बीते दिनों व्यक्तिगत ऋण, क्रेडिट कार्ड से लोन, आधार व पैन कार्ड से लोन देने वाले गिरोह की नई तरकीब अब दिल्ली की गलियों में देखी जा सकती है। ऋण मुहैया कराने वाले इन ‘दानियों’ के मोबाइल संदेश और काल से शायद ही कोई अब तक न उबा हो! मोबाइल पर फोन कर या एसएमएस संदेश के जरिए या फिर ई-मेल, फेसबुक, ट्वीटर-इंस्टाग्राम के व्यक्तिगत खाते के जरिए इस धंधे में लगे लोग अभी तक प्रेरित कर ही रहे थे, लेकिन अब वे पुरानी नगाड़ा पद्धति के माध्यम पर लौट आए हैं। ऐसा लग रहा है जैसे तकनीक और 5जी के जमाने में लोग उनको नकारने से लगे थे, इसलिए अब वो गलियों-गलियों में माइक व लाउडस्पीकरों के जरिए आवाज लगाकर लोगों को व्यक्तिगत ऋण, क्रेडिट कार्ड से ऋण लेने की पेशकश कर रहे हैं।

बीते दिनों दक्षिण दिल्ली के कालकाजी के गोविंदपुरी इलाके में दिखा यह माजरा इन दिनों चर्चा का विषय बना हुआ है। आवाज लगाने वाले और ऋण मुहैया कराने वाले इन कथित पेशेवर लोगों से स्थानीय लोगों ने आवास ऋण, प्रधानमंत्री आवास योजना ऋण की जानकारी लेनी चाही तो उन्हें बैंक जाने की सलाह दी गई। पूछताछ पर पता चला कि ये लोग सरकार की तय दर से ऊंचे में ऋण देते हैं। इनके साथ कुछ बड़े निजी फाइंनेंसर भी जुड़े हैं जो जरूरतमंदों को ऊंचे दर पर ऋण देते हैं। किसी ने ठीक ही कहा कि, यह राहत के नाम पर ऋण जाल में फंसाने वाले लोगों का गिरोह है!

फिर गया पानी

दिल्ली नगर निगम में सीटों की अदला-बदली (रोटेशन) के बाद से स्थानीय नेताओं ने सिर पकड़ लिया है। निगमों में 15 साल से सत्ता में काबिज पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच भी असमंजस की स्थिति है। लोगों के बीच बेचैनी बढ़ गई है। दिल्ली में जनप्रतिनिधि भी इसी सोच में है कि अगर सीटों की अदला-बदली न होती तो दो-चार समर्थकों को निगम चुनाव में मौका दिलवा ही देते। साथ ही अगले चुनाव के लिए वे समर्थक भी उनको इलाके में मजबूत करने में मदद करते। लेकिन अब सीटें बदलीं तो उनकी सक्रियता भी जैसे चकरा गई। उनकी उम्मीदों पर जैसे पानी फिरता दिख रहा है। बेदिल को पता चला कि कुछ जनप्रतिनिधि अब संभावित वार्ड में सक्रियता बढ़ाने की सोच रहे हैं, ताकि जहां से उनके एक-दो चेलों को टिकट मिल सके। क्योंकि अगला चुनाव उनको ही लड़ना है और अपने वोट भी तो पक्के करने हैं।

सैंया भए कोतवाल

दिल्ली पुलिस की साख पर बट्टा उसके ही अधिकारी लगाते हैं। अब एक अजीबो-गरीब मामला सामने आया है। पता चला है कि एक वरिष्ठ अधिकारी के नाम पर राजधानी में उगाही हो रही है। अभी तक छोटे स्तर पर पुलिस अधिकारियों का नाम लेकर लोगों को अपना काम बनाते देखा गया है लेकिन एक बड़ी रैंक के अधिकारी के नाम पर उगाही जैसा मामला गंभीर हो जाता है, उस पर तुर्रा ये है कि अधिकारी को इस बात की जानकारी भी है। विभाग में तो यह चर्चा का विषय बन गया। बेदिल ने किसी को कहते सुना, अब तो अधिकारी का तबादला तय है, वहीं कुछ कह रहे थे कि जरूरी छोटी यूनिट मिलेगी। अब उगाही करने वाले और जिनका नाम सामने आ रहा है, उनपर कार्रवाई जो भी हो, लेकिन सैंया भए कोतवाल डर काहे का कहावत तो यहां पूरी तरह सटीक बैठ रही है।

परंपरा दावेदारी की

नगर निगम में सीटों की अदला-बदली (रोटेशन) के बाद तीनों पार्टियों के आला पदाधिकारों की स्थिति विकट हो गई है। यहां सीटों से छिटके उम्मीदवार अभी भी अपनी उम्मीदवारी घोषित करने के लिए जोड़-तोड़ करने में लगे हुए हैं। बस कैसे भी करके सीट मिल जाए और टिकट पक्का हो जाए। अभी तो यह एक परंपरा को आगे बढ़ाने जैसा लग रहा है, क्योंकि जो लोग रोटेशन की भेंट चढ़ गए हैं वो अपनी दावेदारी अपनी विवाहिता और अविवाहित बेटी को यहां से उतारना चाह रहे हैं। तो कुछ लोग अपनी बहु को आगे करके उनके सहारे सत्ता पर कब्जा जमाए रखना चाहते हैं। जो सीट जाति आरक्षण के दायरे में आ गए हैं वे मायूस हैं, हालांकि वो भी दिल्ली में कहीं-कहीं सीट पर अपनी पुरानी रिश्तेदारी ढूंढ रहे हैं। यानी कुल मिलाकर आने वाले निगम चुनाव में परिवार ही परंपरा को ढोता नजर आने वाला है।

कल आज कल

राजनीति का भी जवाब नहीं। यहां आप लंबे समय तक एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी नहीं रह सकते और न ही दोस्त। पार्टी तो लोग कपड़ों की तरह बदलते हैं। वचन और वादे तो रोज ऐसे टूटते हैं जैसे पेड़ों से पत्ते। अब दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश के औद्योगिक जनपद गौतमबुद्ध नगर को ही देखिए। यहां विधानसभा चुनाव के लिए उम्मीदवार जोर आजमाइश कर रहे हैं। पिछले चुनाव में जो नेता एक-दूसरे के खिलाफ लड़ रहे थे, इस चुनाव में उनमें से एक अपने प्रतिद्वंद्वी रह चुके नेता के लिए वोट मांग रहे हैं। अब गए तो एक पार्टी छोड़कर दूसरी पार्टी में कि टिकट मिल जाएगा तो लड़ लेंगे लेकिन यहां तो पार्टी का झंडा मिल गया उठाने को। अब उसी को उठाते लहराते दिख रहे हैं नेता जी। जब यूपी में 2017 में चुनाव हुआ तो यही नेता जी एक राष्ट्रीय पार्टी से चुनाव लड़े तो 20 हजार से कुछ अधिक वोट पाए थे। अब लोगों से पार्टी के उम्मीदवार के लिए वोट मांग रहे हैं।
-बेदिल