सेना से रिटायर होने के बाद एक 79 वर्षीय वीर चक्र विजेता कर्नल ने ऐसी लड़ाई लड़ी, जिसके चलते 10 दिसंबर को सर्वोच्च न्यायालय ने हरियाणा सरकार को आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को उस ग्रीन बेल्ट को बहाल करने का आदेश दिया जहां कथित तौर पर करनाल जिला भाजपा कार्यालय तक पहुंच प्रदान करने के लिए जल्दबाजी में एक सड़क का निर्माण किया गया था। कर्नल दविंदर सिंह राजपूत ने कहा कि यह लड़ाई किसी युद्ध से भी कठिन थी।

दविंदर सिंह राजपूत, जिन्हें 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में वीरता पदक से सम्मानित किया गया था, उन्होंने पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक इस मामले की पैरवी की। राजपूत ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “युद्ध में कोई अपील या तर्क नहीं होते आप दुश्मन से लड़ते हैं और या तो मारते हैं या मर जाते हैं। यहां, आप और कितने लोगों को अपने ऊपर धौंस जमाने देंगे?”

सड़क 40 पेड़ों को काटने के बाद बनाई गई

अक्टूबर 2023 में, हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण (HSVP) ने करनाल जिले के सेक्टर 9 में स्थित एक ग्रीन बेल्ट वाले क्षेत्र को राष्ट्रीय राजमार्ग-44 से जोड़ने वाली 100 मीटर लंबी और 10 मीटर चौड़ी सड़क का निर्माण किया। यह सड़क 40 पेड़ों को काटने के बाद बनाई गई थी। राजपूत ने अदालत में दलील दी कि सड़क का निर्माण कुछ ही दिनों में किया गया था। संयोगवश, रिटायर्ड कर्नल का घर भाजपा जिला कार्यालय से सटा हुआ है, जिसका मतलब है कि सड़क से उन्हें भी आवागमन की सुविधा मिलती थी लेकिन उनका तर्क था कि चूंकि राजमार्ग तक पहुंचने के लिए एक अन्य सड़क मात्र 100 गज की दूरी पर थी इसलिए इसकी आवश्यकता नहीं थी।

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एचएसवीपी ने अदालत को बताया कि सेक्टर 9 के निवासियों के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग-44 तक सुरक्षित पहुंच की योजना बनाना एक तत्काल आवश्यकता है. एचएसवीपी ने यह भी कहा कि नई सड़क यातायात के खतरे को कम करती है जिससे स्कूली बच्चों, पैदल यात्रियों और स्थानीय यात्रियों की सुरक्षा होती है”।

एचएसवीपी ने राजनीतिक दल या व्यक्ति के लाभ के लिए सड़क बनाने के आरोपों को बताया गलत

एचएसवीपी के मुख्य प्रशासक चंदर शेखर खरे ने अदालत में अपने हलफनामे में कहा कि यह आरोप कि यह मार्ग किसी राजनीतिक दल या व्यक्ति के लाभ के लिए बनाया गया था, पूरी तरह से गलत और भ्रामक है। एचएसवीपी की दलीलों को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसका स्पष्टीकरण न केवल दिखावा है बल्कि अदालत को गुमराह करने का प्रयास है। ग्रीन बेल्ट को बहाल करने का आदेश देते हुए अदालत ने कहा कि इसका मतलब है कि उस हरित पट्टी से आवागमन बंद करना होगा और अधिकारियों को इसका समाधान निकालना चाहिए। उन्होंने ही यह समस्या खड़ी की है।

वहीं, करनाल भाजपा जिला अध्यक्ष प्रवीण लाथर ने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, “हमने पेड़ नहीं काटे, न ही इसमें हमारी कोई भूमिका है। प्रशासन ने आस-पास के स्कूलों और मंदिरों के लिए सड़क का निर्माण किया है। हमारा इससे कोई लेना-देना नहीं है। हम सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करेंगे। अगर प्रशासन ने कुछ गलत किया है तो यह प्रशासन की जिम्मेदारी है।”

