दिल्ली में सत्ता में आने के महज एक साल के अंदर ही मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की सीबीआइ की स्वायत्तता के बारे में राय बदल गई है। सत्ता से बाहर रहते हुए , इस जांच एजंसी को राजनीतिक नियंत्रण से मुक्त करने के लिए वे जो सुझाव देते आए थे, अब उन्ही का जम कर विरोध कर रहे हैं। अहम बात तो यह कि उनके प्रधान सचिव के यहां छापे, खुद उनके ही दल में पांच माह पहले तक रहे एक अहम नेता की शिकायत पर मारे गए हैं।

अरविंद केजरीवाल अपने प्रधान सचिव के यहां मारे गए छापों पर यह कह रहे हैं कि ऐसा करके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन्हें निशाना बनाया है और वे सीबीआइ का दुरुपयोग कर रहे हैं। उनकी दलील है कि अगर सीबीआइ को कोई फाइल चाहिए भी थी तो उसे वह उनसे मांगनी चाहिए थी, वे खुद निकाल कर दे देते। अहम बात तो यह हे कि पिछले साल ही सत्ता से बाहर रहते हुए केजरीवाल यह मांग करते आए थे कि सीबीआइ को यह स्वायत्तता होनी चाहिए कि आला अफसरों के यहां छापे मारने के पहले उसे सरकार की इजाजत लेने की जरूरत न पड़े। मालूम हो कि पहले संयुक्त सचिव या उससे ऊपर के अफसर के यहां छापे मारने या कार्रवाई करने के पहले इस एजंसी को सरकार की अनुमति लेनी पड़ती थी। अब यह व्यवस्था कर दी गई है कि सीबीआइ को ऐसा करने की जरूरत नहीं है।

जब खुद उनके प्रधान सचिव राजेंद्र कुमार इसका शिकार हो गए को वे बौखला गए।
सीबीआइ के इस आला अफसर का कहना था कि अगर कल को हमें प्रधानमंत्री के प्रधान सचिव के खिलाफ कोई कार्रवाई करनी हो और हम इसके लिए उन्हें पूर्व सूचना दें या उनसे फाइलें देने के लिए कहें तो सबसे पहले यही केजरीवाल हम पर प्रधानमनंत्री के हाथों का खिलौना होने का आरोप लगाएंगे। हम किसी के भी खिलाफ कार्रवाई करने के पहले उसे सतर्क क्यों करें? दूसरी अहम बात यह है कि ये छापे केजरीवाल सरकार में दिल्ली डायलाग कमीशन में सदस्य रहे आशीष जोशी की शिकायत पर मारे गए हैं। उन्हें मई माह में केजरीवाल ने हटा दिया था।

आशीष जोशी ने अपनी शिकायत में कहा था कि पिछली कांग्रेस सरकार में शिक्षा, आइटी, व स्वास्थ्य विभागों में रहते हुए राजेंद्र कुमार ने भारी पैमाने पर भ्रष्टाचार किया था। उन्होंने निजी कंपनियों से बिना टेंडर आमंत्रित किए हुए कंप्यूटर व दूसरा सामान खरीदा था? अहम बात तो यह कि खुद केजरीवाल तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सरकार पर लगे रहे तमाम आरोपों के कारण उनकी सीबीआइ से जांच करवाने की मांग करते आए थे। अब जब अपने यहां छापा पड़ गया तो वे बौखला गए हैं। मालूम हो कि 1989 बैच के आइएएस अफसर राजेंद्र कुमार भी आइआइटी के ही पढ़े हुए हैं।

भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बड़ी-बड़ी बातें करते आए केजरीवाल सरकार के एक वरिष्ठ आइएएस अफसर को चंद दिन पहले ही सीबीआइ ने गिरफ्तार किया था। सामाजिक कल्याण विभाग के प्रधान सचिव एसपी सिंह की जब गिरफ्तारी हुई तो उनकी सरकार ने इसका श्रेय लेते हुए बड़े गर्व के साथ कहा था कि हमने सीबीआइ के साथ मिलकर उन्हें पकड़वाया है।

तब तक यह जांच एजंसी दूध की धुली थी और अब वह उन्हें राजनीतिक दबाव में काम करती नजर आ रही है। संजय प्रताप सिंह व उनके निजी सहायक को 2.2 लाख रुपए की रिश्वत कथित रूप से स्वीकार करने के मामले में गिरफ्तार किया गया था। 1984 बैच के एजीएमयूटी काडर के अधिकारी के लाकर से करीब 80 लाख का सोना भी मिला है।

बहरहाल, आप पार्टी के विधायकों का रिकार्ड भी अच्छा नहीं रहा है। आम आदमी पार्टी के अब तक कुल पांच विधायक विभिन्न मामलों में जेल जा चुके हैं। अखिलेश त्रिपाठी से पहले आप के चार विधायक जितेंद्र तोमर (त्रिनगर के विधायक), सोमनाथ भारती (मालवीय नगर के विधायक), मनोज कुमार (कोंडली के विधायक), कमांडो सुरेंद्र सिंह (दिल्ली छावनी से विधायक) जेल जा चुके हैं। इन पर क्रमसे फर्जी डिग्री का मामला, घरेलू हिंसा का मामला, धोखाधड़ी का मामला, सरकारी अधिकारी से मारपीट का मामला दर्ज है। ताजे मामले में विधायक अखिलेश त्रिपाठी को जेल भेजने का आदेश अदालत ने 2013 में दंगे के एक मामले में पेश नहीं होने पर दिया है। अदालत ने उन्हें बार-बार पेश होने के लिए कह रही थी, लेकिन वे नहीं हाजिर हो पाए। नाफरमानी करने पर अदालत ने अब सख्त आदेश दिया है। त्रिपाठी पर आरोप है कि 2013 में दंगा भड़काने में उनकी भूमिका रही। अदालत की ओर इस मामले में कई बार नोटिस जारी किया गया था। लेकिन वे पेश नहीं हुए थे।

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