने पिता के लिए करीब दो साल तक भागदौड़ की। रेलवे ने मृतकों के परिजनों को मुआवजे के रुप में 10-10 लाख रुपए दिए थे। मुझे आज तक पिता की मौत पर कोई मुआवजा नहीं मिला।’ आज जाकिर सात साल के बच्चे के पिता हैं और बिजनौर में टेलरिंग शॉप चलाते हैं। वे कहते हैं, ‘इस धमाके से पहले मैं तीन तीन बार अपने मामा समेत अन्य रिश्तेदारों से मिलने पाकिस्तान गया था लेकिन समझौता ब्लास्ट के बाद से परिवार का कोई भी सदस्य वहां नहीं गया।’