राजस्थान में बीजेपी ने 115 सीटें हासिल कर उस रिवाज को बनाए रखा है जिसके तहत  हर पांच साल में प्रदेश की सत्ता बदलती है। लेकिन अब पार्टी के सामने मुख्यमंत्री के नाम का ऐलान करना चुनौती बना हुआ है। जयपुर से दिल्ली तक बैठकों का दौर जारी है। वसुंधरा राजे ने गुरुवार को पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा से मुलाकात की और राजनीतिक हल्कों में चर्चा होने लगी कि वसुंधरा मुख्यमंत्री पद की दावेदारी के अहम किरदारों में से एक हैं। हालांकि वह बयान दे चुकी हैं कि पार्टी लाइन से बाहर किसी भी स्थिति में नहीं जाएंगी। 

क्यों अहम किरदार हैं वसुंधरा राजे? 

क्यों वसुंधरा राजे मुख्यमंत्री पद की पंक्ति में सबसे अहम किरदार मानी जाती हैं, इस सवाल के कई जवाब हैं, वह दो बार प्रदेश की मुख्यमंत्री रह चुकी हैं और कहा जाता है कि फिलहाल प्रदेश में उनके मुकाबले का कोई ऐसा नेता नहीं है जिसके पास इस पद का तजुरबा और समझ हो। अगर नजर डालें चुनावी नतीजों के बाद की तस्वीरों पर तो राजे एकमात्र ऐसी नेता थीं जिन्हें खासतौर पर दिखाया जा रहा था। राजे ने बीते कुछ दिनों में कई मंदिरों का दौरा किया, वह दौसा के मेहंदीपुर बालाजी मंदिर पहुंची तो  जयपुर के  मोती डूंगरी मंदिर में भी नजर आईं। यह ठीक 2013 की कुछ झलकियों की तरह था। दूसरी तरह एक पहलू यह भी है कि पिछले कुछ सालों में राजस्थान भाजपा में वसुंधरा राजे के वर्चस्व को कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ा है, पार्टी के भीतर उनके कई प्रतिद्वंद्वी उभरे हैं और प्रमुखता से सामने आए हैं। 

क्यों हो रही देरी?

चुनाव से पहले और चुनाव के बाद भी यह चर्चा सामने आती रही कि वसुंधरा राजे के कई वफादार विधायकों द्वारा लगातार उन्हें राजस्थान चुनाव में भाजपा का चेहरा बनाए जाने की मांग की जाती रही। इससे वसुंधरा को उनका कद बढ़ाने में एक हद तक कामयाबी मिली है। बीजेपी आलाकमान इस बात को जानता है कि वसुंधरा राजे की मंशा के बिना किसी भी तरह का कदम उठाना उन्हें उल्टा पड़ सकता है। यही वजह है कि सीएम के नाम पर काफी मंथन हो रहा है।

वसुंधरा राजे के सामने चुनौती? 

वसुंधरा राजे के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी पाना इस बार उतना आसान नहीं है जितना 2013 में था। कुछ वक्त पहले तक जहां उनके सामने सीएम की कुर्सी की दौड़ में सतीश पूनिया और केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत सहित पार्टी के अन्य दावेदारों के नाम चल रहे थे वहीं अब तिजारा से विधायक बनकर विधानसभा जा रहे पूर्व सांसद महंत बालक नाथ भी आ खड़े हुए हैं। चुनौती सिर्फ इतनी ही नहीं है, चर्चा तो यह भी है कि पार्टी आलाकमान किसी बाहरी चहरे को भी सामने ला सकता है। 

 पिछले कुछ सालों में  वसुंधरा राजे की पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के साथ भी मनमुटाव को लेकर चर्चा होती रही है। कहा जाता है कि वसुंधरा राजे का हिन्दुत्व के मुद्दे पर स्टेंड थोड़ा अलग है और वह विकास के मुद्दे को आगे मानती हैं। हालांकि राजे ने गहलोत सरकार को निशाना बनाने में कई बार हिंदुत्व समर्थक रुख अपनाया था, जिसे लेकर अटकलें शुरू हुई कि वह अपना रुख बदलती हुई नजर आ रही हैं। बात अगर टिकट बंटवारे की करें तो कई ऐसे उम्मीदवार हैं जिन्हें भाजपा ने राजे की सिफ़ारिश के तहत मैदान में उतारा था, अब यह विधायक वसुंधरा को काफी फायदा पहुंचा सकते हैं।