केंद्र सरकार ने सरकारी कर्मचारियों के राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की गतिविधियों में शामिल होन पर लगे बैन को हटाया है। 1966 में तत्कालीन कांग्रेस की सरकार ने यह बैन लगाया था। इस मामले में केंद्र सरकार ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में एक हलफनामा दायर कर आदेश की जानकारी दी है। इस मामले के केंद्र में इंदौर के एक रिटायर्ड सरकारी कर्मचारी पुरुषोत्तम गुप्ता हैं। इन्होंने सितंबर 2023 में कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। इसमें कहा गया था कि आरएसएस में शामिल होने से उन्हें रोकने वाले नियम उनकी इच्छाओं को पूरा करने में रूकावट बन रहे हैं।
अपनी याचिका में गुप्ता ने कहा कि वह अपने रिटायर होने के बाद वह अपनी बची हुई जिंदगी के आखिरी सालों में आरएसएस में एक सक्रिय सदस्य के तौर पर शामिल होने का इरादा रखते हैं। उन्होंने कहा कि उनका इरादा आरएसएस के धार्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में शामिल होने का है। हालांकि, होम मिनिस्टरी के द्वारा जारी किया गया आदेश याचिकाकर्ता की इच्छाओं को पूरा करने में रूकावट बन रहे हैं।
किसी भी संगठन में काम करने की आजादी होनी चाहिए
इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए गुप्ता ने कहा कि उन्होंने सेंट्रल वेयरहाउसिंग कॉरपोरेशन में काम किया और दो साल पहले रिटायर हो गए। उन्होंने कहा कि घर पर बैठे-बैठे ऊब जाने के बाद उन्होंने इस आदेश को चुनौती देने का फैसला किया। उन्होंने कहा कि मैंने सालों तक सरकार के लिए हर दिन आठ घंटे काम किया है। मुझे किसी भी संगठन में काम करने की आजादी होनी चाहिए।
मैंने आरएसएस को करीब से काम करते देखा है। वे देश के लिए भीषण गर्मी, ठंड और बारिश में काम करते हैं। मैं क्यों न इसमें शामिल हो जाऊं? इसलिए मैंने इस आदेश को चुनौती दी। उनकी तरफ से इस याचिका को वकील मनीष नायर ने दायर किया। इन्होंने तर्क दिया कि गुप्ता को संघ में शामिल होने से रोकने वाले नियम उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। इतना ही नहीं उन्होंने कहा कि यह काफी भेदभाव भरा है। राज्य सरकार के कर्मचारी आरएसएस के कार्यक्रमों में हिस्सा ले सकते हैं और केवल केंद्र के कर्मचारियों को ही बैन किया गया है।
कोर्ट ने जाहिर की थी नाराजगी
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने इस बात पर नाराजगी जताई कि केंद्र सरकार ने याचिका पर जवाब दाखिल नहीं किया है, इसलिए मामला पेंडिग है। कोर्ट के रिकॉर्ड के मुताबिक, मामले की छह बार सुनवाई हुई और हर बार केंद्र सरकार ने जवाब दाखिल करने के लिए और समय मांगा। 22 मई को सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता समेत गृह मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव कोर्ट के सामने वर्चुअली पेश हुए। उन्होंने कोर्ट में कहा कि चार हफ्ते के अंदर ही जवाब दाखिल कर दिया जाएगा।
केंद्र सरकार से जुड़े एक अधिकारी ने बताया कि 10 जुलाई को हमने कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर बताया कि केंद्र सरकार ने अपने बैन हटा लिए हैं और आरएसएस को आदेश से हटा दिया है। मामले पर अभी फैसला नहीं हुआ है, आने वाले दिनों में फैसला होगा। हम यह नहीं कह सकते कि क्या यह मामला बैन लगाने की वजह से था। देश भर में ऐसे कई मामले हैं और इसके पीछे दूसरे कारण भी हो सकते हैं। 11 जुलाई को जस्टिस एसए धर्माधिकारी और गजेंद्र सिंह की बेंच ने मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
केंद्र ने आरएसएस को लिस्ट से हटाया
केंद्र सरकार के एक वरिष्ठ वकील ने कहा कि हमने अपने जवाब में कहा है कि विवादित आदेश में केंद्र सरकार ने आरएसएस को लिस्ट से हटा दिया है। राज्य सरकार के एक सूत्र ने कहा कि हमारी तरफ से कोर्ट को जानकारी दी गई है कि साल 2006 में शिवराज सिंह चौहान के नेतृत्व वाली बीजेपी की सरकार ने राज्य के कर्मचारियों के आरएसएस कार्यक्रमों में हिस्सा लेने पर बैन हटा दिया था। उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है कि यह आदेश उसी का नतीजा है।