रिटायर्ड कर्नल ने उठाया सड़क का मुद्दा

कर्नल दविंदर सिंह राजपूत जिन्होंने 1992 में सेना से समय से पहले सेवानिवृत्ति ले ली थी, उन्होंने 1989 में सेक्टर 9 में घर बनाने के लिए 1,000 वर्ग गज का एक भूखंड खरीदा था। कर्नल राजपूत का कहना है कि लगभग तीन दशकों तक उनके बगल वाली ज़मीन खाली पड़ी रही। अक्टूबर 2018 में, उस ज़मीन के शौच स्थल और कूड़ेदान बनने की आशंका से चिंतित होकर, राजपूत और अन्य निवासियों ने एचएसवीपी से अपील की कि इसे एक पार्क के रूप में विकसित किया जाए।

वंबर 2018 में, राजपूत और अन्य लोगों द्वारा पार्क की मांग करते हुए आवेदन करने के तुरंत बाद, यह भूखंड आधिकारिक तौर पर भाजपा को फ्रीहोल्ड आधार पर आवंटित कर दिया गया था।

ग्रीन बेल्ट में बना दी सड़क

राजपूत का कहना है कि 28 अप्रैल, 2023 को वे सुबह उठे तो उन्होंने देखा कि ग्रीन बेल्ट में सीमेंट की टाइलों का ढेर लगा हुआ है। उन्हें पता चला कि ये टाइलें हरित पट्टी से होकर नए भाजपा कार्यालय तक जाने वाली सड़क के लिए थीं। उनके विरोध प्रदर्शन के बाद टाइलें हटाई गईं। सड़क निर्माण की प्रक्रिया जल्द ही दोबारा शुरू होने पर, निवासियों ने मई 2023 में करनाल नगर निगम और एचएसवीपी को ज्ञापन सौंपकर परियोजना को आगे न बढ़ाने का आग्रह किया।

राजपूत के अनुसार, 5 अक्टूबर 2023 को 15-20 लोगों की एक टीम उपकरणों के साथ आई और कुछ ही घंटों में लगभग 40 पेड़ काट डाले। दो दिन बाद, राजपूत ने न्यायिक जांच, भाजपा कार्यालय को आवंटित भूखंड को रद्द करने और हरित पट्टी को बहाल करने की मांग करते हुए उच्च न्यायालय में याचिका दायर की। 10 अक्टूबर को याचिका स्वीकार कर ली गई और उच्च न्यायालय ने इस मामले की सुनवाई 20 अक्टूबर को तय की। कर्नल राजपूत ने बताया, “अगले दिन (11 अक्टूबर को) ग्रीन बेल्ट से होकर गुजरने वाली सड़क के निर्माण को पूरा करने के लिए राज्य की पूरी मशीनरी को काम पर लगा दिया गया। खुदाई करने वाली मशीनें, बुलडोजर, मिट्टी, कंक्रीट और रेत के डंपर तैनात किए गए।”

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सुप्रीम कोर्ट ने मामले में दिया यह आदेश

कर्नल ने बताया, उन्होंने दो दिनों में सड़क का अधिकांश हिस्सा बना दिया। जिस दिन उच्च न्यायालय ने यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया, उसी रात उन्होंने 100-150 लोगों को काम पर लगा दिया, जिन्होंने दिन-रात काम किया। जब तक उच्च न्यायालय का आदेश अधिकारियों तक पहुंचा, यथास्थिति का कोई अर्थ नहीं रह गया था,” इस साल 3 मई को हाई कोर्ट ने राजपूत की याचिका खारिज कर दी और अगस्त में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। अपने 10 दिसंबर के आदेश में, सर्वोच्च न्यायालय ने राज्य को मूल ग्रीन बेल्ट को बहाल करने और तीन महीने के भीतर एक वैकल्पिक पहुंच मार्ग की योजना बनाने का निर्देश दिया।

सेवानिवृत्त अधिकारी ने कहा, “यह घटना आंखें खोलने वाली साबित हुई। पेड़ काटे जाने के बाद मैंने पर्यावरण मंत्रालय, राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण, मुख्यमंत्री और अन्य को पत्र लिखा। कार्रवाई की तो बात ही छोड़िए, कोई जवाब तक नहीं आया। एक सेवानिवृत्त सेना कर्नल होने के बावजूद अगर मैं इतना असहाय महसूस कर सकता हूं तो एक आम आदमी को क्या सहना पड़ता होगा?”