दिल्ली के सरकारी अस्पतालों में एक गंभीर मरीज को दाखिला देने से इनकार करने के मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने दिल्ली सरकार को नोटिस भेजा है। आयोग ने दिल्ली के प्रधान सचिव (स्वास्थ्य) को मंगलवार को नोटिस जारी कर चार हफ्ते के अंदर जवाब मांगा है। मामला ब्रेन हैमरेज के शिकार 65 साल के सतीश कौशिक का था, जिन्हें दिल्ली के जीबी पंत अस्पताल से दो बार लौटाया गया और अंत में राम मनोहर लोहिया अस्पताल में वे दाखिल हुए।
लेकिन उन्हें बचाया नही ंजा सका। ‘जनसत्ता’ ने इस खबर को प्रमुखता से छापा था। मीडिया रिपोर्ट के आधार पर मामले पर स्वत: संज्ञान लेते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने कड़ी टिप्पणी की है। आयोग के सदस्य डी. मुरूगेशन ने कहा, ‘यह समझ नहीं आता कि किसी खास विंग में बेड की कमी की स्थिति में गंभीर मरीज को किसी अन्य विंग के सामान्य वार्ड या आइसीयू में अस्थायी तौर पर दाखिल कर इलाज क्यों नहीं किया जाता’?
डी. मुरुगेशन ने दिल्ली के स्वास्थ्य सचिव से सवाल किया है कि ब्रेन हैमरेज के शिकार वरिष्ठ नागरिक सतीश कौशिक को कैसे दिल्ली सरकार के एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल तक दौड़ाया गया, चाहे वह बेड की कमी के कारण हो या फिर न्यूरोलॉजिस्ट के उपलब्ध न होने के कारण। आयोग ने कहा कि हाल के महीनों में आयोग ने ऐसी कई घटनाओं के प्रति अपना आक्रोश प्रकट किया है और दिल्ली सरकार से स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने की जरूरत की बात कहता आया है। लेकिन सरकार के रवैये से निराश आयोग ने अपनी टिपण्णी में कहा, ‘यह जान पड़ता है कि सरकार को इस मसले पर अभी काफी काम करना बाकी है’।
जनसत्ता ने 29 फरवरी को छपी खबर में जीबी पंत में सतीश कौशिक और कई अन्य मरीजों का ब्योरा दिया था कि गंभीर मरीजों के साथ अस्पताल का क्या व्यवहार है। बिस्तरों की कमी से किस तरह से सतीश कौशिक दो बार पंत अस्पताल से लौटाए गए। उनके परिजनों द्वारा दिल्ली सरकार का दरवाजा खटखटाने पर भी सुनवाई नहीं हुई, आप कार्यालय से भी निराशा मिली। कहा गया कि हम कुछ नहीं कर सकते, जन-संवाद में आएं, लेकिन सतीश कौशिक ने उसके पहले ही दम तोड़ दिया था। पंत अस्पताल, दिल्ली सरकार का सुपरस्पैशियलिटी अस्पताल है जहां हृदयघात और मस्तिष्कघात के लिए इमरजेंसी की व्यवस्था है। ज्यादातर मरीजों को इमरजेंसी में बिस्तर न होने का कारण बता लौटा दिया जाता है।