दिल्ली नगर निगम चुनाव टलते ही कई पार्षदों में मायूसी छा गई है। मायूसी का कारण है कि वे आनन-फानन में अपने दल से इस्तीफा देकर दूसरे दल में शामिल हुए कि चुनाव होते ही वे नई पार्टी से निगम में पहुंच जाएंगे लेकिन ग्रहण ऐसा लगा कि अब चुनाव ही टल गया है। बेदिल ने जब इसकी तहकीकात की तो पता चला कि दरअसल इस्तीफा देने वाले कुछ कद्दावर पार्षद इन दिनों निगम में आना वाजिब नहीं समझते। कारण वे जिस पार्टी से इस्तीफा दिया है, उस पार्टी में लंबे समय तक रहे और निगम मुख्यालय में धौंस जमाते रहे। अब इस्तीफा के बाद उनकी पहले की कुर्सी तो छीनी ही गई उल्टे चुनाव टलते ही अब उनके निगम में पहुंचने का रास्ता भी आसान नहीं रहा। इसलिए वे मायूस बैठे हैं।

पुलिसिया कार्यशैली

पुलिस की कार्यशैली में आमूलचूल परिवर्तन करने का संकल्प लिए कप्तान इन दिनों फिर बैठक कर रहे हैं और आदेश निकालने का अभियान भी शुरू कर दिया है। इस निर्देश से जहां जिले के आला अधिकारी सकते में हैं वहीं थाने में बैठे इंसपेक्टरों में तो शामत आ गई है कि पता नहीं उनके नए फरमान से उन्हें कहां, किस जगह बैठा दिया जाए। इसलिए अब वे कुछ बोल भी नहीं रहे। बेदिल ने जब पूछने की कोशिश की तो उनका जबाब था भाई, नौकरी करने दो, पता नहीं कहां, किस विभाग में भेज दिया जाए।
नियमों की चुनौती

औद्योगिक महानगर में एक तरफ जहां आसमान छूती डीजल की कीमत और धुएं से होने वाले प्रदूषण के चलते एनजीटी के आदेश पर सभी कारखानों के जनरेटर पीएनजी में तब्दील किए जाने पर काम चल रहा है। वहीं, शहर में विद्युत वाहनों की बिक्री बढ़ाने के लिए उनकी उपलब्धता एक चुनौती बनी हुई है। जबकि शहर से सटे दिल्ली में बड़ी संख्या में दो पहिया विद्युत वाहनों की बिक्री के लिए शोरूम खुल गए हैं। मांग के बावजूद शहर में प्राधिकरण की नीति के चलते कारोबारी विद्युत वाहनों के शोरूम संचालित करने से कतरा रहे हैं।

फिलहाल अधिकांश वाहनों के शोरूम औद्योगिक भूखंडों पर संचालित हैं। जो भू उपयोग नियमों के विपरीत है और ज्यादातर संचालित भूखंडों को आबंटन निरस्तीकरण के नोटिस भी जारी हैं। चूंकि विद्युत वाहन की बिक्री भी व्यवसायिक गतिविधि है, लिहाजा प्राधिकरण की तरफ से जारी होने वाले आबंटन निरस्तीकरण के नोटिसों के चलते कारोबारी यहां विद्युत वाहन शोरूम संचालित करने से परहेज कर रहे हैं। दूसरी तरफ, व्यवसायिक क्षेत्रों में जरूरत योग्य जगह का किराया बेहद महंगा होना भी इसकी मुख्य वजह है।

असमंजस की स्थिति

दिल्ली नगर निगम के चुनाव की तारीखों का ऐलान को लेकर फिलहाल असमंजस की स्थिति बनी हुई है। दिल्ली समेत दो राज्यों की सत्ता पर काबिज पार्टी के नेताओं और कार्याकतार्ओं को उम्मीद थी कि इस बार निगम में परिवर्तन होगा। यही कारण है कि इस बार उन्होंने नारे भी दिया कि निगम में होगा परिवर्तन। पर चुनावों की तारीखों के ऐलान से पहले जिस प्रकार से राज्य निर्वाचन आयोग की ओर से कहा गया कि केंद्र सरकारी की ओर से एक पत्र आया है। पत्र में तीनों निगम को एक करने की बात कही गई है।

उसके बाद से सत्ता पर काबिज पार्टी के भावी उम्मीदवार पशोपेश में है। उन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि प्रचार उसी प्रकार से किया जाए, जैसे बीते एक महीने से कर रहे थे या फिर प्रचार को रोक दिया जाए। नेता जी उम्मीद लगाए बैठे थे कि इस बार पार्टी के पक्ष में हवा बह रही है और टिकट मिली तो जीत पक्की है। पर सारा खेल केंद्र सरकार के एक पत्र ने बिगाड़ दिया।
बेदिल