दफ्तर से आने के बाद क्लाइंट्स के साथ डील करना, प्रपोजल तैयार करना, फॉलोअप करना और बॉस को मीटिंग शेड्यूल बताना…बस यही जिंदगी हो गई थी। मैं घर को समय नहीं दे पाती थी। नींद पूरी नहीं होती थी। काम की टेंशन हमेशा लगी रहती थी। इसलिए मैंने छह महीने पहले ही एक ट्रस्ट की नौकरी छोड़ी है। यह पीड़ा है मुंबई की क्लिप्सी की। यह दास्तां केवल क्लिप्सी की नहीं है बल्कि घर और दफ्तर के काम के बीच सैंडविच बनी हर महिला की है। ऑफिस का काम खत्म होने के बाद कर्मचारी अधिकारियों या नियोक्ताओं के कॉल, टेक्स्ट और ई-मेल का जवाब देना जरूरी न होना, कर्मचारियों को तनाव मुक्त रखना और निजी व काम की जिंदगी में संतुलन बनाए रखने की कोशिश के तहत हाल ही में लोकसभा में राइट टू डिस्कनेक्ट बिल राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी की सांसद सुप्रिया सुले की ओर से पेश किया गया है।
क्लिप्सी का कहना है कि अगर इस तरह का विधेयक पास होता है तो कुछ क्षेत्रों के लिए यह खुशखबरी होगी। क्योंकि इससे जो अप्रेजल होगा वो दफ्तर में किए गए काम के आधार पर होगा। काम की टेंशन कम होगी, लेकिन इस विधेयक पर केवल हां या न में जवाब दे देना भी ठीक नहीं है। क्योंकि अभी कुछ सालों में महिलाओं को काम करने का मौका मिला है। उसमें से भी ज्यादातर सेवा क्षेत्र की महिलाएं घर से काम करती हैं। तो अगर किसी को घर से ही काम करने में सहुलियत है तो वो वहीं से काम करना चाहेंगी। इसके अलावा अगर उनके क्लांइट्स ही विदेश के होंगे तो बात करनी मुश्किल होगी। क्योंकि ग्लोबल टाइमिंग स्टैंडर्ड अलग है। ऐसे में यह बिल महिलाओं के लिए वरदान होगा या श्राप यह कहना मुश्किल है। दूसरा, यह विधेयक भारत से पहले जिन देशों में लागू हैं वे विकसित हैं जबकि भारत विकासशील।
विधेयक ऐसे करेगा काम
यह एक प्राइवेट मेंबर बिल है। राइट टू डिस्कनेक्ट बिल 10 से ज्यादा कर्मचारियों वाली कंपनियों में लागू होगा। ऐसी कंपनियों को कर्मचारी कल्याण समिति का गठन करना होगा जिसमें कंपनी के कार्यबल के प्रतिनिधि शामिल होंगे ताकि इस नियम का पालन हो सके। विधेयक में इस बात का भी प्रावधान है कि अगर कोई कर्मचारी अपने अधिकारी या नियोक्ता के संदेश का जवाब नहीं देता है तो उसके खिलाफ कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई नहीं की जा सकती है।
नेशनल काउंसिल फॉर अप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च के अनुसार भारत में 97 फीसद महिला आबादी असंगठित क्षेत्र में काम करती है। इस क्षेत्र में काम की कोई समयसीमा नहीं है। दिल्ली के हील फाउंडेशन में जनसंपर्क प्रबंधक छवि का कहना है कि देश में ऐसे कई काम हैं जहां 9 से 5 की ड्यूटी हो ही नहीं सकती। मीडिया और जनसंपर्क इसके उदाहरण हो सकते हैं। हमारा जो काम है वो हमें ये अनुमति नहीं देता है कि हम कुछ समय-सीमा में काम कर सकें लेकिन मेरी अपनी राय है कि कार्यालय के काम के बाद घर को समय दिया जाना चाहिए। अगर इस तरह का विधेयक लाया जा रहा है तो यह हम महिलाओं के लिए बहुत अच्छा होगा। जिंदगी बस ऑफिस तक सीमित नहीं रह जाएगी। शारीरिक तनाव झेला जा सकता है लेकिन मानसिक तनाव ज्यादा थकाऊ होता है। इस विधेयक से शायद यह तनाव खत्म होगा। जीवन में शांति आएगी।
महिलाओं के लिए बड़ी चुनौती
घर और काम के बीच संतुलन बनाए रखना मर्दों के मुकाबले औरतों के लिए अधिक चुनौतीपूर्ण होता है। उत्तर प्रदेश के बजाज कैपिटल इंश्योरेंस में वरिष्ठ प्रबंधक श्वेता मिश्रा का कहना है कि एक औरत की जिंदगी केवल परिवार या दफ्तर तक ही नहीं है। अगर ये दोनों काम अलग रहेंगे तो वे अपनी जिंदगी को जी सकेंगी। अपनी ख्वाहिशों को पूरा कर पाएंगी। वे कहती हैं कि यह विधेयक हायर एंड फायर वाली कंपनियों के लिए सबक होगा, क्योंकि वे लोग महिलाओं का शोषण करते हैं। काम के नाम पर घर पर फोन करके उन्हें परेशान करते हैं। उन्हें नियंत्रित करने की कोशिश करते हैं।
शोषण से होगा बचाव, स्थिति सुधरेगी
पिछले दिनों देश में हैशटैग मीटू के तहत यौन शोषण के कई मामले सामने आए। दफ्तर के मालिक व नियोक्ता महिलाओं को घर तक परेशान करते थे। इस पर ओडिशा के एक केंद्रीय विद्यालय में पढ़ाने वाली भूमिका का कहना है कि यह बहुत अच्छा विधेयक है। इससे उन घटनाओं पर भी लगाम लगेगी जिनमें लड़कियों का शोषण किया जाता है। यदि महिलाओं के लिए नीतिगत तौर पर सोचा जाए तो उनकी स्थिति में सुधार आएगा। मुझे उम्मीद है कि लड़कियों के शोषण में भी कमी आएगी।

महिलाओं के लिए कम हैं रोजगार
भोपाल की एक संस्था में प्रोजेक्ट संयोजक के पद पर हैं शादमा। उनका कहना है कि इस विधेयक से कुछ फायदा नहीं होने वाला। विशेषकर स्वयंसेवी संस्थाओं में काम करने वाली महिलाओं के लिए यह संभव नहीं है। औरत हो या आदमी हम सब नौकर हैं।

अगर हम विधेयक के अनुसार चलेंगे और उसके तहत आवाज उठाएंगे तो तुरंत नौकरी से निकाल दिया जाएगा। एक तो पहले ही महिलाओं के लिए नौकरियों में दिक्कतें हैं। हमारे लिए कुछ ही काम के क्षेत्र हैं। हमारे पास नौकरी के अवसर कम हैं।