जयपुर में बिजली तंत्र सुधार के नाम पर हुए 237 करोड़ रुपए के चर्चित घोटाले ने फिर से सुर्खियां बटोरी हैं। मामले में पांच आरोपी अफसरों में से चार को चार्जशीट थमा दी गई है, जबकि पांचवें आरोपी, तत्कालीन तकनीकी निदेशक और वर्तमान में अजमेर डिस्कॉम के एमडी, को गवाह बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं। इस पर सवाल उठ रहे हैं कि जब दस्तावेज और जांच रिपोर्ट पहले से मौजूद हैं, तो फिर आरोपी को गवाह बनाने की जरूरत क्यों पड़ी?

कांग्रेस सरकार के समय हुई थी घटना

ऊर्जा विभाग के वरिष्ठ अधिकारी इस मामले में बचाव के प्रयासों में जुटे हुए हैं। जांच रिपोर्ट में खुलासा हुआ था कि कांग्रेस सरकार के दौरान डिस्कॉम के अधिकारियों और अनुबंधित कंपनी की मिलीभगत से ग्रिड सब स्टेशन (जीएसएस) निर्माण के नाम पर सरकारी खजाने को भारी नुकसान पहुंचाया गया। खास फर्म को फायदा पहुंचाने के लिए निविदा में विशेष शर्तें जोड़ी गईं और उसे 246% अधिक दर पर काम सौंपा गया।

पूर्व एमडी आरएन कुमावत, वित्त निदेशक एसएन माथुर, मुख्य अभियंता आरके मीणा और मुख्य अभियंता अनिल गुप्ता को चार्जशीट सौंपी गई है, लेकिन अजमेर डिस्कॉम के एमडी के.पी. वर्मा को चार्जशीट नहीं दी गई, जिससे संदेह और बढ़ गया है।

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भाजपा विधायक संदीप शर्मा ने इस घोटाले को लेकर विधानसभा में सवाल उठाया है, जिससे डिस्कॉम प्रशासन ने जांच तेज कर दी है। अब घोटाले से जुड़े सभी तथ्यों का जवाब तैयार किया जा रहा है।

भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB) ने 1 फरवरी 2024 को तथ्यात्मक रिपोर्ट मांगी थी, और जांच कमेटी ने 8 जुलाई 2024 को रिपोर्ट सौंपी। इसके बावजूद, समय रहते कार्रवाई क्यों नहीं हुई? अनुबंधित फर्म आर.सी. एंटरप्राइजेज को सिर्फ काम की देरी के लिए नोटिस क्यों दिया गया, जबकि अधिक दर पर भुगतान करने वालों की जिम्मेदारी तय क्यों नहीं की गई?

यह भी कहा जा रहा है कि कुछ अफसरों ने कार्यादेश पर हस्ताक्षर दबाव में करने का तर्क देकर खुद को बचाने की कोशिश की है। यह कितना सही है? मामला कोर्ट में होने के बावजूद, आरोपियों को नोटिस न देने के पीछे क्या कारण है? यह भी जांच का विषय है।

ऊर्जा मंत्री ने कही यह बात

इस मामले में मीडिया से बात करते हुए ऊर्जा मंत्री हीरालाल नागर ने कहा कि मामला भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (ACB) को सौंप दिया गया है और अब वहीं से कार्रवाई होगी। उन्होंने बताया कि अजमेर डिस्कॉम के एमडी के.पी. वर्मा को गवाह बनाया गया है, इसलिए उन्हें चार्जशीट नहीं दी गई। यह घोटाला सरकार और प्रशासन की कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े कर रहा है। देखना होगा कि आगे इस पर क्या कार्रवाई होती है।