Allahabad High Court: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बलात्कार के एक मामले में गंभीर टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि बलात्कार की शिकार पीड़िता दो संकटों से गुजरती है। पहला- अपराध होने पर उसकी गरिमा को ठेस पहुंचती है और उसकी सुरक्षा की भावना खत्म हो जाती है। दूसरा- उसके बाद मुकदमा, जिसमें उसे उस दर्दनाक अनुभव को दोबारा जीने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस संजय कुमार सिंह की पीठ ने मंगलवार को एक नाबालिग लड़की से बलात्कार के आरोपी व्यक्ति को जमानत देने से इनकार करते हुए एक आदेश में कहा, ‘अक्सर कहा जाता है कि बलात्कार की शिकार महिला दो संकटों से गुजरती है- बलात्कार और उसके बाद का मुकदमा। पहला संकट उसकी गरिमा को गंभीर रूप से चोट पहुंचाता है, उसके व्यक्तित्व पर अंकुश लगाता है, उसकी सुरक्षा की भावना को खत्म करता है और अक्सर उसे शारीरिक रूप से बर्बाद कर सकता है, जबकि दूसरा संकट भी उतना ही खतरनाक है, क्योंकि यह न केवल उसे दर्दनाक अनुभव से गुजरने के लिए मजबूर करता है, बल्कि यह सब पूरी तरह से अजनबी माहौल में प्रचार की चकाचौंध में होता है, जहां आपराधिक न्याय प्रणाली का पूरा तंत्र और साजो-सामान उसके इर्द-गिर्द केंद्रित होता है।
इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी कहा कि कि यौन हिंसा एक अमानवीय कृत्य होने के अलावा, महिला की निजता और पवित्रता के अधिकार का गैरकानूनी अतिक्रमण है। पीठ ने अपने आदेश में कहा कि यह उसके सर्वोच्च सम्मान के लिए एक गंभीर आघात है और उसके आत्मसम्मान और गरिमा को ठेस पहुंचाता है। यह पीड़िता को अपमानित करता है और जहां पीड़िता एक असहाय मासूम बच्ची है, यह एक दर्दनाक अनुभव छोड़ जाता है।
इस मामले में शिकायतकर्ता (नाबालिग पीड़िता की मां) ने 9 जुलाई 2023 को धारा 376(2)एन, 328, 120-बी, 506, 452, 323 आईपीसी और धारा 5एल, 5जे(ii) और 6 पोक्सो एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज कराई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि याचिकाकर्ता ने उसकी बेटी के साथ बलात्कार किया। एफआईआर दर्ज होने के दिन पीड़िता चार महीने की गर्भवती थी।
मामले में जमानत की मांग करते हुए याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि डीएनए परीक्षण से पुष्टि हुई है कि याचिकाकर्ता और पीड़िता के बच्चे के जैविक माता-पिता हैं और 30 जुलाई, 2024 को आवेदक को पीड़िता से शादी करने और बच्चे की जिम्मेदारी लेने की इच्छा व्यक्त करने के बाद अंतरिम जमानत दी गई थी।
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हालांकि, चूंकि शादी नहीं हो सकी, इसलिए याचिकाकर्ता ने 20 नवंबर, 2024 को संबंधित कोर्ट के समक्ष आत्मसमर्पण कर दिया और तब से वह जेल में है। याचिकाकर्ता के वकील ने आवेदक की हिरासत अवधि के आधार पर जमानत मांगी।
दूसरी ओर, राज्य के एजीए ने दलील दी कि आरोप जघन्य प्रकृति के हैं, इसलिए आवेदक की जमानत याचिका खारिज किए जाने योग्य है। पक्षों के वकीलों को सुनने और मामले की जांच करने के बाद कोर्ट ने कहा कि इस बात पर कोई विवाद नहीं है कि याचिकाकर्ता और पीड़िता के बीच जबरदस्ती शारीरिक संबंधों के कारण वह गर्भवती हो गई और उसने एक बच्चे को जन्म दिया।
कोर्ट ने आगे कहा कि डीएनए रिपोर्ट में याचिकाकर्ता को पीड़िता के बच्चे का जैविक पिता पाया गया। इसलिए, प्रथम दृष्टया कोर्ट को आवेदक को झूठे आरोप में फंसाने का कोई उचित आधार नहीं मिला। इन सभी तथ्यों को मद्देनजर रखते हुए कोर्ट ने याचिकाकर्ता की याचिका खारिज कर दी।
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