बिहार में चुनाव प्रचार के दौरान खासकर चुनावी सभाओं में मतदाता को नेताओं का वह चुटीला अंदाज नहीं मिल पा रहा है जो लालूप्रसाद की देसज बोली में मिलता था। उनको गांव और शहर के लोग भी याद करते हैं। बगैर लालूप्रसाद उन्हें सुनसान सा महसूस हो रहा है। देवघर के वांशिदे संजय भारद्वाज बताते हैं कि लालू को मंच पर साथ खड़े उम्मीदवार को भी डपटते देर नहीं लगती। एक खुद पर बीती सच बात का बखान करते हुए उन्होंने बताया कि झारखंड के मधुपुर विधानसभा क्षेत्र से 2009 में हुए विधानसभा सीट से वे राजद उम्मीदवार थे। लालू जी चुनावी सभा को संबोधित करने मधुपुर हेलिकॉप्टर से पधारे। उनके पैर पर चोट की वजह प्लास्टर चढ़ा था। उन्हें मंच पर किसी तरह ले जाया गया। तबतक कोई माइक से भाषण दे रहा था। उनके मंच पर आने के बाद भी भाषण जारी रहा। बस फिर क्या उन्होंने मुझे ही डपट दिया। संजय कहते हैं कि उनकी इस डांट-डपट में भी प्यार छिपा होता है। दिलचस्प बात है कि मंच से अगल-बगल थोड़ा शोरगुल होता तो फटकारते भी उन्हें देर नहीं लगती। और सामने बैठे कई लोगों को नाम लेकर भी बुलाते। मंच पर चढ़ने के दौरान गांव की कई महिलाओं से ठेठ गंवई बोली में बतियाते और हालचाल पूछ लेते। यह बात बाकी नेताओं में नहीं है। इसी वजह से लालूप्रसाद जेल में होने के बाबजूद ग्रामीणों के बीच चर्चा का विषय बने हुए हैं।
तेजस्वी हरेक सभा में गांववालों को यह बताने से नहीं चूकते कि पिता लालूप्रसाद को फंसाया गया है। वे जेल से बाहर रहते तो एसटी-एससी एक्ट में संशोधन करने की मजाल नहीं थी। यह अलग बात है कि ग्रामीणों के जेहन में इसका असर कितना हो रहा है। यह पता तो मतदान के दिन और वोटों की गिनती से पता चलेगा। मगर वे लालूप्रसाद को अपने बीच न पाकर कुछ खोया-खोया सा महसूस जरूर कर रहे हैं। गांव के मतदाताओं को लुभाने के लिए राजद ने नारा गढ़ा है। ‘करे के बा…लड़े के बा…जीते के बा। ’ यह नारा बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बोल से कुछ मिलता-जुलता है। वे बांग्ला में मतदाताओं को कहती हैं करबो-लड़बो-जीतबो। इसके अलावा राजद ने एक गीत भी तैयार करवाया है। गीत के केंद्र में लालूप्रसाद के साथ तेजस्वी भी हैं। इसमें भोजपुरी और गंवई पुट देते हुए अपने विरोधियों और मतदाताओं को सजग किया गया है। ‘दुश्मन होशियार-जागा बिहार-किया है यह यलगार-बदलेंगे सरकार।’ राजद युवा के प्रदेश नेता अरुण कुमार यादव बताते हैं कि इस तरह के गीत का वीडियो जल्द रिलीज होने वाला है।
जब तक मशीन पीइं…नहीं बोले: तीनटंगा दियारा के लोकमानपुर गांव के सिरों यादव, भवेश मंडल और जानकी तांती कहते हैं कि 2014 की चुनावी सभा में लालूजी ने आकर वोट भी मांगा और हंसाया भी खूब। उनकी बातों से पेट में बल पड़ जाता था। वे बोले ध्यान से बूथ में जाकर मशीन में वोट डालना है। उस मशीन पर लालटेन की छाप बनी है। उसी के सामने बटन तब तक दबाकर रखना है जबतक मशीन पीइं…नहीं बोले। समझ गइल न। इसी में लोगों की ठहाकेदार हंसी से सभा का माहौल मजेदार हो जाता था।
वो चुटीलापन नहीं…: चुनावी सभा चाहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हो या मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की, जनता उन्हें सुननी तो जाते है, मगर वह चुटीलापन नहीं मिलता जो राजद नेता से मिलता था। लालू की पत्नी राबड़ी देवी या उनके बेटे तेजस्वी यादव में भी वह अंदाज-ए-बयां नहीं आ पाता। बरारी के कैलाश मंडलका कहना है कि हालांकि दो चार बातें लालू की शैली में तेजस्वी बोलते भी हैं… जैसे नीतीश कुमार को पलटू चाचा…मगर वह बात नहीं आ पाती है।
