उपचुनाव के नतीजों ने ग्राफ क्या बढ़ाया राजस्थान में विधानसभा चुनाव से पहले ही बदलने लगे हैं कांग्रेसी नेताओं के तेवर। फार्मूला तो भाजपा का है पर उसे अपनाते हुए बूथ मजबूत करने के अभियान में कांग्रेस जुट गई है। पार्टी को जैसे सत्ता पाने की भनक लग गई है। सत्तारूढ़ भाजपा की हालत तो है भी वाकई पतली। सो कांग्रेस के नेता फूले नहीं समा रहे। सूबे में विधानसभा की कुल 200 सीटें हैं। भाजपा सत्ता में है तो भी टिकट के दावेदार कांग्रेस दफ्तर में भाजपा से ज्यादा नजर आते हैं। मौजूदा माहौल में ही कम से कम दो हजार दावेदार होंगे पार्टी टिकट के। कांग्रेस ने मुहिम चलाई है-मेरा बूथ, मेरा अभियान। इस अभियान में खासी भीड़ जुट रही है। तभी तो भाजपाई भी डर रहे हैं कि कांग्रेस ने तो प्रचार में भी बढ़त अभी से बना ली। बूथ कमेटियां भाजपा ने काफी पहले बना ली थी। उनकी बैठकें भी हुर्इं और बूथ टीमों को प्रशिक्षण भी दे दिया। इतना ही नहीं मतदाता सूचियों के हिसाब से पन्ना प्रमुख भी बना दिए थे। लेकिन उपचुनाव के नतीजों ने बूथ कमेटियों की पोल खोल दी।
कई बूथ तो ऐसे निकले जहां भाजपा की कमेटी होते हुए भी जीरो से लेकर दस से भी कम ही मत मिले। यानी ये कमेटियां कागजी साबित हो गर्इं। हर कमेटी पर निष्ठावान कार्यकर्ताओं की तैनाती के बावजूद वोट नहीं मिलना पार्टी के नेताओं को चकित कर गया। नतीजतन प्रदेश के महामंत्री संगठन चंद्रशेखर को चौकन्ना होना पड़ा। बूथ कमेटियों की हकीकत उनसे कैसे छिपती। अंदरूनी जांच में सामने आ गया कि आधे बूथों पर कमेटियां कागजी थीं। बेचारे चंद्रशेखर को उसके बाद ही जमीनी अभियान छेड़ मतदाताओं से जुड़ने की चिंता ने घेर लिया। भले इस गत का खामियाजा अशोक परनामी को सूबेदारी गंवाकर भुगतना पड़ा पर नया सूबेदार तो तीन महीने बीत जाने के बाद भी नहीं बना पाए आलाकमान। अब संघी खेमा अलग नखरे दिखा रहा है। इस खेमे की सनातन शिकायत है कि संगठन में दल बदलुओं का वर्चस्व है। लिहाजा वफादार कार्यकर्ता पार्टी दफ्तर से दूर रहने में ही समझते हैं भलाई। गनीमत है कि अब संगठन महामंत्री के होते कार्यकर्ता अपनी पीड़ा तो जाहिर कर सकते हैं अन्यथा हालत इतनी खराब थी कि सात साल तक कोई संगठन महामंत्री तैनात ही नहीं किया था आरएसएस ने।
भाजपाई फिक्र
पश्चिम बंगाल में सीट जीतने में भले अपेक्षित कामयाबी नहीं मिल पाई हो पर जनाधार तो लगातार बढ़ ही रहा है भाजपा का। जिस पार्टी का वाममोर्चे के शासन के दौरान कोई नाम लेना भी पसंद नहीं करता था आज वही पार्टी सूबे में दूसरे नंबर की पार्टी तो बन ही गई है। अमित शाह के लिए यह भी कोई कम संतोष की बात नहीं है। वाममोर्चे और कांग्रेस दोनों को ही पछाड़ चुकी है अब पार्टी। पंचायत चुनाव हो या विधानसभा उप चुनाव, भाजपा के जनाधार में इजाफा हुआ है। बेशक अभी वह ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस को टक्कर देने की हैसियत में नहीं है। तो भी आलाकमान ने अब यहां अपनी पार्टी के संगठन पर ध्यान देने की रणनीति अपनाई है। अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले पार्टी अपने दफ्तरों की काया पलटना चाहती है। खुद आलाकमान ने दो दिन के दौरे का कार्यक्रम बना लिया है। भाजपा अपनी जमीन खरीदकर अपना मुकम्मल दफ्तर बनाएगी। सूबे का कोलकाता स्थित पार्टी दफ्तर भी नए इलाके में ले जाने की योजना है। वीडियो कांफ्रेसिंग की सुविधा भी रहेगी नए दफ्तर में। पार्टी के सूबेदार दिलीप घोष के मुताबिक वीडियो कांफ्रेसिंग से पार्टी के विस्तार में मदद मिलेगी। एक तरफ आलाकमान से दिल्ली में संपर्क करना आसान होगा तो दूसरी तरफ जिला दफ्तरों से भी नाता सजीव हो जाएगा। संगठन के विस्तार के मद्देनजर कुछ नई गाड़ियां भी जल्द खरीद लेगी पार्टी। युवा कार्यकर्ताओं के लिए बड़े पैमाने पर मोटरसाइकिलें रहेंगी। तभी तेज हो पाएगी पार्टी की गतिविधियां। पार्टी का लक्ष्य अपने और तृणमूल कांग्रेस के बीच के लंबे फासले को छोटा करना जो ठहरा।