राजस्थान में हाईकोर्ट ने 9 नवंबर को विजिलेंस के रजिस्ट्रार को एक मजिस्ट्रेट के खिलाफ कार्रवाई शुरू करने के निर्देश दिए। इस मजिस्ट्रेट ने हाईकोर्ट की तरफ से एक मामले में पहले से दी गई अग्रिम जमानत के बावजूद गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया था।
जस्टिस संजीव प्रकाश मिश्रा की पीठ ने पाया कि मामले में मजिस्ट्रेट को हाईकोर्ट के आदेश का ध्यान रखना चाहिए था। साथ ही उसे क्रिमिनल लॉ से जुड़ी जानकारी भी होनी चाहिए थी। मामले के अनुसार नानूराम सैनी और विनोद कुमार के खिलाफ धोखाधड़ी समेत विभिन्न धाराओं में एफआईआर दर्ज की गई थी। इस मामले में आरोपियों ने साल 2003 में हाईकोर्ट से अग्रिम जमानत ले रखी थी। मजिस्ट्रेट ने इस साल संबंधित मामले का संज्ञान लेते हुए सितंबर में दोनों के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया।
गिरफ्तारी संबंधी वारंट की जानकारी के बाद इस मामले में याचिकाकर्ता के वकील ने मजिस्ट्रेट के सामने एक याचिका दायर की। इसमें कहा गया कि हाईकोर्ट की तरफ से आरोपियों को अग्रिम जमानत मंजूर की जा चुकी है। याचिका में मजिस्ट्रेट से आग्रह किया गया कि वह इस गिरफ्तारी वारंट को सीआरपीसी की धारा 70 (2) के तहत जमानती वारंट में तबदील कर दें।
इस पर एडिशनल चीफ ज्यूडिशल मजिस्ट्रेट ने कहा कि वह गैर जमानती वारंट को जमानती वारंट में तब्दील नहीं कर सकते हैं। मजिस्ट्रेट ने कहा कि उनके पास ऐसा करने की पावर नहीं है।
हाईकोर्ट ने मजिस्ट्रेट के गिरफ्तारी संबंधी वारंट को रद्द कर दिया। अदालत ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के आलोक में उक्त आदेश को रद्द किया जाता है। इसके साथ ही याचिकाकर्ता को अग्रिम जमानत के तहत मिलने वाली सभी सुविधाएं जारी रहेंगी।