सिंधिया घराने की गिनती देश के प्रमुख राजघरानों में होती है। 1957 के बाद से ही इस घराने का कोई न कोई सदस्य, संसद का सदस्य रहा है। राजनीति में रसूख रखने वाले इस घराने की चर्चा मां और बेटे के रिश्तों को लेकर भी होती रही है। राजमाता विजयाराजे सिंधिया और बेटे माधव राव सिंधिया के बीच मतभेद को लेकर तमाम कहानियां कही जाती हैं। रशीद किदवई, अपनी किताब द हाउस ऑफ सिंधियाज: ए सागा ऑफ पावर, पॉलिटिक्स एंड इंट्रीग में लिखते हैं कि दोनों के बीच मतभेद 1972 में सबके सामने आ गए थे। जब माधवराव ने अपनी ही माता को जनसंघ से बाहर निकालने की कोशिश की थी। इस घटना ने मां और बेटे के बीच वह दरार डाल दी थी, जिसके बाद दोनों की राहें पूरी तरह से बदल गई थी।
माधवराव की नाराजगी का कारण: माधवराव को राजमाता की राजनीतिक सूझबूझ से लेकर बिजनेस की समझ पर शंका थी, उन्हें लगता था जनसंघ का पूरा खर्चा उनकी माता ही उठा रही है, कुछ लोगों की सलाह पर वह मुंबई की प्रॉपर्टी औने-पौने दामों पर बेची जा रही हैं। उन्होंने घर से महंगे गहने गायब होने पर भी चिंता जताई थी। यहां तक कि वह यह भी मानते थे राजमाता के मन में अपने पति और माधवराव के पिता के प्रति नफरत भरी हुई है।
राजमाता की नाराजगी की वजह: राजमाता, बेटे के साथ हुए मतभेद के लिए अपनी बहू को जिम्मेदार मानती थीं। उनके करीबियों के अनुसार राजमाता पहली बार तब आहत हुईं थी जब 1975 में इमरजेंसी के दौरान उन्हें जेल में डाल दिया गया था। इस दौरान माधवराव अपने ससुराल नेपाल चले गए थे। इस बात से वह इतनी नाराज हो गईं कि उन्होंने मरते दम तक इस नाराजगी का त्याग नहीं किया।
माधवराव ने वाजपेयी के खिलाफ नामांकन दायर कर सबको चौंका दिया: अटल बिहारी वाजपेयी ने 1984 में हुए इंदिरा गांधी हत्याकांड के बाद हुए आम चुनावों में ग्वालियर से लड़ने का ऐलान किया। वाजपेयी 1971 में चुनाव जीत भी चुके थे और उन्हें उम्मीद थी कि विजयाराजे सिंधिया की अगुवाई में उन्हें सिंधिया परिवार का समर्थन मिलेगा। हालांकि उनका आकलन कुछ हद तक ठीक भी था लेकिन तभी राजीव गांधी ने गुप्त तौर पर माधवराव को ग्वालियर से चुनाव लड़ने के लिए राजी कर लिया। उनका नाम पूरी तरह से गुप्त रखा गया था। नामांकन के अंतिम दिन, माधवराव सिंधिया ने अपनी दावेदारी पेश कर सबको चौंका दिया था।
जनसंघ से भी रहा नाता: ऐसा नहीं है कि माधवराव शुरू से ही कांग्रेस के साथ थे। ऑक्सफोर्ड से पढ़ाई पूरी करने के बाद जब वह भारत लौटे तो उन्होंने जनसंघ से जुड़ने का फैसला किया। बाद में वह इसे अपनी भूल मानने लगे। मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनावों में मिली हार के बाद उनका नजरिया जनसंघ के प्रति बदलने लगा।
कांग्रेस से भी मन भटका: साल 1996 में जब अटल बिहारी वाजपेयी पहली बार प्रधानमंत्री बने तो समीकरण कुछ तरह के बनें कि माधवराव को कांग्रेस छोड़नी पड़ी थी। कांग्रेस से निकलकर उन्होंने अपनी पार्टी ‘मध्य प्रदेश विकास पार्टी’ का गठन किया। हवाला कांड में नाम सामने आने के बाद कांग्रेस ने उनका टिकट काट दिया था। ग्वालियर सीट पर वह निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर उतरे और 2 लाख से ज्यादा वोटों से जीत हासिल की। इसके बाद 1996 में ही उन्होंने कांग्रेस में वापसी कर ली।